Bikaner news: राजस्थाम का बीकानेर शहर परंपराओं का शहर है. लोग यहां कई सालों पुरानी परंपरा को आज तक निभाते है. दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का विधान सदियों से निभाया जाता है.
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Bikaner news: राजस्थाम का बीकानेर शहर परंपराओं का शहर है. लोग यहां कई सालों पुरानी परंपरा को आज तक निभाते है. दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का विधान सदियों से निभाया जाता है. बीकानेर सालों से एक ऐसी परंपरा को निभाते आ रहा है जो एक ऐसी कला है जो आग से खेला जाता है.
बीकानेर के बारहगुवाड़ चौक पर पिछले 200 सालों से निभाई जा रही है. स्थानीय लोग इसे बनाटी खेल के नाम से जाना जाता है. इसे दूसरी भाषा में छंगणी कहते हैं कि करीब 200 सालों से त्तकालीन समाज के बुजुर्गो ने इसकी शुरुआत की थी. इसका आयोजन दिवाली के एक दिन पहले छोटी दिवाली की रात को मनाई जाती है. इसका उद्देश्य बस इतना है की लोग एक साथ एकत्र होकर प्रेम भाव बनाए रखना है. यह परंरपरा आज भी उसी उद्देश्य से मनाया जाता है.
क्या है ये खेल
छंगाणी समाज कहते हैं कि बनाटी एक मसाल के रुप में होता है जिसका वजन लगभग 8 से 10 किलो होता है. जिसको घुमाने की प्रक्रिया भी खास होती है . इसको सिर और पैरों के बीच से निकाला जाता है जो जरा भी आसान नहीं होता है. बांस की लकड़ी के दोनों तरफ से आग लगाया जाता है. क्योकी बांस के दोनों हिस्सों में सूत को लपेट कर और इसे दो दिन पहले से ही डीजल में भिगोकर रखा जाता है.
आगे भी निभाई जायेगी परंपरा
इसको उठाने के लिइ मोहल्ले के युवा एक सप्ताह से प्रशिक्षण लेते हैं. मोहल्ले के बुजुर्ग इस कला के लिए युवाओं को तैयार करते है. यह खेल शरीर के बल को दिखाता है. यहां के युवा कहते की यह हमाका दायित्व है की इस परंपरा को आगे भी निभाते रहें.
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