जयपुर ग्रेटर नगर निगम में महापौर की कुर्सी पर लुका-छिपी का खेल, कोर्ट के ऑर्डर से सौम्या बहाल, माली समाज ने जताई नाराजगी
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जयपुर ग्रेटर नगर निगम में महापौर की कुर्सी पर लुका-छिपी का खेल, कोर्ट के ऑर्डर से सौम्या बहाल, माली समाज ने जताई नाराजगी

अब सौम्या गुर्जर भी बीजेपी की कार्यकर्ता और महापौर प्रत्याशी रश्मि सैनी भी पार्टी की. ऐसे में पार्टी के सामने धर्म संकट यह दिखा कि किसका पक्ष ले और किसका नहीं? लेकिन जब मामला कोर्ट के फैसले का हो तो न किसी की पैरवी की जा सकती है और न ही विरोध. 

जयपुर ग्रेटर नगर निगम में महापौर की कुर्सी पर लुका-छिपी का खेल, कोर्ट के ऑर्डर से सौम्या बहाल, माली समाज ने जताई नाराजगी

Jaipur: जयपुर ग्रेटर नगर निगम में महापौर की कुर्सी पर लुका-छिपी का खेल चलता दिख रहा है. पिछले दिनों महापौर सौम्या गुर्जर की बर्खास्तगी के बाद गुरूवार को नये महापौर के लिए चुनाव भी हो गए, लेकिन वोटों की गिनती से पहले ही हाईकोर्ट के आदेश ने एक बार फिर इस पूरे मामले को रोचक बना दिया. कभी माली समाज को साधने में जुटती दिखने वाली बीजेपी भी पूरे मामले में हैरान दिखी. अब सौम्या गुर्जर भी बीजेपी की कार्यकर्ता और महापौर प्रत्याशी रश्मि सैनी भी पार्टी की. ऐसे में पार्टी के सामने धर्म संकट यह दिखा कि किसका पक्ष ले और किसका नहीं? लेकिन जब मामला कोर्ट के फैसले का हो तो न किसी की पैरवी की जा सकती है और न ही विरोध. 

ऐसे मामले में तो सिर्फ कोर्ट का फ़ैसला ही माना जा सकता है. अब बीजेपी कह रही है कि महापौर चाहे सौम्या गुर्जर बनें, शील धाबाई या रश्मि सैनी. आखिर कुर्सी तो बीजेपी के ही खाते में होगी. बीजेपी ज़ाहिराना तौर पर तो इस तरह का बयान दे रही है, लेकिन इस पूरे मामले ने सियासी खलबली तो मचा ही दी है.

एक बहुत पुरानी कहावत बताती है कि, जब तक आप किसी भी मामले में पूरी तरह जीत नहीं जाएं, तब तक जीत और पूरी तरह हार नहीं जाएं, तब तक हार नहीं माननी चाहिए. पता नहीं जयपुर ग्रेटर नगर निगम की महापौर सौम्या गुर्जर ने यह कहावत सुनी या नहीं, लेकिन ऐसा लगता है कि राजनीतिक घटनाक्रम पर नज़र रखने वाले लोगों को आज इस कहावत का सबसे मजबूत और यादगार उदाहरण देखने को मिल गया. दरअसल महापौर सौम्या गुर्जर पर तत्कालीन आयुक्त यज्ञमित्र सिंह देव के साथ दुर्व्यवहार के मामले में सरकार की कार्रवाई का सामना करना पड़ा. दो बार बर्खास्त की गई सौम्या गुर्जर कोर्ट की शरण में पहुंची.

 दूसरी बार तो बर्खास्त करने के कुछ दिन बाद ही राज्य निर्वाचन आयुक्त ने महापौर के लिए चुनाव कराने का कार्यक्रम भी जारी कर दिया. उधर इसी बीच सौम्या गुर्जर एक बार फिर कोर्ट पहुंच गई. इधर निर्वाचन प्रक्रिया जारी रही. अधिसूचना जारी हुई, बीजेपी और कांग्रेस ने पार्षदों की बाड़ेबन्दी की। प्रत्याशी बनाये गए, नामांकन हुए और वोटिंग तक पूरी हो गई.

दूसरी तरफ़ नेताओं की एक नज़र कोर्ट के फ़ैसले पर भी थी. सात नवम्बर को भी फ़ैसला नहीं आया तो मामला 10 नवम्बर यानि वोटिंग वाले दिन तक के लिए मुल्तवी किया गया. इधर नगर निगम में वोटिंग चल रही थी और उधर हाईकोर्ट ने अपना फ़ैसला सुना दिया. कोर्ट ने सौम्या गुर्जर के बर्खास्तगी के फ़ैसले में खोट मानी. इस खोट के बाद चुनाव प्रक्रिया को लेकर सवाल उठने लगे. राज्य निर्वाचन आयोग से ग्रेटर नगर निगम तक खलबली मचने लगी. और आखिर राज्य निर्वाचन आयुक्त मधुकर गुप्ता ने वकील के जरिए मिली जानकारी का हवाला देते हुए निर्वाचन प्रक्रिया को स्थगित कर दिया.

राज्य निर्वाचन आयुक्त के फ़ैसले से निर्वाचन प्रक्रिया स्थगित होने के साथ ही यह भी तय हो गया कि फिलहाल तो जयपुर ग्रेटर महापौर की कुर्सी पर सौम्या गुर्जर ही बैठेंगी. लेकिन कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद शुरूआती तौर पर जयपुर शहर की सियासत में हलचल मच गई. रश्मि सैनी के जीतने की संभावनाओं को देखते हुए माली समाज के प्रतिनिधि नगर निगम मुख्यालय पहुंच गए थे. 

निर्वाचन प्रक्रिया स्थगित होते ही जब समाज के लोगों को पता लगा कि सौम्या गुर्जर ही महापौर रहेंगी तो समाज के प्रतिनिधि नाराज़ हो गए. उन्हें इसमें भी पार्टी की कमज़ोरी दिखने लगी और वे बीजेपी के नेताओं को कोसने लगे. समाज के नाराज प्रतिनिधि बीजेपी मुख्यालय पहुंचे और प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया के साथ ही संगठन महामन्त्री चन्द्रशेखर से भी मुलाकात कर अपना पक्ष रखा. समाज के प्रतिनिधिमण्डल में प्रदेश मन्त्री अशोक सैनी के साथ ही रोशन सैनी, पिन्टू सैनी, रामवतार और देवकीनन्दन सैनी समेत अन्य लोग मौजूद रहे.

लेकिन इस पूरे मामले में पार्टी न तो कुछ कहने की स्थिति में थी और न कुछ करने की स्थिति में. दरअसल कोर्ट के फ़ैसले के बाद बीजेपी नेताओं और अधिकारियों के पास सिर्फ फ़ैसले की पालना के अलावा फिलहाल तो कोई विकल्प ही नहीं था. बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष से एक समाज के लोगों की प्रतिक्रिया को लेकर सवाल हुआ तो उनका कहना था कि पार्टी ने समाज का सम्मान करते हुए ही रश्मि सैनी को प्रत्याशी बनाया था. चिन्तन भी किया, कैम्प भी लगाया और परिणाम आता तो रश्मि सैनी ही महापौर बनती. पूनिया ने कहा कि कोर्ट के फ़ैसले के बाद परिस्थितियां बदली हैं और इसमें आगे क्या रहेगा यह भविष्य की परिस्थितियों के हिसाब से ही तय होगा.

उधर बीजेपी के प्रदेश मुख्य प्रवक्ता रामलाल शर्मा ने कहा कि पार्टी ने पूरी एकजुटता दिखाई और महापौर के चुनाव में कांग्रेस को घेरने के लिए रणनीति भी बनाई. रामलाल ने कहा कि कोर्ट के फ़ैसले के बाद पार्टी ज्यादा कुछ नहीं कर सकती. उन्होंने कहा कि अब जो भी महापौर हो, कुर्सी पर तो बीजेपी का कार्यकर्ता ही बैठेगा.

बीजेपी के नेता भले इसे कोर्ट का फ़ैसला बता रहे हैं, लेकिन यह भी सच है कि इस लड़ाई में सौम्या गुर्जर कहीं अकेली पड़ गई. माना जा रहा था कि अगर सौम्या गुर्जर की कुर्सी चली गई तो उनके साथ ही उनके पति राजाराम गुर्जर का राजनीतिक कैरियर भी खत्म हो जाएगा. अब बदले हुए हालात में सौम्या गुर्जर की कुर्सी बची है या उनके पति का पॉलिटिकल कैरियर या फिर बीजेपी की प्रतिष्ठा इस बारे में सबके अपने कयास और तर्क है. उधर सौम्या गुर्जर ने कोर्ट के फै़सले के बाद कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर भरोसा था, है और रहेगा. साथ ही सौम्या ने कहा कि उनका संघर्ष भी जारी रहेगा. अब यह संघर्ष पार्टी के बाहरी लोगों से है या भीतर के लोगों से यह तो भविष्य ही बताएगा.

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