Mahalakshmi Seated in Silver Mint: जयपुर की माता "महालक्ष्मी" जी चांदी की "टकसाल" में विराजी, जयपुरवासियों में बरसती है विशेष कृपा
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Mahalakshmi Seated in Silver Mint: जयपुर की माता "महालक्ष्मी" जी चांदी की "टकसाल" में विराजी, जयपुरवासियों में बरसती है विशेष कृपा

 Mahalakshmi Seated in Silver Mint: दिवाली देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने और समृद्धि का आशीर्वाद पाने का फेस्टिवल है. इस दिन लोग घर-घर में माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं. इस अवसर पर देवी लक्ष्मी के मंदिर के दर्शन का भी बड़ा महत्व है. 

चांदी की "टकसाल" में विराजी.

Mahalakshmi Seated in Silver Mint: दिवाली देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने और समृद्धि का आशीर्वाद पाने का फेस्टिवल है. इस दिन लोग घर-घर में माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं. इस अवसर पर देवी लक्ष्मी के मंदिर के दर्शन का भी बड़ा महत्व है. दिवाली है तो आपको दर्शन करवाते हैं करीब 1 हजार साल पुराने जयपुर चांदी की टकसाल स्थित धन और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी मंदिर के दर्शन.

चांदी की टकसाल में मौजूद
अष्ट सिद्धि और नव निधि के आधार पर बसें ढूंढाड़ में जयपुर रियासत की महालक्ष्मी जी का सबसे पुराना मन्दिर चांदी की टकसाल में मौजूद हैं. पुरानी राजधानी आमेर की टकसाल बंद होने के बाद जयपुर के सिरह ड्योढ़ी बाजार में रामप्रकाश लक्ष्मी टॉकिज के सामने चांदी-सोने की मुद्रा ढालने के लिए टकसाल की इमारत बनवाई थी. इस टकसाल में सिक्के ढालने का काम शुरू किया उससे पहले प्रकांड विद्वानों ने धन की देवी महालक्ष्मीजी का अनुष्ठान किया था. रियासत काल में माता महालक्ष्मी के इस मन्दिर में सुबह शाम आरती और विधि विधान से पूजा के बाद ही चांदी के सिक्के और सोने की मोहरे बनाने का का काम शुरू किया जाता था. इस टकसाल में मां लक्ष्मी के अलावा धन के रक्षक भैंरों जी महाराज की भी पूजा होती है. टकसाल की इमारत के चारों कोनों में भोमिया जी को विराजमान किया गया है. माणक पर उत्कीर्ण मां लक्ष्मी की कृपा यहां के व्यापारी ही नहीं जयपुरवासियों में बरसती हैं. हर शुक्रवार को महाआरती का आयोजन होता हैं.

महालक्ष्मी के प्रतिमा का अद्भुत स्वरूप
साथ में दीपोत्सव के दौरान मंदिर पूरे दिन दर्शनार्थियों के खुला रहता हैं. पुजारी राजेन्द्र कुमार शर्मा बताते हैं मां लक्ष्मी माणक से बने कमलासन पर विराजमान हैं. मानसिंह प्रथम ने इस मंदिर की स्थापना करवाई. पहले यहां सोने-चांदी की मुद्रा बनती थी इसलिए इस जगह का नाम चांदी की टकसाल पड़ा और जब यहां मुद्रा बना करती थी उस दौर में महालक्ष्मीजी का मंदिर धनतेरस और दिवाली पर ही खुलता था. fallbackपुराना रिजर्व होने के चलते उस समय आम पब्लिक दर्शन को एंट्री नहीं थी लेकिन आज मंदिर आम दर्शनार्थियों के खुला रहता हैं. पहले जब चांदी की टकसाल पर सोने-चांदी की मोहरे ढ़लाई का काम होता था तो मंदिर भी पहरे में रहता था. सुरक्षाकर्मियों को मंदिर की सुरक्षा के लिए लगा रखा था. मंदिर में विराजमान मां महालक्ष्मी के प्रतिमा का स्वरूप अद्भुत हैं. मां लक्ष्मी के उपर से 11 परी पुष्प वर्षा कर रही हैं. दो गजराज मां लक्ष्मी का सत्कार कर रहे हैं. मां के बराबर में दो उल्लू हैं. उल्‍लू को मां लक्ष्‍मी का वाहन माना जाता है और मां लक्ष्मी अपने भक्तों को मुद्रा आसन में आशीर्वाद देती हुई नजर आ रही हैं.

महालक्ष्मी टेंपल की मान्यता-आस्था और इतिहास
चांदी के टकसाल बाजार के व्यापारी बताते हैं की मां लक्ष्मी के नाम पर ही उन्होने अपने प्रतिष्ठान का नाम रखा हैं. व्यापारियों का कहना हैं की पिछले कई सालों से ये मंदिर बंद था लेकिन बाद में बड़ी लड़ाई के बाद इस मंदिर के दरवाजे आम दशनार्थियों के लिए खुले हैं. इस मंदिर के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी हैं लेकिन व्यापारी हर शुक्रवार को एकत्र होकर महाआरती करते हैं और मंदिर प्रचलित हो इसके लिए हमारे प्रतिष्ठानों पर आने वाले कस्टमर को भी बताते हैं जिससे इस महालक्ष्मी टेंपल की मान्यता-आस्था और इतिहास के बारे में लोगों को जानकारी ज्यादा से ज्यादा मिले. अभी ये मंदिर चांदी की टकसाल पर दुकानों के ऊपर बना हुआ हैं. जिसके लिए गेट के अंदर से सीढियां चढकर ऊपर जाना पडता हैं. व्यापारी उमेश सोनी की माने तो चांदी के झाड़शाही सिक्के और सोने की मोहरों की ढलाई का कारखाना सिरडयोडी बाजार में रामप्रकाश सिनेमा के सामने था. मोहरे, चांदी और ताम्बे के अलावा राजा को भेंट करने के 'नजरी' सिक्के टकसाल में ढलते थे. 

कई स्वर्णकारों को दिल्ली से बुलाकर जयपुर में बसाया गया
सिक्कों का निर्माण कराने के लिए मनोहरलाल पनागीर सहित कई स्वर्णकारों को दिल्ली से बुलाकर जयपुर में बसाया गया. इन्ही के वंशज आज चांदी की टकसाल स्थित महालक्ष्मीजी के मंदिर के नीचे अपना कारोबार करते हैं. उस समय ड्राइंग मास्टर अली हसन सिक्कों की डिजाइन तैयार करते थे. fallbackइस टकसाल के अलावा जंतर-मंतर में सम्राट यंत्र के पूर्व में सिक्के निर्माण का कारखान होने के सबूत 1930 से 35 तक खुदाई के दौरान मिल चुके हैं. तुरफान और खराद लिखे कमरों में चांदी सोना गलाने की भट्टी मिली थी. ठिकानों की मोहर छाप के दस्तावेज भी टकसाल में मौजूद है. ताम्बे के सिक्कों के लिए खेतड़ी की खान से ताम्बा आता और चीन, फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैण्ड आदि देशों से सोना चांदी आता था. आषाढ़ी दशहरा पर महाराजा टकसाल में सोने के हल से मोती की बुवाई का शगुण करते थे.

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सिक्कों पर कचनार के झाड़ का चिह्न
तुलारे, पन्नागीर, मुहरकार, नक्काशकार आदि को टकसाल के बाहर जाने की पाबंदी थी. टकसाल में संगीनों का पहरा रहता और मालगाड़ी से आने वाली सोने-चांदी की सिल्लियों को कड़े पहरे में स्टेशन से लाया जाता. तारकशी विभाग सोने और चांदी पर शुद्धता की छाप लगाता था. शहर के स्वर्णकार सोने की शुद्धता की जांच कराते और बाद, माप और नापने के गज की जांच टकसाल में होती थी. राम राज्य की परम्परा के अनुरूप सिक्कों पर कचनार के झाड़ का चिह्न लगाने की वजह से ढूंढाड़ के सिक्कों का नाम झाड़शाही पड़ा.

बहरहाल, दिवाली पर महालक्ष्मी की भक्त आस्था और मान्यतानुसार पूजन वंदन करते हैं ताकि साल भर माता का आशीर्वाद घर परिवार और प्रतिष्ठान की सुख समृद्धि बना रहे. सनातन धर्म में धन और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माता लक्ष्मी को माना गया है. इन्हें भगवान विष्णु की पत्नी और विष्णु प्रिया नाम से भी जाना जाता है. सामान्यत: मुख्य रूप से लक्ष्मी की पूजा दिवाली पर की जाती है.

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