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Rajgarh-Laxmangarh Alwar Vidhansabha Seat: राजधानी दिल्ली और जयपुर के बीच में स्थित राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. यहां कभी त्रिकोणीय तो कभी चतुष्कोणीय और पंचकोणीय मुकाबले भी होते रहे हैं. साथ ही इस सीट पर अब तक सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड कांग्रेस के नाम रहा है, लेकिन यह सीट कभी भी कांग्रेस का गढ़ नहीं बन सकी. वक्त-बे-वक्त यहां तीसरी शक्ति सिर उठाती रही है. यहां से मौजूदा विधायक जोहरी लाल मीणा हैं.
राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र से सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड समरथ लाल मीणा के नाम रहा है. उन्होंने कुल पांच बार जीत हासिल की. जिसमें से एक बार कांग्रेस, एक बार निर्दलीय और तीन बार भाजपा की टिकट पर जीते. इस सीट से गोलमा देवी भी जीत चुकी हैं.
इस सीट पर तकरीबन 50 फीसदी से ज्यादा आबादी मीणा जनजाति की है. वहीं इसके बाद एससी और ब्राह्मण समुदाय का भी अच्छा प्रभाव है. इसके अलावा मेव मुस्लिम, गुर्जर, राजपूत और वैश्य समाज भी अपना सियासी दखल रखते हैं.
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से 28 नेताओं ने दावेदारी जताई है. जिसमें प्रमुख दावेदारी यहां से मौजूदा विधायक जोहरी लाल मीणा की है. इसके अलावा उम्मेद लाल मीणा, हरिकिशन मीना और राहुल कुमार जैसे नाम भी शामिल है. वहीं समरथ लाल मीणा की अगली पीढ़ी यानी विजय मीणा भी चुनावी मैदान में भाजपा की टिकट की मांग कर रहे हैं. हालांकि पिछले चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. इसके अलावा यहां से समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर सूरजभान धानका को टिकट देकर मुकाबला को अभी से ही त्रिकोणीय बना दिया है.
1951 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भोलानाथ को चुनावी मैदान में उतरा तो वहीं कृषिकार लोक पार्टी की ओर से छोटू लाल चुनावी मैदान में उतरे. वही राम राज्य परिषद के भवानी सिंह ने इस मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया. इस चुनाव में कांग्रेस के भोलानाथ को 28,647 मत हासिल हुए तो वहीं कृषिकार लोक पार्टी के छोटू लाल को 19,770 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ जबकि राम राज्य परिषद के भवानी सिंह को 10,451 मत हासिल हुए और उसके साथ इस चुनाव में भोलानाथ की जीत हुई और वह लक्ष्मणगढ़ राजगढ़ के पहले विधायक चुने गए.
1957 में राजगढ़ और लक्ष्मणगढ़ अलग-अलग सीटें थी और यहां से द्वि सदस्य चुने गए. लक्ष्मणगढ़ विधानसभा सीट से कांग्रेस ने भोलानाथ और गोकुल चंद्र को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं उन्हें निर्दलीय उम्मीदवारों से चुनौती मिली. हालांकि चुनाव में कांग्रेस के दोनों उम्मीदवार जितने में कामयाब रहे. वहीं राजगढ़ विधानसभा सीट से भाजपा ने भवानी सहाय और हरिकिशन को टिकट दिया जबकि राम राज्य परिषद से रघुवीर सिंह चुनौती देने उतरे. इस चुनाव में राम राज्य परिषद के रघुवीर सिंह की जीत हुई.
1962 के विधानसभा चुनाव में यह सीट सिर्फ ST वर्ग के लिए आरक्षित हो गई और यह राजगढ़ विधानसभा सीट कहलाई. इस सीट से कांग्रेस ने हरिकिशन को चुनावी मैदान में उतारा तो निर्दलिय उम्मीदवार भरत लाल से चुनौती मिली. इस चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस उम्मीदवार हरि किशन के पक्ष में राजगढ़ की 50% जनता थी और उन्हें 14,124 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ.
1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हरिकिशन पर भरोसा जताया और उन्हें टिकट दिया तो वहीं स्वराज पार्टी की ओर से एस लाल चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में स्वराज पार्टी की जीत हुई और उसे 20,537 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ.
1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला और समर्थ लाल को टिकट दिया तो वहीं हरिकिशन ने बगावत कर दी और निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर आए. एक तरफा चुनाव में कांग्रेस के बागी से ही कड़ी चुनौती मिली और हरिकिशन 20,854 मतों के साथ विजय हुए जबकि कांग्रेस के समर्थ लाल को भी 20,675 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ.
1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी पिछली गलती को सुधार और हरिकिशन को टिकट दिया, अब की बार समर्थ लाल बागी हो गए और निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतर आए. यह दौर वैसे भी कांग्रेस के लिए कठिन था. इस दौर में जनता पार्टी से लक्ष्मी नारायण को चुनौती देने के लिए चुनावी मैदान में उतारा गया. हालांकि चुनावी नतीजे आए तो कांग्रेस के बागी समर्थ लाल की जीत हुई और उन्हें 17,545 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ जबकि कांग्रेस के हरि किशन चौथे स्थान पर रहे. वहीं जनता पार्टी के लक्ष्मीनारायण को 27 फीसदी जनता का समर्थन हासिल हुआ और वह दूसरे स्थान पर रहे.
1980 में समरथ लाल को भाजपा ने टिकट दिया तो वहीं इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की ओर से रामधान चुनावी मैदान में उतरे. वहीं हरिकिशन ने एक बार फिर निर्दलीय ही चुनाव लड़ा. इस चुनाव में समरथ लाल की जीत हुई और उन्हें 23,309 मत हासिल हुए जबकि कांग्रेस के रामधान दूसरे और हरिकिशन तीसरे स्थान पर रहे. इस चुनाव में मुख्य मुकाबला समर्थ लाल और रामधान के बीच ही हुआ जबकि हरिकिशन अपनी जमानत भी नहीं बचा सके.
1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर रामधान को ही टिकट दिया तो वहीं भाजपा की ओर से भी समरथ लाल ही चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में राजगढ़ की जनता ने रामधान को एक तरफा मत दिया और उनकी 33,967 मतों से जीत हुई जबकि समर्थ लाल के खाते में 18,925 मत ही आ सके.
1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला और राम मीणा को टिकट दिया जबकि भाजपा ने एक बार और समर्थ लाल पर ही दांव खेला. इस चुनाव में कांग्रेस के राम मीणा को 37,094 मत हासिल हुई तो वहीं बीजेपी के समर्थ लाल को 35,831 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ. हालांकि चुनाव को एक बार फिर कांग्रेस जीतने में कामयाब रही.
1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर से राम मीणा को ही टिकट दिया तो वहीं भाजपा ने फिर से समर्थ लाल पर ही दांव खेला. इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार जोहरी लाल मीणा ने भी कड़ी टक्कर दी और मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया. इस चुनाव में समर्थ लाल को 39,425 मत हासिल हुए और उसके साथ ही समरथ लाल लंबे समय बाद फिर से जीतने में कामयाब रहे तो वहीं 23,422 मतों के साथ जोहरी लाल मीणा दूसरे और 20,290 मतों के साथ श्री राम मीणा तीसरे स्थान पर रहे.
1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला और जोहरी लाल मीणा को टिकट दिया जबकि भाजपा की ओर से समरथ लाल फिर से चुनावी मैदान में थे. इस चुनाव में राजगढ़ की जनता का साथ जोहरी लाल मीणा को मिला और वह 54,456 मत पाने में कामयाब रहे, जबकि समरथ लाल को सिर्फ 28,550 मत हासिल हो सके.
2003 के विधानसभा चुनाव में फिर से मुख्य मुकाबला बीजेपी के समर्थ लाल और कांग्रेस के जोहरी लाल मीणा के बीच था. हालांकि इस चुनाव में बसपा के जगदीश प्रसाद और निर्दलीय उम्मीदवार रघुवर दयाल ने कूद कर मुकाबले को चतुष्कोणीय बना दिया. इस चुनाव में बीजेपी के समर्थ लाल को एक बार फिर कामयाबी हासिल हुई और उन्हें 36,903 मत मिले जबकि जोहरी लाल मीणा को 28,224, जगदीश प्रसाद को 14,405 और निर्दलीय उम्मीदवार रघुवर दयाल को 10,302 मत हासिल हुए.
2008 के विधानसभा चुनाव से पहले हुए परिसीमन के बाद इस सीट की स्थिति बदल गई और सीट का नाम राजगढ़ से राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ विधानसभा सीट हो गई. हालांकि सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित रही. इस चुनाव में कांग्रेस ने फिर से जोहरी लाल मीणा पर ही दांव खेला तो वहीं बीजेपी की ओर से फिर से समर्थ लाल चुनावी मैदान में थे. हालांकि इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के सूरजभान और बसपा के मगन चांद भी कूद पड़े साथ ही निर्दलीय उम्मीदवार शीला ने इस चुनाव को पंचकोणीय बना दिया. इस चुनाव में जीत समाजवादी पार्टी के सूरजभान की हुई और उन्हें 45,002 मत हासिल हुए जबकि जोहरी लाल मीणा को 43,896 और मत मिले जबकि बसपा के मगन चंद तीसरे, निर्दलीय उम्मीदवार शीला चौथे और भाजपा के समर्थलाल पांचवें स्थान पर रहे.
2013 का विधानसभा चुनाव एक बार फिर दिलचस्प होने जा रहा था. इस चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला और शीला को टिकट दिया तो वहीं बीजेपी के टिकट से सुनीता मीणा चुनावी मैदान में उतरी. वहीं इस चुनाव में समाजवादी पार्टी से सूरजभान एक बार फिर मैदान में थे. तो बसपा ने भी मगन चंद को चुनावी मैदान में कुदा दिया. इस चुनाव में किरोड़ी लाल मीणा की पार्टी से उनकी पत्नी गोलमा देवी भी चुनावी मैदान में उतर आई और मुकाबले को फिर से पंचकोणीय बना दिया. इस चुनाव के नतीजे आए तो राजगढ़ और लक्ष्मणगढ़ की जनता ने गोलमा देवी को भर-भर के वोट दिए और उनकी 64,926 मतों के साथ जीत हुई. जबकि समाजवादी पार्टी के सूरजभान भी कड़ी टक्कर देते नजर आए. इसके साथ ही भाजपा की सुनीता मीणा तीसरे, कांग्रेस की शिला चोथे और बसपा के मगन चंद मीणा पांचवें स्थान पर रहे. हालांकि यह तीनों उम्मीदवार कोई खास कमाल नहीं दिखा सके.
2018 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने सबसे मजबूत खिलाड़ी जोहरी लाल मीणा को टिकट दिया तो वहीं बीजेपी से समर्थ लाल के पुत्र विजय समर्थ लाल को टिकट मिला, जबकि बसपा ने भी बना राम मीणा को टिकट दिया तो वहीं चुनाव में सपा के सूरजभान एक बार फिर चुनावी मैदान में उतर आए. इस चुनाव में कांग्रेस के जोहरी लाल मीणा को 82,876 मत मिले और उसके साथ ही जोहरी लाल मीणा की जीत हुई. वहीं भाजपा के विजय समर्थ दूसरे और बसपा के बना राम मीणा तीसरे स्थान पर रहे.
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