Dayan Pratha: राजस्थान में महिलाओं को इसलिए डायन बता कर किया जाता`था निर्वस्त्र, अब इस कुप्रथा पर रोक
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Dayan Pratha: राजस्थान में महिलाओं को इसलिए डायन बता कर किया जाता`था निर्वस्त्र, अब इस कुप्रथा पर रोक

Rajasthan Culture | Dayan Pratha : राजस्थान में महिलाओं को डायन घोषित कर निर्वस्त्र किया जाता और फिर उन्हें गांव से निकाल दिया जाता था. अब डायन कुप्रथा पर रोक है.

Dayan Pratha: राजस्थान में महिलाओं को इसलिए डायन बता कर किया जाता`था निर्वस्त्र, अब इस कुप्रथा पर रोक

Rajasthan Culture | Dayan Pratha : राजस्थान अपने गौरवशाली इतिहास, परम्पराओं और प्रथाओं से सराबोर है, यह वो धरा है जो मीरा बाई की भक्ति से लेकर रानी पद्मिनी तक की वीर गाथाओं को अपने आंचल में समेटे हुए हैं. लेकिन यहां कुछ ऐसी प्रचलित कुप्रथाएं भी रही हैं जिसने समाज को कलंकित किया है. ऐसी ही एक कुप्रथा है डायन प्रथा. 

दरअसल राजस्थान में महिलाओं को डायन या चुड़ैल बता कर घर से निकाल दिया जाता है. निर्वस्त्र कर उसे गली मोहल्ले में घुमाया जाता है. उस महिला के बाल काट दिए जाते हैं, यौन अत्याचार किया जाता है और यहां तक कि उसके मुंह में मल-मूत्र भी ठूस दिया जाता है और समाज से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.

राजस्थान की कई जातिया खासकर भील और मीणा जातियों में स्त्रियों पर डाकन होने का आरोप लगा कर उन्हें मार डालने की कुप्रथा थी. राजस्थान के दक्षिणी इलाके खास कर भीलवाड़ा, उदयपुर और डूंगरपुर में यह कुप्रथा प्रचिलित रही है. छोटी-छोटी जैसे की बच्चे की मौत, गाय के दूध ना देने के लिए महिलाओं को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें डायन घोषित कर दिया जाता था. खास कर विधवा महिला की जमीन और सम्पति हड़पने के लिए इस तरह के कृत्य किए जाते थे.

कहां से आई ये कुप्रथा
डायन प्रथा या डाकन प्रथा का कोई सटीक इतिहास तो नहीं मिलता है लेकिन कुछ स्रोतों के अनुसार, यह प्रथा असम के मोरीगांव जिले से शुरू हुई. वहीं से इस प्रथा का चलन शुरू हुआ जो देश के कई राज्यों तक पहुंचा. यह स्थान सम्पूर्ण भारत में काले जादू की विशेष राजधानी के नाम से जाना जाता है.

सदियों से चली आ रही कुप्रथा
डाकन प्रथा यानि डायन प्रथा आज नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है जो पहले राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में बेहद प्रचलित थी, प्रथा की आड़ में ग्रामीण औरतों पर डाकन यानी अपनी तांत्रिक शक्तियों से नन्हें शिशुओं को मारने वाली पर अंधविश्वास से उस पर आरोप लगाकर निर्दयतापूर्ण मार दिया जाता था. इस प्रथा के चलते आज तक ना जाने कितनी ही महिलाओं को मार दिया गया. 

16 वीं शताब्दी में लग गई थी रोक
16 वीं शताब्दी में राजपूत रियासतों ने कानून बनाकर इस प्रथा पर रोक लगादी थी. इस प्रथा पर सर्वप्रथम अप्रैल 1953 ई में मेवाड़ में महाराणा स्वरुप सिंह के समय में खेरवाड़ा (उदयपुर) में इसे गैर कानूनी घोषित कर दिया था.

ये है कानून 
डायन के खिलाफ राजस्थान डायन प्रताड़ना निवारण अधिनियम 2015 और राजस्थान डायन-प्रताड़ना निवारण नियम 2016 कानून है. जिसके तहत महिला को डायन घोषित कर बदनाम और प्रताड़ित कर नुकसान पहचाने वाले अपराध पर एक से पांच साल तक के कठोर कारावास या 50 हजार रुपए का जुर्माना या दोनों किए जा सकते हैं. इस मामले में अगर कोई व्यक्ति झाड़-फूंक, तंत्र-मंत्र जादू-टोना, टोना-टोटका कर किसी व्यक्ति को नुकसान या चोट पहुंचाता है तो उसे एक से तीन साल तक कारावास की सजा या 10 हजार रुपए तक जुर्माना अथवा दोनों दंड दिए जा सकते हैं.

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