मुख्यमंत्री भी गांधीसागर तालाब का दौरा कर चुके हैं तो हाइकोर्ट व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी तालाब में जमा गंदगी को खतरनाक माना है.
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Bhilwara: भीलवाड़ा का गांधीसागर तालाब दुर्दशा का दंश झेल रहा है,पर तालाब की दुर्दशा पर सुनवाई करने वाला कोई नहीं है.शहर के सात नालों का पानी अब भी इस तालाब में गिर रहा है, हालांकि नगर परिषद ने एनजीटी में शपथपत्र दे रखा है कि अब नालों का पानी इसमें नहीं डाला जाएगा. वर्तमान कलेक्टर कलक्टर आशीष मोदी से लेकर गत सालो के आए दर्जनों कलेक्टरों ने भी तालाब का निरीक्षण किया, किसी ने सात दिन तो किसने एक महीने में गंदा पानी रोकने के निर्देश दिए, लेकिन आदेशों की पालना अब तक भी नहीं हुई हैं. नगर परिषद की ओर से गांधीसागर तालाब में गंदा पानी रोकने का काम तो हो नहीं रहा लेकिन विकास के नाम पर और बजट खर्च करने की तैयारी में है. अब नए फाउंटेन लगाने और टापू बनाने का विचार है. गत दिनों निरीक्षण करने आए जिला कलक्टर ने भी कहा था, जब तक इसकी सफाई नहीं होती, पैसा खर्च करने का कोई औचित्य नहीं है.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने माना खतरनाक
मुख्यमंत्री भी गांधीसागर तालाब का दौरा कर चुके हैं तो हाइकोर्ट व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी तालाब में जमा गंदगी को खतरनाक माना है. सफाई के नाम पर करोड़ों रुपए का धुआं हो गया लेकिन नतीजा अभी तक सिफर रहा. तालाब में गंदे पानी की आवक रूक नहीं रही. भीषण गर्मी में बिना बारिश भी गांधीसागर तालाब पर गंदगी की चादर चलती रही, अब बरसात का दौर तो और ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है. एनजीटी में पर्यावरणविद् बाबूलाल जाजू की रिट पर राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने गांधीसागर के पानी का नमूना लिया था, जिसकी रिपोर्ट भी चौकाने वाली आई थी. तालाब में बायोलोजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) 33 मिलीग्राम आई, जबकि मानक तीन मिग्रा प्रतिलीटर या उससे कम है, पीएच भी आठ के स्तर पर आया है और डिजॉर्ड ऑक्सीजन शून्य आया जो 5 आना चाहिए था.
सबसे गंदे शहर की मिली उपमा
गांधीसागर के इस जहरीले पानी को पीने से मछलियां ही नहीं, पशु-पक्षी भी मर रहें हैं. एनजीटी के आदेश के बावजूद इसमें कई कॉलोनियों व उद्योगों का जहरीला पानी जा रहा हैं. शहर की बिगड़ी सफाई व्यवस्था के लिए केवल और केवल परिषद और प्रशासन को जिम्मेदार ठहराना एक हद तक सहीं नहीं है, क्योंकि परिषद ने नगर परिषद भीलवाड़ा के नाम से एप्लिकेशन बना कर लोगों की समस्याओं के निदान का प्रयास किया,लेकिन वह फ्लॉप हो गई. खुले में शौचमुक्त के लिए टीम जब सर्वे करने आई तो कीरखेड़ा में लोग खुले में शौच करते पाए गए. इस पर शहर को ओडीएफ के दायरे से बाहर कर दिया गया. परिषद का कम्पोस्ट प्लांट अधिकांश समय बंद ही रहा तो सर्वे टीम ने कचरे का निस्तारण सहीं नहीं मानते हुए अंक काट दिए. परिषद ने छह जगह स्मार्ट ड्स्टबिन लगाए, ताकि बाजार साफ रहें, लेकिन लोगों ने उसे भी फेल कर दिया. शहर के सभी वार्डो में ऑटोटिपर से घर-घर कचरा संग्रहण किया जाता है, लेकिन जनता इसमें भी यह बहाने बनाती है कि ऑटोटिपर बहुत जल्दी आता है, हम तो नौ बजे उठते हैं. ऑटोटिपर देरी से आता है, तब तक हम ऑफिस चले जाते हैं. ऑटोटिपर आता है, लेकिन रुकता नहीं है, ऐसे में कचरा डालने का समय नहीं मिलता. इस तरह की बातों ने आज शहर को सबसे गंदे शहर की उपमा दी है, लेकिन शहर की जनता को इससे कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा.
Reporter- Dilshad Khan
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