ASP divya Mital bribery case: Rajasthan High Court ने ढाई महीने से रिश्वत मांगने के मामले में जेल की हवा खा रही निलंबित ASP दिव्या मित्तल को शुक्रवार को राहत देते हुए निलंबित ASP के फेवर में फैसला सुनाया है. जिसे लेकर अभियोजन पक्ष ने कड़ा ऐतराज जताया है.
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ASP divya Mital bribery case: राजस्थान हाईकोर्ट ने दवा कंपनी के मालिक से दो करोड़ की रिश्वत मांगने के मामले में न्यायिक हिरासत में चल रही एसओजी की तत्कालीन एडिशनल एसपी दिव्या मित्तल को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं. एसपी दिव्या मित्तल के मामले पर यह आदेश जस्टिस सीके सोनगरा की एकलपीठ ने उनकी जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है.
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क्या कहा जमानत याचिका में
जमानत याचिका में कहा गया है कि एसीबी ने न तो याचिकाकर्ता को रिश्वत लेते गिरफ्तार किया है और ना ही उससे रिश्वत की कोई राशि बरामद हुई है. इसके अलावा उसके पास आय से अधिक की राशि भी बरामद नहीं हुई है. एसीबी के पास याचिकाकर्ता को लेकर कोई ठोस साक्ष्य नहीं है. वह करीब ढाई महीने से जेल में बंद है इसलिए उसे जमानत पर रिहा किया जाए.
क्या कहता है कानून
जिसका विरोध करते हुए अभियोजन पक्ष की ओर से कहा गया कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत संबंधित अधिकारी को ट्रैप करने की जरूरत नहीं होती है. यदि आरोपी डिमांड करता है तो भी एसीबी उसे धारा सात के तहत गिरफ्तार कर सकती है. एसीबी के पास दिव्या मित्तल के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं. यदि उसे जमानत दी गई तो वह प्रकरण के गवाहों को प्रभावित कर सकती है. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने दिव्या मित्तल को जमानत पर रिहा कर दिया है.
गौरतलब है कि दिव्या मित्तल पर आरोप है कि उसने नशीली दवा से जुड़े मामले में हरिद्वार में संचालित दवा फैक्ट्री के संचालक को गलत रूप से लिप्त बताकर उसका नाम हटाने की एवज में दलाल के मार्फत दो करोड़ रुपए की रिश्वत मांगी थी.मामले में एसीबी ने दिव्या को बीती 16 जनवरी को गिरफ्तार किया था. वहीं गत 15 मार्च को एसीबी ने दिव्या के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया है.
हाईकोर्ट जता चुका है नाराजगी
बीते दिनों अदालती आदेश के बावजूद भी दिव्या की जमानत याचिका सूचीबद्ध नहीं करने को लेकर हाई कोर्ट ने नाराजगी जताई थी. इसके साथ ही अदालत ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को निर्देश दिए थे की वह मामले की जांच करे की आदेश के बावजूद केस सूचीबद्ध क्यों नहीं किया गया और कितने मामले हैं जिन्हें अदालती आदेश के बावजूद सूचीबद्ध नहीं किया जा रहा है. वहीं अदालत ने याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए इसे दूसरी एकलपीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने को कहा था.
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