Mandawa Jhunjhunu Vidhansabha Seat : मंडावा विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है. यहां से मौजूदा विधायक रीटा चौधरी हैं. पढ़ें इस सीट का चुनावी इतिहास...
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Mandawa Jhunjhunu Vidhansabha Seat : हवेलियों के लिए बॉलीवुड की पहली पसंद बन चुकी मंडावा का चुनावी इतिहास भी बेहद दिलचस्प रहा है. मंडावा विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है. यहां से 9 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की, जबकि भाजपा यहां पर सिर्फ एक बार ही खाता खोल सकी है.
मंडावा विधानसभा सीट से 6 बार कांग्रेस के रामनारायण चौधरी विधायक चुने गए. 1967 में रामनारायण चौधरी यहां से पहली बार विधायक बने और 1977 तक उन्होंने जीत की हैट्रिक लगा दी. इसके बाद 1993 से 2003 के बीच रामनारायण चौधरी ने एक बार फिर जीत की हैट्रिक लगाई. रामनारायण चौधरी मांडव के कद्दावर नेताओं में शुमार रहे हैं. इस सीट से मौजूदा विधायक रीटा चौधरी रामनारायण चौधरी की पुत्री हैं. रीटा चौधरी 2008 में भी यहां से दूसरी महिला विधायक चुनी गई थी, हालांकि रीटा चौधरी को 2013 और 2018 में हार का सामना करना पड़ा, वहीं इस सीट से पहली महिला विधायक सुधा देवी चुनी गई थी.
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से यहां की मौजूदा विधायक रीटा चौधरी एक बार फिर दावेदारी जता रही हैं, तो बिसूका के पूर्व अध्यक्ष मोहम्मद सादिक और अख्तर हुसैन ने भी अपनी दावेदारी जताई है. हालांकि रीटा चौधरी का पलड़ा ही भारी दिखाई दे रहा है. वहीं बीजेपी में भी टिकट दावेदारों की एक लंबी फेहरिस्त है. इनमें प्यारेलाल ढूकिया , पूर्व प्रधान सुशीला सीगड़ा और झुंझुनू से मौजूदा सांसद नरेंद्र कुमार की पुत्रवधू का नाम भी चल रहा है. नरेंद्र कुमार इस सीट से बीजेपी को जीतने वाले एकमात्र नेता है. साथ ही डॉ. राजेश बाबल व पूर्व प्रधान गिरधारीलाल खीचड़ भी बीजेपी से टिकट की दावेदारी जता रहे हैं.
मंडावा विधानसभा सीट पर शुरू से ही जाट समुदाय का दबदबा रहा है. वहीं इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है. इसके अलावा एससी और कुमावत समाज भी अपना सियासी रुतबा रखता है. इस सीट पर सबसे बड़ा मुद्दा पानी को लेकर है. वहीं आमिर खान की पीके और सलमान खान की बजरंगी भाईजान जैसी फिल्मों की शूटिंग के बाद अब यहां एक फिल्म सिटी बनाने की भी मांग भी जोर पकड़ने लगी है.
1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भीम सिंह को टिकट दिया तो वहीं कम्युनिस्ट पार्टी से लच्छू राम चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के भीम सिंह को 14,106 मत मिले तो वहीं कम्युनिस्ट पार्टी के लच्छू राम को 15,424 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ और उसके साथ ही कम्युनिस्ट पार्टी के लच्छू राम इस चुनाव में विजय हुए और मांडव के पहले विधायक चुने गए.
1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रामनारायण चौधरी को टिकट दिया तो वहीं स्वराज पार्टी से रघुवीर सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के रामनारायण चौधरी को 14,091 मत मिले तो वहीं स्वराज पार्टी के रघुवीर सिंह 15,436 मतों के साथ चुनाव जीतने में कामयाब हुए.
1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से रामनारायण चौधरी को ही टिकट दिया तो वहीं स्वराज पार्टी की ओर से ए सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में स्वराज पार्टी की उम्मीदवार सिर्फ 9,726 मत अपने पक्ष में कर पाए तो वहीं रामनारायण चौधरी 19,504 मतों के साथ विजयी हुए और उसके साथ ही इस सीट पर पहली बार कांग्रेस का खाता खुला.
1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से रामनारायण चौधरी पर ही भरोसा जताया तो वहीं स्वराज पार्टी की ओर से ऐजाजुल नरी खान चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में स्वराज पार्टी की उम्मीदवार को 16,330 मत मिले तो वहीं कांग्रेस के नारायण चौधरी 29,988 वोट हासिल करने में कामयाब हुए और उसके साथ ही राम रामनारायण चौधरी इस सीट से दूसरी बार जीतने में कामयाब हुए.
1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर रामनारायण चौधरी पर ही विश्वास जताया तो उन्हें यहां से पहले विधायक रह चुके लच्छू राम ने चुनौती दी. इस बेहद इंटरेस्टिंग चुनाव में लच्छू राम 13,766 मत हासिल कर सके तो वहीं रामनारायण चौधरी लगातार तीसरी बार चुनाव को जीतने में कामयाब हुए और उन्हें 23,342 वोट मिले और उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई.
1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जबरदस्त गुटबाजी से जूझ रही थी. इस चुनाव में जनता पार्टी सेकुलर की ओर से लच्छू राम चुनावी मैदान में उतरे है तो वहीं इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस से रामनारायण चौधरी ने चुनाव में ताल ठोकी. रामनारायण चौधरी को 27,160 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ तो लच्छू राम 28,713 मतों से जीतने में कामयाब हुए और उसके साथ ही लच्छू राम 1957 के बाद 1980 में एक बार फिर विधायक चुने गए.
1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बड़ा बदलाव करते हुए महिला उम्मीदवार के रूप में सुधा देवी को चुनावी मैदान में उतारा जबकि वहीं भाजपा की ओर से बजरंग लाल धाबाई ने ताल ठोकी. इस चुनाव में बजरंग लाल धाबाई को 26,482 मत हासिल हुए तो वहीं कांग्रेस की सुधा देवी 37,473 वोटों के साथ जितने में कामयाब हुई. उसके साथ ही मंडावा को सुधा देवी के रूप में पहली महिला विधायक मिली.
1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से सुधा देवी को ही टिकट दिया तो वहीं जनता दल की ओर से चंद्रभान चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में सुधा देवी को हार का सामना करना पड़ा और वह 22,565 मत ही हासिल कर सकीं. जबकि चंद्रभान 52,019 मतों के साथ जितने में कामयाब हुए और यह जीत का बड़ा अंतर था.
1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर से रामनारायण चौधरी को ही चुनावी मैदान में उतरना पड़ा जबकि जनता दल की ओर से गोकुलचंद सोनी उम्मीदवार बने. इस चुनाव में गोकुल चंद्र सोनी को 20,980 मत मिले तो वहीं राम नारायण चौधरी 41,282 मतों के साथ एक बार फिर वापसी करने में कामयाब हुए.
1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से रामनारायण चौधरी को ही टिकट दिया तो वहीं इंडियन नेशनल लोकदल के टिकट से संजीव चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन चुनाव पूर्ण: एक तरफ साबित हुआ और रामनारायण चौधरी को 49,114 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ जबकि संजीव 23,401 मत ही हासिल कर सके.
2003 के विधानसभा चुनाव में राम नारायण चौधरी एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर ही चुनावी किस्मत आजमाने उतरे तो वहीं उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार डॉ. हरि सिंह से चुनौती मिली. वहीं बीजेपी ने भी कृष्ण कुमार के रूप में अपना उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में त्रिमूल कांग्रेस, एनसीपी, बीएसपी जैसी पार्टियों भी चुनावी मैदान में थी लेकिन मांडव के असली चौधरी राम नारायण चौधरी ही साबित हुए और उन्हें 38,036 मत मिले जबकि बीजेपी के उम्मीदवार कृष्ण कुमार छठे स्थान पर रहे और हरी सिंह दूसरे स्थान पर.
2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रीटा चौधरी को टिकट दिया तो वहीं नरेंद्र कुमार उन्हें निर्दलिय ही चुनौती देने चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में बीजेपी की ओर से सुमित्रा सिंह ने ताल ठोकी जबकि बसपा के उम्मीदवार सलीम तंवर बने. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रीटा चौधरी 28,502 मतों के साथ विजई हुई, जबकि भाजपा की सुमित्रा सिंह चौथे स्थान पर रहीं. वहीं दूसरे स्थान पर निर्दलीय और तीसरा स्थान पर बसपा उम्मीदवार रहा.
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रीटा चौधरी का टिकट काटते हुए डॉ. चंद्रभान को चुनावी मैदान में उतार दिया तो वहीं बीजेपी की ओर से सलीम तंवर चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में रीटा चौधरी ने निर्दलीय ही ताल ठोकी जबकि निर्दलीय के तौर पर नरेंद्र कुमार भी चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में नरेंद्र कुमार को 58,637 वोट मिले तो वहीं रीटा चौधरी 41,519 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं. वहीं बीजेपी और कांग्रेस को एक बार फिर करारी हार का सामना करना पड़ा और चुनाव में भाजपा तीसरे तो कांग्रेस चौथे स्थान पर रहेी.
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी ने पिछले चुनाव के दो सबसे मजबूत दावेदारों को टिकट दिया. जहां बीजेपी की ओर से नरेंद्र कुमार चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं कांग्रेस में रीटा चौधरी की वापसी हुई. इस चुनाव में मंडावा की जनता ने नरेंद्र कुमार को 80,599 मत दिए तो वहीं रीटा चौधरी 78,523 मत पा कर भी चुनाव हार गईं. चुनाव में बीजेपी की जीत हुई और मांडव के चुनावी इतिहास में पहली बार भाजपा का खाता खुला.
2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र कुमार झुंझुनू लोकसभा सीट से सांसद चुने गए, लिहाजा मंडावा विधानसभा सीट खाली हो गई. ऐसे में यहां एक बार फिर उपचुनाव के रूप में चुनावी बिल्कुल बजा. इस चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर रीटा चौधरी को ही टिकट दिया तो वहीं भाजपा की ओर से सुशीला सिगरा चुनावी मैदान में उतरी. चुनाव में 59% मत हासिल कर रीटा चौधरी विजयी हुईं. उन्हें 94,196 मतदाताओं का साथ मिला जबकि सुशीला सिगरा महज 60,492 मत ही हासिल कर सकी. साथ ही यह सीट एक बार फिर कांग्रेस की झोली में चली गई.