लूणी: मारवाड़ में खरीफ की फसल से लहराए खेत, खिलें किसानों के चेहरे
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लूणी: मारवाड़ में खरीफ की फसल से लहराए खेत, खिलें किसानों के चेहरे

जोधपुर के लूणी क्षेत्र में पिछले एक हफ्ते से लगातार हो रही बारिश के बाद किसानों की बोई हुई खरीफ की फसलें अब पूरी तरह से लहराने लगी है. किसानों ने कहा कि मूंग की सबसे उपयुक्त किस्म आर एम जी 268, पूसा विशाल, पंत मूंग 1, वर्षा, सुनैना, अमृत, कृष्णा 11 आदि प्रमुख किस्में उपयुक्त मानी जाती है. 

खेत में लहराती फसलें

Jodhpur: जिले के लूणी क्षेत्र में पिछले एक हफ्ते से लगातार हो रही बारिश के बाद किसानों की बोई हुई खरीफ की फसलें अब पूरी तरह से लहराने लगी है.इन दिनों किसानों ने अगेती खेती करके खेतों में निराई गुड़ाई का काम भी कर दिया गया है, ऐसे में अब पूरे क्षेत्र में मूंग की फसलें अंकुरित हो गई हैं. वहीं प्रत्येक मूंग की फली में 15 से 20 दाने हैं यानी प्रत्येक पौधे पर से 2 से 3 किलो पैदावार आसानी से ले सकते हैं. खरीफ की फसलों में अच्छी पैदावार होने से किसान काफी खुश नजर आ रहें हैं. 

किसानों ने कहा कि पिछले साल कम बारिश हुई थी और खेतों में फसलें बो दी गई थी, लेकिन बाद में बरसात नहीं होने की वजह से पूरे क्षेत्र में अकाल पड़ गया था. उस दौरान राज्य सरकार से किसानों को मुआवजा भी मिला था, लेकिन इस बार अच्छी मानसून की बारिश के बाद लगातार हो रही बारिश के बाद खेतों में मूंग, मोठ, बाजरा और तिल की फसलें चारों तरफ से हरियाली दिखाई दे रही है.

वहीं अच्छी बारिश के बाद आसपास तालाबों में भी पानी की आवक होने से पानी की अब समस्या नहीं होगी. किसानों ने कहा कि मूंग की सबसे उपयुक्त किस्म आर एम जी 268, पूसा विशाल, पंत मूंग 1, वर्षा, सुनैना, अमृत, कृष्णा 11 आदि प्रमुख किस्में उपयुक्त मानी जाती है. जिससे कम समय में फसलें पक कर तैयार हो जाती हैं. वहीं मूंग कम समय में पकने वाली मुख्य दलहनी फसल है, वहीं मूंग में 24-26 प्रतिशत प्रोटीन, 55-60 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट एवं 1.3 प्रतिशत वसा पाया जाता है.

खरपतवार कैसे कम करें
मूंग के पौधे की अच्छी बढ़तवार करने के लिए पहली निराई-गुड़ाई सिंचाई के बाद तथा खरीफ की फसल में 20 से 25 दिन बाद निराई करनी चाहिए. इसके बाद यदि खेत में खरपतवार अधिक हो तो दूसरी निराई गुड़ाई 40 दिन के अंदर करनी चाहिए या फ्लूक्लोरेलिन 45 E.C नामक रसायन 1.5 लीटर मात्रा को आवश्यक पानी में मिलाकर बुवाई के दो-तीन दिन बाद प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए.

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