अब एक क्लिक से मिलेगी अपराधियों की कुंडली, डिजिटल डेटा बेस तैयार
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अब एक क्लिक से मिलेगी अपराधियों की कुंडली, डिजिटल डेटा बेस तैयार

स्टेट क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से वर्ष 2022 में अपराधियों के फिंगरप्रिंट और उसकी अन्य जानकारी का डिजीटल डेटा बेस तैयार किया जा रहा है.

अब एक क्लिक से मिलेगी अपराधियों की कुंडली, डिजिटल डेटा बेस तैयार

Jaipur: राजस्थान का पुलिस महकमा अब खुद को अपग्रेड कर रहा है. इसी क्रम में प्रदेश में गिरफ्तार किये जाने वाले अपराधियों के फिंगरप्रिंट और उसकी अन्य जानकारी का डिजीटल डेटा बेस तैयार किया जा रहा है. जिसके बाद जरूरत पड़ने पर उस बदमाश की तमाम जानकारी पुलिसकर्मी महज एक क्लिक के जरिए निकाल सकते है.

स्टेट क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से वर्ष 2022 में सभी पुलिस थानों में गिरफ्तार किए जाने वाले अपराधियों का डिजिटल डेटा बेस तैयार करने की योजना लागू की गई है. इस योजना की शुरुआत में प्रदेश के कुछ एसपी ऑफिस में फिंगरप्रिंट, स्कैनर, कैमरा व अन्य संसाधान उपलब्ध करवाए गए हैं.

कैसे तैयार होता है डाटा बेस

इस बारे में डीसीपी क्राइम परिस देशमुख ने बताया कि SCRB की ओर से जयपुर पुलिस कमिश्नरेट को 2 मशीन उपलब्ध करावाई गई है. जिसके जरिए अपराधियों का डिजिटल डाटा बेस तैयार किया जा रहा है. यह दोनों मशीनें कोर्ट के पास स्थित डीसीपी नॉर्थ और डीसीपी वेस्ट कार्यालय में लगाई गई है.

जयपुर के जिस भी थाने में किसी आरोपी को गिरफ्तार किया जाता है, उसे कोर्ट में पेश करने से पहले डीसीपी नॉर्थ या डीसीपी वेस्ट कार्यालय में लाया जाता है. जहां उसके दोनों हाथों के फिंगरप्रिंट, उसकी फोटो और अन्य जानकारियों को कंप्यूटर में सेव किया जाता है. आरोपी की एक-एक उंगली को स्कैनर के जरिए स्कैन कर उसके डिजिटल फिंगरप्रिंट स्टोर किए जाते हैं. उसके बाद कंप्यूटर में सेव की गई जानकारी को राजस्थान पुलिस के सेंट्रलाइज डेटाबेस सिस्टम में सेव कर दिया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में महज 5 से 10 मिनट का समय लगता है.

पहले कैसे होता था डाटा बेस तैयार
बता दें कि राजस्थान पुलिस ने अब तक गिरफ्तार किए गए सभी आरोपियों के फिंगरप्रिंट्स को  वह कागजों में संरक्षित किया करती थी. जिस में गिरफ्तार किए गए आरोपी को फिंगरप्रिंट ब्यूरो कार्यालय लाया जाता. जहां एक विशेषज्ञ के जरिए एक काले स्लैब पर चिपचिपा जैल लगाया जाता. स्लैब पर आरोपी की उंगलियों को रखने से पहले एक मोटी काली डाई लगाई जाती और आरोपी की उंगलियों को अच्छी तरह से डाई में भिगोने के बाद विशेषज्ञ एक सफेद चादर पर आरोपी की उंगलियां रखकर फिंगरप्रिंट लेते. कई बार सर्च शीट पर फिंगरप्रिंट की छाप सही नहीं आती तो दोबारा इस पूरी प्रक्रिया को दोहराया जाता.

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साथ ही समय के साथ-साथ कागज पर लिए गए फिंगरप्रिंट धुंधले या अस्पष्ट होने लग जाते. फिलहाल जिन आरोपियों का डाटा कागजों में संरक्षित है उसे भी स्केनर के जरिए पुलिस अपने सेंट्रलाइज डेटाबेस में डिजिटली सेव करने की तैयारी कर रही है.

क्या होंगे फायदे
डीसीपी क्राइम परिस देशमुख ने बताया कि अपराधियों का डिजिटल फिंगरप्रिंट डेटाबेस तैयार करने के बाद पुलिस को काफी फायदा होगा. राजधानी जयपुर में यदि कोई वारदात होती है और वारदात स्थल से फिंगरप्रिंट उठाए जाते हैं, जिसमें अपराधी किसी दूसरे जिले का आईडेंटिफाई होता है तो उस अपराधी की सारी जानकारी पुलिस के पास पहले से मौजूद होगी. उसके खिलाफ जल्द एक्शन लिया जा सकेगा. जहां पुलिस को पहले अपराधी को आईडेंटिफाई करने में समय लगता था वह समय अब कम होगा और पुलिस जल्द अपराधी तक पहुंच सकेगी.

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