Jodhpur: मां करणी की नजरों के सामने रहता है लोहावट कस्बा, भाखर पर विराजती है राजराजेश्वरी
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Jodhpur: मां करणी की नजरों के सामने रहता है लोहावट कस्बा, भाखर पर विराजती है राजराजेश्वरी

जोधपुर के लोहावट कस्बे से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर जोधपुर-फलोदी स्टेट हाइवे पर पहाड़ी (गोलिया भाखर) पर स्थित करणी मां का ऐतिहासिक मंदिर. प्राचीन भाखर पर करणी माता की प्रतिमा की स्थापना 225 सालों से भी पहले की गई थी. 

लोहावट स्थित मां करणी का मंदिर

Jodhpur: जोधपुर के लोहावट कस्बे से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर जोधपुर-फलोदी स्टेट हाइवे पर पहाड़ी (गोलिया भाखर) पर स्थित करणी मां का ऐतिहासिक मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केन्द्र है. यहां पर लोहावट ही नहीं बल्कि आस-पास क्षेत्रों के कई गांवों से मंदिर में दर्शनाथ श्रद्धालु पहुंचते हैं. जमीन तल से श्रद्धालु 401 सीढिय़ां चढ़कर मां करणी के मंदिर तक पहुंचते हैं. जानकारों के अनुसार प्राचीन भाखर पर करणी माता की प्रतिमा की स्थापना 225 सालों से भी पहले की गई थी. चैत्र व शारदीय नवरात्रा महोत्सव के दौरान मंदिर में श्रद्धालुओं की रेलमपेल लगी रहती है, यनवरात्रा के अलावा आम दिनों में भी यहां पर श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है. स्टेट हाइवे पर मंदिर का प्रवेश द्वार भी बना हुआ है.

मुख्य सड़क मार्ग पर स्थित पहाड़ी एवं उसके ऊपर बना मंदिर का दृश्य इतना मनमोहक है कि दूर से ही श्रद्धालु इसकी ओर खिंचे चले आते हैं. प्राचीन भाखर के ऊपर मंदिर का मुख्य द्वार तथा प्रतिमा का मुंह लोहावट कस्बे के जाटावास व विश्नावास की तरफ स्थापित है, जो कि हर समय मां की नजरों के सामने रहता है. ऐसी मान्यता है कि प्रतिमा का मुंह कस्बे की ओर होने से कस्बे पर कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आ सकती. बताया जाता कि करीब 50-55 साल पहले किसी व्यक्ति ने मंदिर से मूर्ति को ले जाने का प्रयास किया, लेकिन वह भाखर के नीचे तक नहीं उतर पाया, बाद में अन्य लोगों ने दूसरे दिन मूर्ति को वापस मंदिर में लेकर गए.

पहाड़ को काटकर 12 साल पहले बनाई सीढियां

करणी माता की प्रतिमा की स्थापना के बाद भाकर पर पहले छोटा मंदिर था, उसके बाद करीब 12 वर्ष पूर्व मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया. पूर्व में मंदिर स्थल पर जाने के लिए रास्ता नहीं होने से श्रद्धालुओं को खासी परेशानी होती थी. पहाडी के बीच से पथरीले रास्ता था, बाद में यहां पर वर्ष 2010 में मंदिर जाने के लिए जनसहयोग से भाखर काटकर सीढियां बनवाई गई. इधर प्राचीन भाखर के आस-पास से खेतों से घिरी हुई है, किसानों ने अपने खेतों की जमीन देकर श्रद्धालुओं के लिए रास्ता बनवाया है, इससे श्रद्धालुओं के लिए रास्ता और भी सुगम हो गया है.

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