Explainer: जानिए, 3 नए आपराधिक कानून के बारे में जो 1 जुलाई से लागू होने जा रहे हैं...ADG का क्या कहना है
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Explainer: जानिए, 3 नए आपराधिक कानून के बारे में जो 1 जुलाई से लागू होने जा रहे हैं...ADG का क्या कहना है

Rajasthan News: रितु शुक्ला ने कहा कि देश में समय के साथ बदलते अपराधों को देखते हुए केंद्र सरकार ने ये नए तीन कानून मील का पत्थर साबित होंगे. इन कानूनों के जरिए एक ओर जहां पीड़ित को त्वरित न्याय मिलेगा, वहीं दूसरी ओर पुलिस तय समय में प्रकरणों की जांच करेगी.

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Rajasthan News: संसद से पास हुए तीन नए आपराधिक कानून देश भर में एक जुलाई से लागू होने वाले हैं. नए कानून भारतीयता, भारतीय संविधान और आमजन को राहत पर केंद्रित रखे गए हैं. केंद्र सरकार की ओर से तीनों नए कानूनों को लागू करने के लिए पुलिस और न्यायपालिका की ओर से तैयारियां जोरों पर है. इसके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे है. तो वहीं आमजन को इनके बारे में जागरूक कर इन कानूनों को लागू करने के पीछे सरकार के मकसद से रूबरू कराया जा रहा है.

इसी सिलसिले में प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो की ओर से जयपुर के झालाना स्थित आरआईसी में मीडिया के लिए परिचर्चा का आयोजन कर तीनों कानूनों के बारे में बारीकी से जानकारी दी गई.

केंद्र सरकार ने तीनों नए आपराधिक कानूनों को 1 जुलाई 2024 से लागू करने का नोटिफिकेशन जारी कर द‍िया है. 23 फरवरी को जारी किए गए इस नोटिफिकेशन के बाद अब वर्तमान में लागू ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम निर्धारित तारीख से खत्म हो जाएंगे. केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचित किए गए भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम तीनों नए कानून आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलने का काम करेंगे. तीनों कानूनों का खास मकसद विभिन्न अपराधों को परिभाषित कर उनके लिए सजा तय करके देश में आपराधिक न्याय स‍िस्‍टम को पूरी तरह से बदलना है.

मालिनी अग्रवाल, एडीजी ट्रेनिंग– राजस्थान ने बताया कि केंद्र की ओर से देश में लागू होने वाले तीनों नए कानूनों को अमलीजामा पहनाने के लिए पुलिस और न्यायपालिका ने भी कवायद तेज कर दी है. इसके लिए केंद्र सरकार और राज्यों के बीच लगातार बैठकों का दौर जारी है. केंद्र के निर्देशों के बाद राज्य सरकारों ने भी तीनों कानूनों के बारिकी से अध्ययन के लिए मास्टर ट्रेनर तैयार कर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए है.

उन्होंने कहा कि आईपीसी कानून में 511 धाराएं थीं जबक‍ि नए बीएनएस में 358 धाराएं होंगी. नए कानून में 21 नए अपराधों को भी सम्‍मलि‍त क‍िया गया है. सीआरपीसी में 484 धाराएं थीं, जबकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संह‍िता यानी बीएनएसएस में 531 धाराएं होंगी. नए कानून में सीआरपीसी की 177 धाराओं को बदला गया है और 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं. नए कानून को लाते हुए 14 धाराएं समाप्त भी गई हैं. भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत 170 धाराएं होंगी, जबकि अभी तक इसमें 166 धाराएं हैं.  मुकदमे के सबूतों को कैसे साबित किया जाएगा, बयान कैसे दर्ज होंगे, यह सब अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत 170 धाराओं के तहत ही होगा. नए कानून लाने में 24 धाराओं में बदलाव किया गया है और 2 नई धाराएं भी साक्ष्य अधिनियम में जोड़ी गई हैं. नए कानून में पुरानी 6 धाराओं को समाप्त भी किया गया है.

उन्होंने कहा कि तीनों नए कानूनों को लागू करने की तैयारी के साथ ही इन कानूनों से आमजन को होने वाले फायदे से रूबरू कराने के लिए सरकार ने जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए है. इन कार्यक्रमों के जरिए नए कानूनों को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर कर इन कानूनों में समयबद्ध रूप से न्याय मिलने की जानकारी दी जा रही है. देश में तीनों नए कानून लागू होने के बाद हर अपराध का पंजीकरण हो सकेगा और पीड़ित को तय समय से न्याय भी मिल सकेगा. इससे अदालतों में लंबित मुकदमों के निस्तारण में भी तेजी आएगी.

उन्होंने बताया कि नए कानून के तहत पुलिस को भी कई तरह की शक्तियां प्रदान की गई हैं. अब किसी भी जिले का एसपी अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए टेररिस्ट एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर सकता है. संगीन अपराधों में लिप्त बदमाशों और अन्य शातिर बदमाशों को हथकड़ी लगाने के लिए नए कानून के तहत अब मजिस्ट्रेट से परमिशन लेना जरूरी नहीं होगा.ऐसा अपराध जिसमें 3 से 7 साल तक की सजा का प्रावधान है ऐसे प्रकरणों में थाना अधिकारी के पास यह शक्ति होगी कि वह FIR दर्ज न कर पहले PE दर्ज कर उसकी जांच करें और जरूरत पड़ने पर 14 दिन बाद FIR दर्ज करे. इसके लिए थानाधिकारी को डीएसपी की अनुमति लेना जरूरी होगा. टेररिस्ट एक्ट और ऑर्गेनाइजड क्राइम में लिप्त बदमाशों की संपत्ति को विदेश में भी सीज किया जा सकेगा और भारत में अपराध कर विदेश भागने वाले बदमाश के खिलाफ भी ट्रायल नहीं रुकेगा.पुलिस को यह शक्ति भी प्रदान की गई है की कानून व्यवस्था की ड्यूटी के दौरान किसी भी व्यक्ति को मौखिक विधिक निर्देश दे सकती है.

रितु शुक्ला (एडीजी– पीआईबी) ने कहा कि  पालना नहीं करने वाले व्यक्ति को 24 घंटे तक अपनी कस्टडी में रख सकती है. ऐसे अपराध जिन में छोटी सजा का प्रावधान है ऐसे आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजने की जगह सामुदायिक सेवा का एक नया सेक्शन नए कानून में जोड़ा गया है.

उन्होंने कहा कि  नए कानून के तहत 5 या उससे ज्यादा व्यक्ति यदि जाति के आधार पर, धर्म के आधार पर या अन्य कारणों से किसी व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या करते हैं तो मोब लिंचिंग के तहत प्रकरण दर्ज कर उनके खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान किया गया है.  अंग्रेजों के समय से चले आ रही राजद्रोह की धारा को खत्म कर देशद्रोह की धारा को लाया गया है. जीरो FIR और ई–एफआईआर को नए कानून में जगह दी गई है. स्नैचिंग की वारदातों, दुष्कर्म की वारदातों, आत्महत्या के प्रयास और ट्रांसजेंडर के अपराधों से संबंधित नई धाराएं कानून में जोड़ी गई हैं.

नए कानून के तहत 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को बच्चा माना जाएगा. अब थानों में कोई भी परिवादी लिखित और मौखिक रूप से FIR दे सकता है जिसे SHO को हूबहू दर्ज करना होगा. परिवादी ई–एफआईआर दर्ज करने के 3 दिन बाद थाने में जाकर हस्ताक्षर कर FIR की कॉपी प्राप्त कर सकता है. वहीं थाना अधिकारी को थाने में दर्ज हुई FIR 15 दिन बाद मजिस्ट्रेट को भेज उसके बारे में अवगत कराना होगा.  FIR दर्ज करने के 90 दिन बाद पुलिस पीड़ित को यह बताएगी कि उसके प्रकरण में क्या-क्या कार्रवाई की गई. FIR दर्ज होने के बाद चालान और उसको लेकर हुए जजमेंट तक सब कुछ डिजिटल होगा.

रितु शुक्ला ने कहा कि महिला से संबंधित अपराधों को लेकर कानून में कई तरह के बदलाव किए गए हैं.  महिला अधिकारी ही महिलाओं के बयान दर्ज करेगी और महिला मजिस्ट्रेट के समक्ष ही बयान होंगे. यदि मजिस्ट्रेट महिला नहीं है तो मजिस्ट्रेट किसी महिला को बुलाकर उसके सामने महिला के बयान दर्ज करेगा. किसी भी मामले में 3 साल में फैसला सुनाया जाएगा. नए कानून में यह महत्वपूर्ण बात यह है कि भ्रष्टाचार के मामले में पकड़े गए अधिकारियों की अभियोजन स्वीकृति यदि संबंधित विभाग द्वारा या सरकार द्वारा 120 दिन तक नहीं दी जाती है तो 121वें दिन उस मामले में उस संबंधित अधिकारी के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति देना माना जाएगा.  ऐसा कोई भी मामला जिसमें 10 साल से अधिक की सजा का प्रावधान है उसमें मजिस्ट्रेट के सामने ही बयान दर्ज होंगे. वहीं विभिन्न न्यायालय में चल रहे मामलों को राज्य सरकार विड्रो नहीं कर सकेगी और पीड़ित का पूरा पक्ष न्यायालय के द्वारा सुना जाएगा.

रितु शुक्ला ने कहा कि देश में समय के साथ बदलते अपराधों को देखते हुए केंद्र सरकार ने ये नए तीन कानून मील का पत्थर साबित होंगे. इन कानूनों के जरिए एक ओर जहां पीड़ित को त्वरित न्याय मिलेगा, वहीं दूसरी ओर पुलिस तय समय में प्रकरणों की जांच करेगी और अदालत तय समय में प्रकरणों का निस्तारण करेगी.

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