Rajasthan News: मकान मालिक सालाना कितना किराया बढ़ा सकता है. जानिए 'राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम 2001' क्या है जिसमें किराएदारों और मकान मालिकों के अधिकार की बात की गई है.
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Rajasthan Rent Control Act 2001: 'राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम 2001' क्या है. क्या आपको अपने अधिकारों के बारे में पता है? एडवोकेट और लॉ के सहायक आचार्य मंयक मेहरा ने इस अधिनियम की महत्वपूर्ण बातें बताई हैं.
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम का मुख्य उद्देश्य किराएदारी से बेदखली, किराएदार द्वारा किराया ना देने पर मकान मालिक के उपचारों के विषयों में बात करता है.यानी आसान भाषा में समझें तो ये कहा जा सकता है कि मकान मालिक और किराएदारों के अधिकारों और दायित्वों की बात करता है. मकान मालिक को किराएदार के साथ एक इकरार नामा (एग्रीमेंट) बनाना होता है. जिसमें वह दोनों यानी मकान मालिक और किराएदार मिलकर ये तय करते हैं कि कितना किराया होगा और किन-किन तरीकों से किराया वसूला जा सकता है.
इस अधिनियम की धारा 7 के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि प्रतिवर्ष किराए में 5 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होगी. अगर 5 प्रतिशत प्रति वर्ष से अधिक किराए की बढ़ोतरी का कोई भी इकरारनामा होता है तो 5 प्रतिशत से ज्यादा शून्य माना जाएगा. (उदाहरण के लिए मान लीजिए कि अगर कोई मकान मालिक किराए में 5 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी करता है तो ये अवैध माना जाएगा.)
इसी अधिनियम की धारा 9 के अनुसार, किराएदारों की बेदखली के कुल 13 आधार बताए गए हैं जिसमें से कुछ ये हैं-
किराएदार के द्वारा 4 महीने (लगातार) किराए की रकम ना देना
किराएदार के द्वारा मकान मालिक की अनुमति के बिना निर्माण करवाना
किराएदार द्वारा परिसर में जानबूझ कर नुकसान करना
किराएदार द्वारा 6 महीने (लगातार) बिना किसी कारण के परिसर में ना रहना
किराएदार द्वारा रेसिडेंशियल के नाम पर किराए की प्रॉपर्टी का कमर्शियल यूज करना
इसके अलावा अन्य आधार बताए गए हैं. इस आधारों पर मकान मालिक किराएदार को मकान से निकाल सकता है.
इस अधिनियम का अध्याय 4 और धारा 11 ये बताती है, अगर कोई मकान मालिक किराएदार को अवैध रूप से बेदखल करता है (without due procedure) और किराएदार की सहमति के बिना उसे निकलता है तो किराएदार के पास ये अधिकार है कि वह 30 दिन के भीतर रेंट ट्रिब्यूनल (Rent Tribunal) में एक याचिका दायर कर सकता है. जिसमें रेंट ट्रिब्यूनल सारी सुनवाई के बाद 90 दिन में मामले का निपटारा करेगा.
धारा 25 के मुताबिक, किराएदार को मकान मालिक द्वारा कम से कम 7 दिन पहले परिसर के निरीक्षण की सूचना देनी होगी. साथ ही साथ मकान मालिक द्वारा किराए पर दिए गए परिसर के निरक्षीण का दिन तय करने का अधिकार होगा लेकिन, मकान मालिक द्वारा ऐसा निरीक्षण प्रत्येक 3 महीने में एक बार से ज्यादा नहीं किया जा सकेगा.
हालांकि राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम के 2017 के संशोधन के अनुसार, रेंट अथॉरिटी (Rent Authority)का गठन किया गया है. रेंट अथॉरिटी का अधिकारी सब डिविजनल ऑफिसर की रैंक से कम का नहीं होगा. इसी संशोधन के अनुसार ही मकान मालिक चाहे तो रेंट की नई दर तय कर सकता है.
अगर मकान मालिक और किराएदार दोनों में से कोई भी पक्षकार रेंट ट्रिब्यूनल के निर्णय से संतुष्ट नहीं है तो इसी अधिनियम की धारा 19 की अनुसार ये प्रवाधान है कि वह 60 दिन के भीतर (अपीलेट रेंट ट्रिब्यूनल में)Appellate Rent Tribunal में अपील कर सकता है. अपीलेट रेंट ट्रिब्यूनल 180 दिन में केस का निपटारा करेगा. अपीलेट रेंट ट्रिब्यूनल का निर्णय अंतिम निर्णय माना जाएगा. उसके आदेश के विरुद्ध अपील या पुन निरीक्षण (Revision) नहीं हो सकता है.
Disclaimer: ये सारी जानकारी एडवोकेट और सहायक आचार्य मंयक मेहरा से संपर्क कर लिखी गई हैं. अत: इस लेख में लिखी गई जानकारी की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं की है.