जयपुर के इस अनूठे दशहरे मेले को नहीं देखा तो क्या देखा, 500 साल पुरानी है परंपरा
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जयपुर के इस अनूठे दशहरे मेले को नहीं देखा तो क्या देखा, 500 साल पुरानी है परंपरा

पूरे देश भर में विजयदशमी को रावण के पुतले का दहन किया जाता है और विजयदशमी का त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन राजधानी के रेनवाल क्षेत्र में असत्य पर सत्य की जीत का यह पर्व एक दिन नहीं बल्कि 6 माह तक मनाया जाता है.

जयपुर के इस अनूठे दशहरे मेले को नहीं देखा तो क्या देखा, 500 साल पुरानी है परंपरा

Jaipur: पूरे देश भर में विजयदशमी को रावण के पुतले का दहन किया जाता है और विजयदशमी का त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन राजधानी के रेनवाल क्षेत्र में असत्य पर सत्य की जीत का यह पर्व एक दिन नहीं बल्कि 6 माह तक मनाया जाता है. 500 सालों से यहां दशहरा मनाने की परंपरा आज भी अपनी संस्कृति और विरासत को संजोए हुए है. इस मेले में दक्षिण भारत की शैली को दर्शाया जाता है जिसे देखने दूरदराज से जनसैलाब उमड़ता है.

देश भर में विजयदशमी का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन किशनगढ़ शहर में विजयदशमी से 4 दिन पहले ही यहां दशहरा बड़े हर्षोल्लास के साथ अपनी संस्कृति और परंपराओं को निभाते हुए असत्य पर सत्य की जश्न 1 दिन नहीं बल्कि पूरे 6 माह तक मनाया जाता है. रावण दहन का जश्न यहां रेनवाल सहित आसपास के क्षेत्र में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है. दक्षिण भारतीय शैली में होने वाले इस मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. इस मेले की खास बात ये है कि विजयादशमी के दिन राम रावण की सेना के बीच युद्ध होता है. इसमें बुराई के प्रतीक रावण का वध किया जाता है.

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किशनगढ़ का दशहरा एक अलग ही छाप छोड़ता हुआ नजर आता है, यहां के दशहरे में दक्षिण भारत की शैली नजर आती है. दक्षिण भारत की मुखौटा नृत्य से सबसे आकर्षण का केंद्र है. इस नृत्य को देखकर यहां के लोग गदगद हो जाते हैं. दूसरा आकर्षण का केंद्र है विजय उत्सव हैं जहां सब जगह रावण दहन के बाद जश्न मनाना बंद कर देते हैं वही यहां पूरी रात भर विजय उत्सव मनाया जाता है श्री राम की सेना पूरी रात भर ढोल नगाड़ों की मधुर धुन पर रात जश्न मनाते हुए नजर आते हैं और इसकी संस्कृति और परंपरा को देखने देर रात तक लोग यहां डटे रहते हैं.

 

किशनगढ़ में दशहरा मेला वर्षों से अपने पूर्वजों की परंपराओं का निर्वहन करते हुए यह रावण दहन किया जाता है. नवरात्रों के साथ ही रेनवाल कस्बा अपनी संस्कृति और परंपराओं के रंग में रंग जाता है रेनवाल क्षेत्र के विभिन्न गांव में दशहरा बनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है जो 6 माह तक चलता है यहां 500 सालों से चली आ रही परंपरा को आज भी निभा रहे है यहां हरसोली गांव में दशहरे का मेला गरुड़ पक्षी के आने पर ही मनाया जाता है तो वहीं अन्य गांव में भी अलग अलग मान्यताओं के अनुसार दशहरा का पर्व मनाया जाता है.

किशनगढ़ में दशहरे पर चली आ रही वर्षों से इस परंपरा को सभी क्षेत्र के लोग बखूबी निभाते आ रहे हैं. यहां एक दर्जन से ज्यादा बार रावण का दहन किया जाता है और इन सभी मेलों में दक्षिण भारत की प्रमुख शैली मुखौटा नृत्य यहां की खास पहचान है जिसे देखने दूरदराज से लोग आते हैं यहां 6 माह तक चलने वाले रावण दहन के कार्यक्रमों में सभी समाज के लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं और यहां एक परिवार पिछले 34 सालों से रावण के पुतले का निर्माण करते आ रहे हैं रेनवाल में 6 महीने मनाए जाने वाले दशहरे के त्योहार में इस परिवार की अहम भूमिका रहती है.

इन तिथियों को होता है रावण दहन:-

  1. -किशनगढ़ में आसोज सुदी छठ को रावण दहन किया जाता है,
  2. -रेनवाल खास और करड में अष्टमी को रावण दहन किया जाता है,
  3. -सिनोदिया और डासरोली में नवमी को रावण दहन किया जाता है,
  4. -हरसोली गांव में विजयादशमी पर रावण दहन किया जाता है,
  5. -करणसर में आसोज सुदी तेरस को रावण दहन किया जाता है,
  6. -बागावास और मिंडी गांव में कार्तिक चतुर्थी को रावण दहन किया जाता है,
  7. -बांसडी खुर्द मे कार्तिक सप्तमी को रावण दहन किया जाता है,
  8. -नांदरी में होली के बाद वैशाख दशमी को रावण दहन किया जाता है,

नवरात्रों के साथ ही अपने देश भर में संस्कृति और परंपराओं के साथ धार्मिक त्यौहार शुरू हो जाते हैं और विजयदशमी को बुराई के प्रतीक रावण का पुतला जलाकर बुराई का अंत किया जाता है लेकिन यहां रेनवाल में विजयदशमी से पहले अहंकारी रावण का पुतला जलाया जाता है जिसे होली तक बार बार मारा जाता है. ऐसे में आज भी लोग अपनी संस्कृति और परंपरा को निभा रहे हैं.

Reporter- Amit Yadav

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