दुनिया में बहुत से पर्वत और पठार हैं. कॉर्डिलेरा डी लॉस एन्डिस, रॉकी पर्वत, हिमालय, काराकोरम,हिंदूकुश,ट्रांस अंटार्कटिका पर्वत, तिएन शान, अल्ताई और यूराल पर्वत समेत ऐसे कई पर्वत हैं. सबकी अपनी एक अलग पहचान और विशेषता है. लेकिन उनमें से सबसे अलग और खूबसूरत है चित्रकूट का कामदगिरी पर्वत.
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Jaipur: मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के बीचो-बीच स्थित है, चित्रकूट का कामदगिरी पर्वत. जो दुनिया भर में अपने यश-कीर्ती के लिए जाना जाता है. भागवान राम के वनवास काल में यहां रुकने की वजह से इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ गया. मान्यताएं और कहावतों में कहा जाता है कि जो भी इस पर्वत के दर्शन करता है, उसकी सारी मानों कामनाएं पूरी होती है. कामदगिरी पर्वत के दर्शन मात्र से ही हम जो चाहते हैं कामतानाथ स्वामी वो हमें बिना मांगे ही दे देते हैं. भागवान राम के यहां आने से पहले ही साधु-संतों ने चित्रकूट का अपनी साधना का केंद्र बना लिया था.
यही वजह है कि चित्रकूट को प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है, विशेषकर भगवान राम से जुड़े हुए तीर्थ स्थानों में. भगवान राम के ही स्वरूप में कामतानाथ विराजमान हैं. चित्रकूट का यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है, कामदगिरि पर्वत की तलहटी में, जिसकी परिक्रमा करने के लिए देशभर से श्रद्धालुओं का होता है.
पांच किलोमीटर का है परिक्रमा मार्ग
कामदगिरि की परिक्रमा की शुरुआत होती है, चित्रकूट के प्रसिद्ध रामघाट में स्नान के साथ. रामघाट, मंदाकिनी और पयस्वनी नदी के संगम पर स्थित है. यह वही घाट है, जहां भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था. श्रद्धालु इसी घाट पर स्नान करके कामतानाथ मंदिर में भगवान के दर्शन करते हैं. कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा प्रारंभ करते हैं. यह परिक्रमा 5 किलोमीटर की है, जिसे पूरा करने में लगभग डेढ़ से दो घंटे का समय लगता है.
पर्वत पर भागवान राम की है विशेष कृपा
त्रेतायुग में जब भगवान राम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण सहित वनवास के लिए गए तो उन्होंने अपने 14 वर्षों के वनवास में लगभग साढ़े 11 वर्ष से अधिक समय तक चित्रकूट में व्यतीत किए. इस दौरान चित्रकूट साधु-संतों और ऋषि-मुनियों की पसंदीदा जगह बन गया. इसके बाद भगवान राम ने चित्रकूट छोड़ने का निर्णय लिया.
भगवान राम जब जानें लगे तो भावुक हो गए कामदगिरी
उनके इस निर्णय से चित्रकूट पर्वत दुःखी हो गया और भगवान राम से कहा कि जब तक वो वनवास के दौरान यहां रहे, तब तक यह भूमि अत्यंत पवित्र मानी जाती रही, लेकिन उनके जाने के बाद इस भूमि को कौन पूछेगा? इस पर भगवान राम ने पर्वत को वरदान दिया और कहा कि अब आप कामद हो जाएंगे और जो भी आपकी परिक्रमा करेगा उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी और हमारी कृपा भी उस पर बनी रहेगी. इसी कारण इसे पर्वत कामदगिरि कहा जाने लगा और वहाँ विराजमान हुए कामतानाथ भगवान राम के ही स्वरूप हैं. कामदगिरि की एक विशेषता है कि इसे कहीं से भी देखने पर इसका आकार धनुष की भाँति ही दिखाई देता है.
इस तरह पहुंच सकते हैं चित्रकूट
चित्रकूट के कामदगिरि पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाईअड्डा खजुराहो है, यहां से इसकी दूरी 175 किमी है. खजुराहो से बस और टैक्सी के माध्यम से कामदगिरि पहुंचा जा सकता है, ट्रेन से कामदगिरि पहुंचने के दो माध्यम हैं, पहला है चित्रकूट का कर्वी स्टेशन, जिसकी मंदिर से दूरी लगभग 12 किमी है. दूसरा है सतना जंक्शन जो मंदिर से लगभग 77 किमी की दूरी पर स्थित है. सड़क मार्ग से भी चित्रकूट पहुंचना काफी आसान है. एमपी में सतना जिला सभी प्रमुख बड़े शहरों से सड़क और रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है. साथ ही यूपी के हिस्से का चित्रकूट भी सड़क मार्ग से प्रयागराज, कानपुर और दूसरे शहरों से सड़क के माध्यम से जुड़ा हुआ है.
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