Jaipur News: चाकसू के शीलकी डूंगरी पर शीतलाष्टमी पर लगने वाला वार्षिक लक्खी मेला आज से शुरु हो गया. इस मेले को लेकर लोगों में काफी उत्साह रहता है. मेले में किसी तरह की दिक्कत ना हो, इसके लिए प्रशासन ने पूरी तैयारी कर ली है.
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Jaipur, Chaksu: चाकसू के शीलकी डूंगरी पर शीतलाष्टमी के मौके पर लगने वाला दो दिवसीय वार्षिक लक्खी मेला आज से शुरु हो गया है, और शाम होते होते पूरे परवान पर रहेगा. इसको लेकर तैयारिया प्रशासन ने पूरी कर ली है. प्रदेश का यह सबसे बडा ऐतिहासिक शीतला माता का लक्खी मेला माना जाता है आस पास ही नहीं, बल्कि राजस्थान सहित देश विदेश के कोने कोने से लाखो श्रृदालु षीतला माता के दर्षनो के लिए यहा आते है. और परिवार की सुख समृधि की कामना करते है.
आज घर घर रांधा पूवा पर्व मनाया जा रहा है और विभिन्न प्रकार के व्यन्जन तैयार किये जा रहे है कल सुबह शीतला माता को ठन्डे पकवानो का भोग लगाया जायेगा. जयपुर जिले के चाकसू में शीलकी डूगरी पर भरने वाले इस मेले को लेकर प्रशान पूरी तरह मुस्तैद है .
चाकसू थानाधिकारी भूरी सिंह ने बताया की मेला परिसर में सुरक्षा की दृष्टि से तीन सो से अधिक पुलिस जवान लगाए गए हैं. इनकी मॉनिटरिंग में दो एएसपी ,तीन सीईओ,आठ एसएचओ व प्रशासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारी रहेगी. साथ ही मेला परिसर में 60 सीसीटीवी कैमरे लगााये गये है जिनसे हर गतिविधी पर पुरी नजर रखी जा रही है.
लोक देवी देवताओ में प्रमुख शीतला माता का मन्दिर जयपुर से 45 किलोमीटर व चाकसू कस्बे से तीन किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग सख्या 12 पर शीतला में एक छोटी पहाडी पर बना हुआ है. मन्दिर पर चढने के लिए 108 सिढिया बनी हुई है दूसरी और उतनी ही सिढीया उतरने के लिए बनी हुई है शीतला माता मन्दिर के नीचे बोदरी माता और लागडा बाबा का स्थान है और पीछे की ओर जयपुर दरबार द्वारा लगभग 100 वर्ष पहले बनायी हुइ एक विशाल बारादरी है इसके अलावा मेला क्षैत्र में विभिन्न समाज की धर्मशालाएं और बारादरी है. शीतला माता साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है और चेचक, बोदरीमाता, मोतीझरा तथा पानीझरा जैसी खतरनाक बिमारियो के रोकथाम एवं ईलाज व ठंड की देवी के रुप में मानी जाती है. इसके केवल ठन्डे पकवानो का ही भागे लगता है. लोग प्राकृतिक आपदाओं एवं अनिश्ठो से बचने के लिए इसकी पूजा करते है.
मंदिर श्री शीतला माता ट्रस्ट के मंत्री लक्ष्मण प्रजापति ने बताया कि राजस्थान का ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध शील की डूंगरी स्थित शीतला माता का दो दिवसीय मेला आज 14 मार्च शुरू हो गया हा जो शाम होते होते परवान पर रहेगा. इस बार गाय में आए लंपी रोग के समय माता का विशेष चमत्कार को देखते हुए इस वर्ष दर्शनार्थियों की भीड़ पहले से ज्यादा आने की उम्मीद है इसे लेकर प्रशासन के सहयोग से मंदिर श्री शीतला माता ट्रस्ट में सभी तैयारियां पूर्ण कर दी है जिससे दर्शनार्थियों को किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़े.
पिछले चार महिनों के अनुभव के अनुसार शीतला माता मंदिर पर प्रत्येक सोमवार, शुक्रवार रविवार और अष्टमी को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है. लम्पी जैसी महामारी के समय जब प्रशासन अपने आप को असहाय महसूस कर रहता था, हजारों की संख्या में गोधन काल कवलित हो रहा था. उस समय शीतला माता का चरणामृत एवं प्रसाद ने पशुपालकों एवं किसानों को जबरदस्त राहत पहुंचाई. यही कारण है कि शीतला माता के प्रति लोगो की प्रगाढ़ आस्था जो किसी तिथि का इंतजार नहीं करती.
शीतला मेले के इतिहास की बात जाए तो 1969 (सन 1912) में जयपुर नरेश माधोसिंह के पुत्र गंगासिंह एवं गोपालसिंह के चेचक हुई थी. शीतला माता की कृपा से ठीक हो गई. इसके बाद राजा माधोसिंह ने शील की डूंगरी पर मंदिर एवं बारहदरी का निर्माण कराया. बारहदरी में संगमरमर की पट्टिका लगी हुई है उस पर लिखा हुआ है. इस मंदिर का निर्माण राव राजेन्द्र महाराजाधिराज सर माधवसिंह ने लालजी साहिब राजा गंगासिंह और राजा गोपालसिंह की माताजी की पूजा करवा मिति फाल्गुन सुदी 4 संवत 1969 में पधारया की यादगार में जात्रियों के आराम के लिए बनाया. संवत 1973 (सन 1917ई़) लागत रुपए 11,102 रूपए.
यथा राजा तथा प्रजा, महाराजा की शीलकी डूंगरी पर पूजा करने आना था, कि क्षेत्र की पूरी जनता ही उमड पडी. शीतलाष्टमी पर लक्खी मेला भरने लगा. स्टेट टाइम तक रात को 12 बजे जयपुर दरबार से कंडवारा भरकर भेजा जाता था. उसी का पहला भोग लगा करता था इसके बाद जनता का. अब यह परम्परा बंद हो गई है. माता के एक दिन पहले बने पकवानों का ही भोग लगता आया है. शीतलाष्टमी को पूजाअर्चना के बाद भी लोग ठण्डा खाना ही खाते हैं. माता से प्रार्थना करते हैं कि जानलेवा बीमारी चेचक से रक्षा करें.
Reporter- Amit Yadav
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