नवरात्रि 2023: रुमाल वाली देवी से आज भी कांपती है पाकिस्तानी सेना, जानिए चमत्कार का किस्सा
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नवरात्रि 2023: रुमाल वाली देवी से आज भी कांपती है पाकिस्तानी सेना, जानिए चमत्कार का किस्सा

नवरात्रि 2023: रुमाल वाली देवी से आज भी पाकिस्तानी सेना कांपती है.शारदीय नवरात्र के आगाज से मां के दरबार मे भक्तों का तांता लगा हुआ है.

 

नवरात्रि 2023: रुमाल वाली देवी से आज भी कांपती है पाकिस्तानी सेना, जानिए चमत्कार का किस्सा

जैसलमेर न्यूज: भारत पाक सीमा से सटे तनोटराय माता मंदिर में नवरात्रा में भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है. नवरात्रा के इस भक्तिमय माहौल में देश प्रदेश के साथ ही सरहदी जिले जैसलमेर के भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है. इस दौरान जैसलमेर शहर से 130 किलोमीटर दूर भारत-पाक सरहद पर बसे थार की वैष्णो देवी,रुमाल वाली देवी,सैनिकों की देवी के नाम से विख्यात 1965 व 1971 के भारत-पाक युद्ध के साक्षी तनोट माता के मंदिर में भी भक्तों का हुजूम देखने को मिल रहा है. 

जहां युद्ध में पाकिस्तान ने 3500 बम गिराए थे लेकिन मां के आशीर्वाद से एक भी फटा नहीं. इन युद्धों दो में भारतीय सेना विजय रही. वहीं गिराए गए बमों में से कई जीवित बम आज भी मन्दिर में प्रदर्शनी को रखे हुए है. इस मंदिर का जिक्र बॉलीबुड फिल्म बॉर्डर में भी दर्शाया गया है.

भारत-पाकिस्तान के 1965 के युद्ध के बाद से ही मां के इस चमत्कार के कारण मन्दिर का जिम्मा BSF के जवानों के कंधों पर है. जहां बीएसएफ के जवान देश की सुरक्षा के साथ ही मन्दिर में पूजा पाठ व लंगर का जिम्मा उठाए है. इस मंदिर में देश भर से राजा हो या रंक हर कोई माता के दरबार में पहुंच रहा है.

नवरात्रा के साथ ही वर्षभर तनोटराय माता में जहां BSF जवानों द्वारा विधिविधान से पूजा अर्चना की गई वहीं नवरात्रा में भक्तों का हुजूम देखने को मिलता है. इस निज मंदिर के पास स्थित एक और छोटा मंदिर है जहां रुमाल ही रुमाल बंधे नजर आते हैं और इस कारण तनोट माता को रुमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है. जहां देश की बड़ी-बड़ी हस्तियों के साथ ही कई भक्त मंदिर में पहुंचते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए यहां रुमाल बांधते हैं. लोगों की मान्यता है कि जब माता उनकी मनोकामना पूर्ण करती है तो वो भक्त यहां वापस आकर उस रुमाल को खोलते हैं और मां से आशीर्वाद लेते हैं.

शास्त्रों की मान्यता के अनुसार इस साल माता रानी का आगमन हाथी पर होना बताया जा रहा है. शास्त्रों की मान्यता है कि नवरात्रि में जब देवी हाथी पर सवार होकर आती हैं तब ज्यादा बारिश के योग बनते हैं. वहीं सैनिकों की इस देवी के साथ ही जिले के शक्तिपीठों पर भक्तों की कतारें देखी जा रही है.

माता के बारे में कहा जाता है कि युद्ध के समय माता के प्रभाव ने पाकिस्तानी सेना को इस कदर उलझा दिया था कि रात के अंधेरे में पाक सेना अपने ही सैनिकों को भारतीय सैनिक समझ कर उन पर गोलाबारी करने लगे और परिणाम स्वरूप स्वयं पाक सेना द्वारा अपनी सेना का सफाया हो गया. इस घटना के गवाह के तौर पर आज भी मंदिर परिसर में 450 तोप के गोले रखे हुए हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये भी ये आकर्षण का केन्द्र है.

लगभग 1200 साल पुराने तनोट माता के मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बनाई है. इतना ही नहीं बीएसएफ के जवानों द्वारा अब मंदिर की पूरी देखरेख की जाती है. मंदिर की सफाई से लेकर पूजा अर्चना और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये सुविधाएं जुटाने तक का सारा काम अब बीएसएफ बखूबी निभा रही है. 

बीएसएफ ने बनाई चौकी

वर्ष भर यहां आने वाले श्रद्धालुओं की जिनती आस्था इस मंदिर के प्रति है उतनी ही आस्था देश के इन जवानों के प्रति भी है जो यहां देश की सीमाओं के साथ मंदिर की व्यवस्थाओं को भी संभाले हुए है. बीएसएफ ने यहां दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं के लिये विशेष सुविधांए भी जुटा रखी है और मंदिर और श्रद्धालुओं की सेवा का जज्बा यहां जवानों में साफ तौर से देखने को मिलता है. 

सेना द्वारा यहां पर कई धर्मशालाएं, स्वास्थ्य कैम्प और दर्शनार्थियों के लिये वर्ष पर्यन्त निशुल्क भोजन की व्यवस्था की जाती है. नवरात्रों के दौरान जब दर्शनार्थियों की भीड़ बढ़ जाती है तब सेना अपने संसाधन लगा कर यहां आने वाले लोगों को व्यवस्थाएं प्रदान करती है. देशभर की विभिन्न शक्ति पीठों के बीच अपनी खास पहचान स्थापित करने वाला यह मंदिर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने के साथ ही सदियों से सीमा का प्रहरी बना हुआ है. यहां पर आने वाला श्रद्धालु मन्नत मांगने के साथ ही एक रूमाल यहां बांधता है. मन्नत पूरी होने के बाद वे ये रूमाल खोलने और मां का धन्यवाद करने आते हैं.

1965 के युद्ध के बाद सीमा सुरक्षा बल ने यहां अपनी चौकी स्थापित कर इस मंदिर की पूजा-अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन और संचालन सीसुब की एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है. मंदिर में एक छोटा संग्रहालय भी है जहां पाकिस्तान सेना द्वारा मंदिर परिसर में गिराए गए वे बम रखे हैं जो नहीं फटे थे. 

आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. पुजारी भी सैनिक ही है. सुबह-शाम आरती होती है. मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक रक्षक तैनात रहता है, लेकिन प्रवेश करने से किसी को रोका नहीं जाता. फोटो खींचने पर भी कोई पाबंदी नहीं. इस मंदिर की ख्याति को हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर’ की पटकथा में भी शामिल किया गया था. दरअसल, यह फिल्म ही 1965 युद्ध में लोंगोवाल पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना के हमले पर बनी थी.

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