Holi 2024 : इस साल होली 25 मार्च को राजस्थान समेत देश भर में मनाया जाएगा. होली का पर्व धूम-धाम से पूरे देश में मनाया जाता है. होली अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. ऐसे में जानेंगे की राजस्थान में होली (Rajasthan Ki Holi 2024 ) कैसे मनाते हैं?
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बात होली की हो तो क्या बच्चे क्या बुढ़े मन मचल ही उठता है. दिल-ओ-दिमाग़ पर अपने आप एक खुमारी सी छा जाती है. मन के तार अपने आप बज उठते हैं और रंगों की फुहार पड़ते ही मन मचल उठता है. बात करें राजस्थान में होली तो इसकी बात ही निराली है. यहां की होली रंगों के अलावा अलग-अलग चीजों से खेलने और मनाने का रिवाज रहा है.
यहां होली खेलने और देखने के लिए देश और विदेशी मेहमान तक खींचे चले आते है. इस दिन का इंतजार हर कोई बेसब्री से करता है. तभी तो कहते है कि...प्यार के रंग से रंग दो दुनिया सारी..यह रंग ना जाने जात ना कोई बोली...मुबारक हो आपको रंगों की ये होली.
रंगों का यह त्योहार देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है. हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन होली मनाई जाती है. इस साल होली 25 मार्च को राजस्थान समेत देश भर में मनाया जाएगा. होली का पर्व धूम-धाम से पूरे देश में मनाया जाता है. होली अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. ऐसे में जानेंगे की राजस्थान में होली (Rajasthan Ki Holi 2024 ) कैसे मनाते हैं?
सबसे पहले बात करते है डूंगरपुर की. यहां की होली बेहद निराली होती है. यहां के आदिवासी जमकर होली खेलते है. होली के रंग में आदिवासी (Tribals) एक महीने तक रंगों तक सरावोर रहते हैं. ये आदिवासी सदियों पुरानी परंपरा को निभाते आ रहे है.
होली के त्यौहार में लोग रंग से, फूलों से होली खेलते है लेकिन राजस्थान के वागड़ इलाके में स्थित डूंगरपुर जिले के कोकापुर गांव में दहकते अंगारों पर चलकर होली खेलते है. ये बेहद पुरानी परंपरा है. यह बात सुनकर भले ही आपको हैरान करने वाली बता लगे लेकिन ये सच है. कोकापुर गांव में होली के अवसर पर जलती होलिका पर चलने की वर्षों पुरानी परंपरा है. होलिका दहन के मौके पर यह अनोखा आयोजन होता है.
वहीं भीलूडा में पत्थर मार खूनी होली खेली जाती है. डूंगरपुर जिले में बरसाने की लट्ठमार होली से भी खतरनाक पत्थरमार होली खेली जाती है. जिसे सुनकर आप दहशत से भर जाएंगे. होली पर्व पर रंगों के स्थान पर एक दूसरे पर पत्थर बरसा कर खून बहाने को शगुन मानने का अनोखा आयोजन होता है. इसे स्थानीय बोली में ‘पत्थरों की राड़’ कहा जाता है. इस परंपरा में भीलूड़ा और आसपास के गांवों से लगभग 400 से लेकर 500 लोग प्रतिभागी के रूप में स्थानीय रघुनाथ मंदिर परिसर में एकत्रित होते हैं.
मजे की बात है कि इसके लिए डॉक्टरों की टीम मौजूद होती है. गंभीर रूप से घायल प्रतिभागियों को इलाज के लिए पास के ही अस्पताल ले जाते हैं. घायल होने वाले लोगों के इलाज अस्पाताल में डॉक्टरों की तैनात रहती है.
राजस्थान के जोधपुर, जयपुर और उदयपुर की होली देश ही नहीं विदेशों में भी मशहूर है. विदेशी मेहमान इस होली के इतने दिवाने होते है कि महीनों पहले इस उत्सव को मनाने के लिए यहां पहुंच जाते है. यहां मेवाड़ के राजपरिवार के द्वारा होलिका दहन की जाती है और खुशहाली की कामना की जाती है. इस होली को देखने के लिए दुनियाभर के पर्यटक हिस्सा लेते हैं.
एक महीने पहले से होली का डंडा रोपण सिटी पैलेस के मानक चौक में किया जाता है. इसके बाद होलिका की परिक्रमा मेवाड़ राज परिवार द्वारा की जाती है, इसके बाद होलिका दहन होता है.
इसी वजह से यहां होली को शाही होली कहा जाता है. यहां तक कि पुष्कर शहर में भी इसी तरह होली मनाते हैं. शाही परिवार हर साल होली उत्सव में सक्रिय भाग लेते हैं. उदाहरण के लिए, उदयपुर के राजा सिटी पैलेस में होलिका की चिता स्वयं जलाते हैं, जबकि स्थानीय लोग और पर्यटक होलिका दहन के दिन इसे देख सकते हैं. यहांउपस्थित होने के लिए आपको टिकट खरीदना होगा.
होली को जयपुर और राजस्थान के पड़ोसी क्षेत्रों में धुलंडी त्योहार के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है, और होलिका दहन के दूसरे दिन मनाया जाता है. होलिका दहन या पारंपरिक अलाव होली के पहले दिन सूर्यास्त के बाद मनाया जाता है, और इसे कई नामों से जाना जाता है. धुलेंडी को धुलंडी, धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन जैसे नामों से भी जाना जाता है.
धार्मिक मान्यता के भाभियों को धुलेंडी के दिन पूरी छूट रहती है कि वे अपने देवरों को साल भर सताने का दण्ड दे सकें. भाभियां देवरों को तरह-तरह से सताती हैं और देवर बेचारे चुपचाप झेलते हैं, क्योंकि इस दिन तो भाभियों का दिन होता है. वहीं शाम को देवर अपनी प्यारी भाभी को उपहार देकर आशीर्वाद लेते है.
धुलंडी होली खेलने के लिए और पर्यटकों के मनोरंजन के लिए लोक कलाकार,कालबेलिया नृत्य,कच्छी घोड़ी के साथ इस बार जयपुर विडस बैंड की भी व्यवस्था रहती है. जो बेहद मनमोहक होती है.
अजमेर में माली समुदाय के बीच माली होली खेली जाती है जिसमें पुरुष महिलाओं पर रंग फेंकते हैं और महिलाएं पुरुषों को लाठियों से पीटकर जवाब देती हैं.
राजस्थान के अजमेर में खेली जाने वाली गैर होली में आसपास के कम से कम 12 गांवों के पुरुष अजमेर में इकट्ठा होते हैं और ढोल, संगीत वाद्ययंत्र बजाते हैं जिसका पूरा शहर आनंद उठाता है. इस दौरानसंगीत और वाद्ययंत्रों से निकलने वाली आवाज पर आप थिरकने को मजबूर हो जाएगें. जहां सभी को तरह-तरह की मिठाइयां जैसे गुजिया, मालपोआ, लड्डू आदि परोसी जाती हैं, वहीं आप ठंडाई और भांग का भी स्वाद ले सकते है.
डोलची होली मनाने का तरीका 300 साल से भी ज्यादा पुराना माना जाता है. यह एक विशिष्ट परंपरा है जिसमें पुरुष डोलची नामक एक विशेष बर्तन से दूसरे पुरुषों पर पानी फेंकते हैं. यह बर्तन ऊंट की खाल से बना है. इसकी शुरुआत दो समुदायों के बीच दरार से हुई और इसका कारण था खाना. इन समुदायों के पुरुषों ने दृढ़ संकल्प पाने के लिए डोलची में एक-दूसरे पर पानी फेंकना शुरू कर दिया, जो बाद में एक परंपरा बन गई. इस परंपरा में केवल पुरुष ही भाग ले सकते हैं, जबकि महिलाएं और बच्चे केवल दूर से ही देख सकते हैं.
होली के 7 दिन के बाद शीतला अष्टमी मनाई जाती है. जिसे लेकर भीलवाड़ा में एक अनोखी परंपरा है. बता दें कि पिछले 200 वर्षों से शीतला अष्टमी पर शहर में मुर्दे की सवारी निकाली जाती है. जिसमें एक व्यक्ति को अर्थी पर लेटाकर उसकी शव यात्रा निकाली जाती है. शव यात्रा शहर के मुख्य मार्गों से होती हुई बड़े मन्दिर के पास पहुंचती है. जहां अंत में अर्थी को जला दिया जाता है.
भीलवाड़ा शहर में शीतला अष्टमी सबसे अनुठे तरीके से मनाई जाती है. इस दिन मुर्दे की सवारी निकाली जाती है. इस दौरान लोग ढोल नगाड़ों और रंग गुलाल उड़ाते हुए गीत गाते हुए चलते हैं. अंत में जीवित व्यक्ति बना हुआ मुर्दा सतर्क रहता है जो तुरंत अपनी जान बचा लेता है.
इस शव यात्रा में लोग अर्थी के आगे ढोल नगाड़ों के साथ नाचते गाते, हंसी के गुब्बारे छोड़ते हुए और अश्लील फब्तियां कसते हुए चलते हैं. वहीं गुलाल के बादलों से पूरा शहर रंगमय हो जाता है. जिन मार्गों से यह यात्रा निकलती है उन मार्गों पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित होता है.
सलूंबर जिले के सेमारी में करकेला धाम की नारियल वाली होली लोगों को लंबे समय से आकर्षित करती रही है. करकेला धाम में नारियल से होली खेलने की परंपरा है. यहां बरसाने की लठमार होली की तरह नारियल को एक-दूसरे पर मारकर होली नहीं खेली जाती है. करकेला धाम में लोग होलिका को नारियल भेंट कर होली मनाते हैं.
इसके अलावा राजस्थान में लठमार होली भरतपुर और करौली में प्रसिद्ध है. लट्ठमार होली को राधा-कृष्ण के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है. पुरुष द्वारा महिलाओं पर रंग बरसाया जाता हैं और राधा रूपी गोपियां उन पर लाठियों से वार करती हैं. उनसे बचते हुए पुरुषों को महिलाओं पर रंग डालना होता है. वहीं जयपुर के आदिदेव गोविंद देवजी के मंदिर में होली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. यहां ब्रज की तर्ज पर फूलों की लाल और पीली पंखुड़ियों के साथ होली खेली जाती है. यहां संगीत और नृत्य का मनभावन संगम होता है साथ ही गुलाब और अन्य फूलों से होली खेली जाती है.
तो आप भी राजस्थान की होली में सरावोर और यहां की परंपराओं को जानना चाहते है तो इस होली में राजस्थान में जरूर पधारे. इस होली (holi celebration) का खुमार स्तानीय लोगों के साथ विदेशी मेहमानों के सिर चढ़कर बोल रहा है.