पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है 1400 साल पुराना बाड़ौली मंदिर,जानें रहस्य
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पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है 1400 साल पुराना बाड़ौली मंदिर,जानें रहस्य

जिले के रावतभाटा में स्थित बाड़ौली मंदिर पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है.नजदीक बड़े शहर कोटा से 50 किलोमीटर दूर रावतभाटा के सटे बाडोलिया में स्थित बाड़ौली मंदिर 9 मंदिरों का समूह है.

पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है 1400 साल पुराना बाड़ौली मंदिर,जानें रहस्य

चित्तौड़गढ़: जिले के रावतभाटा में स्थित बाड़ौली मंदिर पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है.नजदीक बड़े शहर कोटा से 50 किलोमीटर दूर रावतभाटा के सटे बाडोलिया में स्थित बाड़ौली मंदिर 9 मंदिरों का समूह है. जिसमें मुख्य मंदिर घाटेश्वर महादेव का है.

बताया जाता है कि बाड़ौली मंदिर नवीं तथा दसवीं शताब्दी में शैव पूजा का एक केंद्र था, जहाँ शिव तथा शैव परिवार के अन्य देवताओं के मंदिर थे. बाडोली के 9 मंदिरों के समूह में घटेश्वर मंदिर में शिव के नटराज स्वरुप को विशद रुप से उत्कीर्ण किया गया. इन मंदिरों को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का कार्य जेम्स टॉड ने किया था. कहा जाता है कि औरंगजेब ने भारत पर हमला किया तब मंदिर की मूर्तियों को खंडित कर दिया. हालांकि अभी भी मंदिर की शिल्पकला और नक्काशी आगंतुकों को खूब आकर्षित करती है.

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राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक में शामिल बाड़ौली स्थित इस समूह में कुल नौ छोटे-बड़े मंदिर सम्मिलित है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों का निर्माण काल स्थापत्य शैली के आधार पर दसवीं ग्याहवीं शताब्दी आंका गया है. ये मंदिर शिव, विष्णु, गणेश, महिषासुरमर्दिनी तथा माता जी आदि को समर्पित है. इस समूह में सबसे विशाल मंदिर घटेश्वर महादेव का है, जिसका निर्माण दसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में हुआ. इस मंदिर में एक गर्भगृह अंतराल और अर्द्धमण्डप की योजना है. जबकि शृंगारचौरी के नाम से प्रसिद्ध रंगमण्डप परवर्तीकालीन है. सम्भवतः इस मंदिर का नामकरण इसके गर्भगृह में स्थापित घट अथवा घड़े की आकृति के शिवलिंग के कारण किया गया . अर्द्धमण्डप के सामने के स्तम्भों पर टिके एवं प्रचुरत में अलंकृत मकरतोरण व अन्य स्तम्भों पर उत्कीर्ण स्त्री मूर्तियां एवं अर्द्धमण्डप की छतों का अलंकरण दर्शनीय है.

जिसे देख कर पर्यटक अभिभूत हो उठते हैं..

कहा जाता है कि बाड़ौली मंदिर का निर्माण गुर्जर प्रतिहार सम्प्रदाय के समय हुआ था. वहीं स्टेट गवर्मेंट के पाठ्यक्रम में हूण शासक तोरमाण के पुत्र मेहरिकुल की ओर मंदिर का निर्माण करवाने का जिक्र मिलता है. बड़ौली मंदिर स्थापत्यकला की दृस्टि से प्रसिद्ध है. यह मंदिर ब्रम्हाणी ओर चंबल नदियों के संगम पर इस मंदिरो का निर्माण करवाया गया है.

शिव को समर्पित है चार मंदिर

बाड़ौली के 9 मंदिरों के समूह में प्रमुख मंदिर घाटेश्वर महादेव का माना जाता है. मंदिर में नक्काशीदार बड़े पथ्थरो के खम्भों का एक बड़ा हॉल और एक नृत्य करते हुवे भगवान शिव , विष्णु , और ब्रम्हा सहित अन्य कई भगवान की प्रतिमाए बारीकी से नक्काशीदार शिखर का निर्माण करवाया गया है.
बाड़ौली का यह मंदिर पर्यटक और तीर्थ स्थलों में से एक है जो पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र माना जाता है. 9 मंदिरों के समूह में तीन मंदिर मुख्य परिसर और 5 मंदिर परिसर के भीतर ही एक अलग अहाते में स्थित है. इसके अलावा करीबन 1 किलोमीटर की दुरी पर देवी का नौवा प्राचीन मंदिर स्थित है. इन मंदिरों में से चार मंदिर शिव को समर्पित है. इस में दो देवी दुर्गा को समर्पित है बाकि के मंदिर एक शिव त्रिमूर्ति , विष्णु, और भगवान गणेश को समर्पित है.

मंदिर समूह के घाटेश्वर मंदिर, वामनवतार मंदिर, गणेश मंदिर, त्रिमूर्ति मंदिर, अष्टमाता मंदिर, शेषशयन मंदिर वास्तुकला और अलंकरण के अध्ययन करते हुवे इन मंदिरों का अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि इन मंदिरों को कुछ अलग-अलग तीन अवधियों में इसका निर्माण करवाया गया है. सबसे प्राचीन मंदिरो में प्रथम समूह में 1 और 4 दूसरे समूह में 7, 6 हैं और तीसरा समूह 2,3 और 4 शामिल है.

मंदिर नंबर 1 :
इस मंदिर का गर्भगृह और अंतराल का निर्माण किया गया है. यह मंदिर का शिखर नष्ट हो चुका है. मंदिर में कोई मूर्ति नहीं बची है, लेकिन गर्भगृह में एक शिवलिंग स्थापित है.

मंदिर नंबर 2 :         

इस मंदिर नंबर 2 खंडहर में गर्भगृह,अंतराल और अर्धनंदपा स्थित है. तालचंद में गर्भगृह त्रिरथ है. इस मंदिर का प्रवेश द्वार शंख का बनाया गया है. इस मंदिर के पद्मासनका को छोड़कर सभी सीढिया है. इस मंदिर के शेषायय भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित थी लेकिन वर्तमान समय में यह भगवान विष्णु की प्रतिमा संग्रहालय में संरक्षित है.

मंदिर नंबर 3 :
3 नंबर मंदिर में पत्थर से निर्मित इस मंदिर में ईंटों का भी उपयोग किया गया है. यह मंदिर का निर्माण एक जलाशय के मध्यमे बनाया गया है. इस मंदिर के निर्माण में गर्भगृह और मुखारविंद समतल हैं. इस मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है. यह मंदिर के गर्भगृह की तीन दिशाओं में से प्रवेश द्वार और मंदिर की पीछे की दीवार जाली से बनवाई गई है. इस मंदिर का निर्माण गर्भगृह पंचरथ प्रकार जैसे करवाया गया है. मंदिर में चैत्यगक्शा और अमलक रूपांकनों का भी उल्लेख शिखर किया गया है.

मंदिर संख्या 4 :

यह मंदिर त्रिमूर्ति के नाम से पहचाना जाता है इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की महेश अवतार की प्रतिमा स्थित है. जिस प्रतिमा को त्रिमूर्ति के नाम से पहचाना जाता है. इस मंदिर का गर्भगृह पंचरथ प्रकार जैसे इसका निर्माण करवाया गया है. इस मंदिर के निर्माण में पीठ ,जांध और ऊपर का हिस्सा शीर्ष है. इस मंदिर की ललाट पर भगवान नटराज की प्रतिमा स्थापित थी. इस मंदिर के द्वार के दोनों और गंगा और यमुना और प्रतिहारी की प्रतिमाये स्थापित है इस प्रतिमाओं के हाथो में नमस्कार करते समय कमल के पुष्प और पौधो के माध्यम नाग की मूर्ति को नक्काशीदार से अलंकृत किया गया है.

 24 साल पहले सन 1998 में मूर्ति तस्करों ने बाड़ौली मंदिर से भगवान नटराज की मूर्ति चोरी चुरा ली और इसे लंदन में 85 लाख में बेच दिया था. वहीं,  चोरों ने असली की जगह मंदिर के पास ही खेतों में नकली मूर्ति छोड़ दी थी. जिसे विभाग ने असली मानते हुए गौदाम में रखवा दिया था. इसके बाद वर्ष 2003 में जयपुर पुलिस अधीक्षक आनंद श्रीवास्तव ने ऑपरेशन ब्लेक होल के दौरान मूर्ति चोर गिरोह का पर्दाफाश किया, जिसमें मूर्ति के लंदन स्थित म्यूजियम में रखे होने की जानकारी मिली.

जिसके बाद विभाग के अथक प्रयासों के चलते 10 अगस्त 2020 को मूर्ति वापस भारत लाया गया और फिलहाल नई दिल्ली स्थित आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया के हेड क्वार्टर में रखी है, और इसे राजस्थान लाने की तैयारी हो रही है.

दुर्दशा का शिकार हो रहा मंदिर

प्रदेश सहित पूरे भारत वर्ष के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र विश्व धरोहर बाड़ौली मंदिर अब धीरे धीरे दुर्दशा का शिकार होता नजर आ रहा है.
इस मंदिर की देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के जिम्मे है. मंदिर की देखरेख के नाम पर यहां 4 जनों का स्टॉफ लगा रखा है. लेकिन सही मायनों में करीब चौदह सौ साल पुरानी धरोहर को सार संभाल की दरकार है.

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विभाग की ओर से करीब 12 साल पहले मंदिर की इमारतों की केमिकल धुलाई कार्रवाई. जिसके बाद से सुध नही ली, और अब मंदिर की खूबसूरती धूल मिट्टी और बरसात में जमी काई के पीछे छिपती जा रही है. वहीं,  करीब 10 से 15 साल पहले बरसाती नाले की वजह से मंदिर परिसर की एक दीवार ढह गई गई. जिसे सही करवाने के लिए आज तक बजट नही मिल सका. रोजाना दर्जनों आवारा मवेशी मंदिर परिसर में प्रवेश कर जाते है, और गंदगी फैलाते है. वहीं वर्तमान में मंदिर आगंतुकों के लिए पीने के पानी सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं का अभाव है.

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Reporter- Deepak vyas

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