Rajasthan Culture | Lohargal Dham : श्राद्ध में पितरों की मुक्ति के लिए राजस्थान के लोहार्गल जरूर जाएं. महाभारत से लेकर भगवान परशुराम तक का कनेक्शन है.
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Rajasthan Culture | Lohargal Dham : पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है. इन दिनों पितृ पक्ष श्राद्ध चल रहे हैं, जो कि 25 सितम्बर तक रहेगा. इन 16 दिनों में श्राद्ध के लिए प्रमुख तीर्थ स्थानों पर लोगों की भीड़ उमड़ती हैं. हमारे देश में श्राद्ध के लिए कई तीर्थ स्थान है. इन्हीं में से एक स्थान है राजस्थान का लोहार्गल.
महाभारत से जुड़ी है मान्यता
महाभारत के युद्ध के अंत के बाद जब पांडव आपने भाई-बंधुओं और अन्य स्वजनों का वध के बाद बेहद दुःखी थे, लिहाजा ऐसे में भगवान श्री कृष्ण की सलाह के बाद पांडव अपने पापों से मुक्ति के लिए तीर्थ स्थलों के दौरे पर निकल पड़े. श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार पानी में गल जाए वहीं तुम्हारे सारे पाप खत्म हो जाएंगे और मनोरथ पूरी हो जाएगी. ऐसे में विभिन्न तीर्थ स्थानों का भ्रमण करते हुए पांडव लोहार्गल पहुंच गए. जैसे ही उन्होंने वहां स्थापित सूर्यकुंड में स्नान किया, उनके सारे हथियार गल गए. उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थराज की उपाधि से विभूषित किया.
भगवान परशुराम से भी है कनेक्शन
भगवान परशुराम का भी कनेक्शन लोहार्गल से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि यही पर ही भगवन परशुराम ने भी पश्चाताप के लिए यज्ञ किया और पापों से मुक्ति पाई थी. विष्णु के छठवें अंशावतार भगवान परशुराम ने क्रोध में आ कर क्षत्रियों का संहार कर दिया था, लेकिन क्रोध शांत होने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ. लिहाजा उन्होंने एक यज्ञ किया जहां आज एक बड़ी बावड़ी है. यह राजस्थान की सबसे बड़ी बावड़ियों में से एक है. साथ ही पहाड़ी पर एक प्राचीन सूर्य मंदिर बना हुआ है. इसके साथ ही वनखंडी जी का भी मंदिर है. कुंड के पास ही प्राचीन शिव मंदिर, हनुमान मंदिर और पांडव गुफा स्थित है. यहां मालकेतुजी के भी दर्शन किए जा सकते हैं.
यह स्थान झुंझुनू जिले में स्थित है और लोहार्गल नाम से प्रसिद्ध है. इस जगह की बहुत मान्यता है. माना जाता है कि सूर्य कुंड में मृतक व्यक्ति की अस्थियां विसर्जित करने से अस्थियां गल कर पानी में घुल जाती हैं और मृतक व्यक्ति को तुरंत मुक्ति मिल जाती है. इस तीर्थ स्थान पर हर वर्ष चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के अवसर पर मेला लगता है। सोमवती अमावस्या और भाद्रपद अमावस्या के दिन भी यहां श्रद्घालुओं की भीड़ उमड़ती है.
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