बीलवा का कोरोना योद्धा जिंदगी और मौत की लड़ रहा लड़ाई, इलाज में 30 लाख खर्च, अब सरकार से गुहार
Advertisement

बीलवा का कोरोना योद्धा जिंदगी और मौत की लड़ रहा लड़ाई, इलाज में 30 लाख खर्च, अब सरकार से गुहार

 खेतड़ी उपखंड के बीलवा गांव के कोरोना योद्धा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि दूसरों की जिंदगी बचाते बचाते खुद की जिंदगी भी दांव पर लग जाएगी. कोरोना वायरस से फेफड़ों में हुए संक्रमण के कारण अब पिछले 20 माह से जिंदगी और मौत से जूझ रहा है.

बीलवा का कोरोना योद्धा जिंदगी और मौत की लड़ रहा लड़ाई, इलाज में 30 लाख खर्च, अब सरकार से गुहार

झुंझुनूं: खेतड़ी उपखंड के बीलवा गांव के कोरोना योद्धा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि दूसरों की जिंदगी बचाते बचाते खुद की जिंदगी भी दांव पर लग जाएगी. कोरोना वायरस से फेफड़ों में हुए संक्रमण के कारण अब पिछले 20 माह से जिंदगी और मौत से जूझ रहा है. कोरोना योद्धा पैसों के अभाव में बिना इलाज भटक रहा है.

मामला खेतड़ी उपखंड के बीलवा ग्राम के अमर सिंह महरानियां का है. केंद्र सरकार के दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल लेडी हार्डिंग अस्पताल में नर्सिंग अधीक्षक के पद पर संविदा के रूप में कार्य कर रहे थे. मई 2021 में जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना कोरोना पीड़ितों का इलाज कर रहे थे, लेकिन उसी समय कोरोना वायरस की जद में खुद भी आ गए.  शुरू में तो अस्पताल में इलाज किया, लेकिन अस्पताल ने भी पल्ला झाड़ते हुए बिना किसी सहायता के घर भेज दिया.

दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल में गार्ड की नौकरी कर रहा था पीड़ित

आज करीब पौने दो साल से जयपुर के अस्पतालों में इलाज करवाया जा रहा है. 30 लाख रुपए इलाज पर खर्च हो चुके हैं. रिश्तेदारों व पहचान वालों से कर्जा लेकर इलाज करवाया जा रहा है, पिछले 20 महीनों से कोरोना संक्रमण से फेफड़े ऐसे क्षतिग्रस्त है कि वह ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बाइपेप के बिना रह नहीं सकता. यह कोरोना योद्धा संविदा स्वास्थ्य कर्मी अपने परिवार की जमा पूंजी, पत्नी के गहने, जमीन जायदाद बेचने के बाद रिश्तेदार व जान पहचान के लोगों से करीब 30 के लाख का कर्जा लेकर इलाज कराने के बावजूद भी कोरोना संक्रमण की दास्तां से बाहर नहीं निकल पाया है.

वह अब कृत्रिम ऑक्सीजन संयंत्र के बिना रह नहीं सकता. पत्नी कविता ने अपने जेवर तक बेच दिए, लेकिन अब इलाज करवाने के लिए एक फूटी कौड़ी भी घर में नहीं बची है. दो छोटे-छोटे बच्चे व पत्नी कविता पति की सेवा के साथ आंसू बहाने के सिवा कोई चारा नहीं बचा है. पिता रामस्वरूप महरानिया, मां संतोष देवी भी लाचार व असहाय नजर आ रहे हैं. पत्नी कविता ने बताया कि  जयपुर के राजस्थान मेडिकल हॉस्पिटल में 2 माह 10 दिन भर्ती रहे जहां प्रतिदिन 50 हजार रुपए खर्च हुए.

घर में इकलौता कमाने वाला है पीड़ित

पीड़ित की पत्नी कविता ने बताया कि उन्होंने परिवार के लोगों से, रिश्तेदारों से कर्जा ले लेकर इलाज करवा चुकी है. अब कोई ऐसा नहीं बचा है जो पैसे दे सके. उनके पति के अलावा घर में कोई कमाने वाला नहीं है. दो बच्चे बेटा लक्ष्य 9 साल, बेटी जिया 7 साल, छोटा देवर बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर रहा है. पैसे के अभाव में इनकी पढ़ाई भी बाधित हो रही है. वहीं, वृद्ध सास-ससुर की सेवा करने की जिम्मेवारी भी उन पर ही है. पिछले 20 महीनों से पूरा परिवार अमर सिंह के इलाज और पैसे के इंतजाम में कर्जा लेने में लगे रहते हैं. पत्नी कविता कहती है कि एकमात्र मंगलसूत्र रखा था. उसे भी हाल ही में बेचकर जयपुर से दवा लेकर आई हैं. प्रतिदिन एक ऑक्सीजन का सिलेंडर की खपत हो जाती है.

पत्नी ने सरकार और लोगों से मदद की गुहार मांगी

पीड़ित की पत्नी कविता ने यह भी बताया कि जिस हॉस्पिटल में वह नौकरी करते थे वह महज एक संविदा कर्मी थे इसलिए उन्हें कोई लाभ नहीं मिला. बेबसी के आंसू लूटकाती हुई कविता ने कहा कि उनके पति के दोस्त फोन इसलिए नहीं उठाते कहीं उनको पैसे के लिए नहीं कह दे. कोई भी संगठन या सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रहा है. केंद्र सरकार में संविदा कर्मी के तौर पर उनके पति सेवारत रहा है. सांसद नरेंद्र कीचड़ के माध्यम से भी अभिशंषा पत्र भेजा जा चुका है, लेकिन कोई मदद नहीं हुई. पीड़िता ने कहा कि आज उनका परिवार कर्ज में डूबा पड़ा है. इलाज के लिए पैसे की तो दूर की बात बच्चों का पेट भरने के लिए अब चुनौती खड़ी हो गई.  ऐसी हालात में मदद के लिए हाथ बढ़े तो कोई बात बने.

Reporter- Sandip Kedia

Trending news