विधानसभा में फिर से राजेंद्र राठौड़ के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस, चर्चा के लिए तारीख तय नहीं
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विधानसभा में फिर से राजेंद्र राठौड़ के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस, चर्चा के लिए तारीख तय नहीं

राजस्थान विधानसभा में विशेषाधिकार हनन का मामला एक बार फिर चर्चा में है.अबकी बार मुख्यमंत्री के सलाहकार संयम लोढ़ा ने प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है. यह नोटिस विधायकों के इस्तीफे का मामला हाई कोर्ट में ले जाने पर दिया है. उधर बीजेपी भी विशेषाधिकार हनन के मामले से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार होने का दावा कर रही है.

विधानसभा में फिर से राजेंद्र राठौड़ के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस, चर्चा के लिए तारीख तय नहीं

जयपुर: राजस्थान विधानसभा में एक बार फिर से विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया गया है. निर्दलीय विधायक और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सलाहकार संयम लोढ़ा की तरफ से यह नोटिस विधानसभा के सचिव को दिया गया. दरअसल, पूरा मामला 25 सितंबर को हुए घटनाक्रम से जुड़ा है, जिसमें कांग्रेस पार्टी और सरकार समर्थक कुछ निर्दलीय विधायकों ने स्पीकर डॉक्टर सीपी जोशी के समक्ष पेश होकर अपने इस्तीफे दिए थे. इस मामले में बीजेपी का प्रतिनिधिमंडल भी स्पीकर से मिला था.

स्पीकर ने मामले की कानूनी पहलू दिखाने की बात कही थी, लेकिन कोई फैसला नहीं हुआ. लिहाजा प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ न्यायालय की शरण में चले गए. 1 दिसंबर को राजेंद्र राठौड़ ने मामले में राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका लगाई. इस मामले में कोर्ट ने अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं दिया है. उधर विधानसभा सचिव की तरफ से भी कोर्ट में एक शपथ पत्र पेश किया गया है, जिसमें मामले में विधायकों की तरफ से इस्तीफा वापस लेने की बात कही गई है.

इस बीच निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा का आरोप है कि स्पीकर की तरफ से मामला तय नहीं किया गया है. ऐसे में मामला तय किए जाने से पहले इसे कोर्ट में ले जाना विधायकों के विशेषाधिकार हनन का मामला बनता है. विधानसभा की प्रक्रिया के नियम 157 के तहत दिए गए नोटिस में संयम लोढ़ा कहते हैं कि इस मामले को न्यायपालिका की तरफ से भी सुनवाई लायक कंसीडर नहीं किया जाना चाहिए था.

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बीजेपी इस मुद्दे का डटकर करेगी मुकाबला- राठौड़

विधायक संयम लोढ़ा ने विधानसभा सचिव को नोटिस तो दे दिया गया है लेकिन अभी तक इस पर सदन में चर्चा के लिए कोई वक्त या तारीख मुकर्रर नहीं हुई है. उधर प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ का कहना है कि वह वैसे तो इस मामले में विशेषाधिकार हनन बनता ही नहीं है, लेकिन अगर फिर भी संख्या बल के दम पर सरकार इस मामले को सदन में लाती है, तो बीजेपी और खुद राठौड़ इसका डटकर मुकाबला करेंगे. इसके साथ ही बीजेपी विधायक और पार्टी के प्रदेश मुख्य प्रवक्ता रामलाल शर्मा का कहना है कि चाहे यह विशेषाधिकार हनन राजेंद्र राठौड़ के खिलाफ हो या पूरी पार्टी के खिलाफ सदन में उसका पूरी मजबूती से मुकाबला किया जाएगा.

विधायिका और न्यायपालिका के बीच संबंधों पर उपराष्ट्रपति दे चुके हैं नसीहत

विधायिका और न्यायपालिका के बीच संबंधों को लेकर पिछले दिनों पीठासीन अधिकारियों के अखिल भारतीय सम्मेलन में भी इसी सदन में भी चर्चा हुई थी. तब देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी कई मामलों में न्यायपालिका के गैर जरूरी दखल को गैर वाजिब बताते हुए कहा था की न्यायपालिका और विधायिका को अपनी अपनी सीमा समझनी चाहिए.

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ऐसे मामले विधायिका और न्यायपालिका में तल्खी बढ़ा सकते हैं

अब ताजा मामले में एक बार फिर ऐसे ही हालात बनते दिख रहे हैं. अगर इस मामले पर स्पीकर ने सदन में चर्चा की इजाजत दी तो कई पुराने ज़ख्म भी उभर सकते हैं. जानकारों का कहना है कि अगर सदन में इस पर चर्चा हुई तो ऐसा नहीं कि यह मामला सिर्फ राजस्थान की राजनीति और प्रदेश की विधानसभा तक सीमित रहेगा, बल्कि देश भर में अब से पहले हुए अलग-अलग मामले भी इस चर्चा में आएंगे. इस बीच यह भी कहा जा रहा है कि ऐसे मामले विधायिका और न्यायपालिका में तल्खी बढ़ा सकते हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल तल्खी बढ़ने के डर से सही और गलत के भेद को नजरअंदाज किया जा सकता है.

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