Laxmangarh Sikar Vidhansabha Seat : लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र से प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा विधायक हैं, जबकि हाल ही में पार्टी बदल कर भाजपा में शामिल हुए सुभाष महरिया यहां से डोटासरा के खिलाफ चुनावी ताल ठोक सकते हैं.
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Laxmangarh Sikar Vidhansabha Seat : शेखावाटी की सबसे हॉट सीट यानी लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. यहां 15 में से 10 दफा कांग्रेस ने जीत हासिल की है. यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, यहां से प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा विधायक हैं, जबकि हाल ही में पार्टी बदल कर भाजपा में शामिल हुए सुभाष महरिया यहां से डोटासरा के खिलाफ चुनावी ताल ठोक सकते हैं.
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से एक बार फिर पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा चुनावी ताल ठोक सकते हैं तो वहीं बीजेपी की ओर से सुभाष महरिया एक बार फिर किस्मत आजमाने उतर सकते हैं. सुभाष महरिया ने 2013 में भी डोटासरा के खिलाफ ताल ठोकी थी. हालांकि बाद में महरिया कांग्रेस में शामिल हो गए थे, महरिया को सचिन पायलट का भी करीबी माना जाता है. पिछले दिनों और वह एक बार फिर दल बदलते हुए बीजेपी में शामिल हो गए. वहीं विजेंद्र कुमार ढाका भी चुनावी तैयारी कर रहे हैं. माना जा रहा है विजेंद्र कुमार कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवर हो सकते हैं.
1951 के पहले विधानसभा चुनाव में यह सीट 2 सदस्य सीट थी लिहाजा यहां से दो विधायक चुने गए. कांग्रेस की ओर से नारायण लाल और जगन सिंह उम्मीदवार बने तो वहीं कृषक लोक पार्टी से बलबीर और भूरा मल ने ताल ठोकी. वहीं निर्दलीय के तौर पर किशन सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के नारायण लाल और कृषक लोक पार्टी से बलबीर चुनाव जीते और राजस्थान विधानसभा पहुंचे.
1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर किशन सिंह चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं राम राज्य परिषद की ओर से गिरधारी सिंह ने ताल ठोकी. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी से तिलक सिंह चुनावी मैदान में उतरे. इसके अलावा निर्दलीय के तौर पर बलवीर सिंह ने भी किस्मत आजमाई. इस चुनाव में 8,265 से ज्यादा मतों से कांग्रेस के किशन सिंह की जीत हुई, जबकि राम राज्य परिषद के गिरधारी सिंह दूसरे और कम्युनिस्ट पार्टी के तिलोक सिंह तीसरे स्थान पर रहे.
1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से किशन सिंह ने एक बार फिर ताल ठोकी तो वहीं कम्युनिस्ट पार्टी से तिलोक सिंह चुनावी मैदान में उतरे. वहीं स्वराज पार्टी से नारायण सिंह भी एक बार फिर किस्मत आजमाने उतरे. इस त्रिकोणीय संघर्ष में कांग्रेस के किशन सिंह एक बार फिर चुनाव जीतने में कामयाब हुए और उन्हें 9,923 मतदाताओं का साथ मिला जबकि कम्युनिस्ट पार्टी के तिलोक सिंह दूसरे स्थान पर रहे और नारायण सिंह तीसरे स्थान पर रहे.
1967 में कांग्रेस की ओर से नारायण लाल चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं स्वराज पार्टी की ओर से नथमल ने चुनावी ताल ठोकी. इस चुनाव में कांग्रेस के नारायण लाल को 16,257 वोट मिले जबकि स्वराज पार्टी के नथमल को 18,288 वोट मिले और इसके साथ ही स्वराज पार्टी की लक्ष्मणगढ़ में जीत हुई.
1972 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की ओर से नथमल चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं स्वराज पार्टी की ओर से केसर देव ने ताल ठोकी. इस चुनाव में स्वराज पार्टी के उम्मीदवार केसर देव की जीत हुई और नथमल को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा.
1977 के विधानसभा चुनाव में परसराम मोरदिया ने ताल ठोकी तो वहीं जनता पार्टी की ओर से रामदेव चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के परसराम को 19,002 मत हासिल हुए तो वहीं जनता पार्टी के रामदेव 18,808 मत ही हासिल कर सके और उसके साथ ही कांग्रेस के परसराम मोरदिया की जीत हुई.
1980 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर परसराम मोदिया कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे. तो वहीं जनता पार्टी सेकुलर की ओर से रामेश्वर सेवारथी चुनावी ताल ठोकने उतरे. इस चुनाव में 22,235 मतों के साथ परसराम मोदिया की एक बार फिर जीत हुई, जबकि जनता पार्टी के रामेश्वर 19,758 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे.
1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से अपने सबसे मजबूत सिपाही परसराम मोरदिया को ही चुनावी मैदान में भेजा तो वहीं लोक दल की ओर से केसर देव ने ताल ठोकी. इस बेहद रोमांचक मुकाबले में लोकदल के केसर देव को 39,059 वोट मिले तो वही कांग्रेस के परसराम मोरदिया को 36474 वोटों से ही संतोष करना पड़ा.
1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से एक बार फिर से परसराम मोरदिया ही चुनावी मैदान में उतरे. तो वहीं जनता दल की ओर से भगतराम ने चुनावी ताल ठोकी. इस चुनाव में लक्ष्मणगढ़ की 50% जनता का साथ परसराम मोरदिया को मिला और उन्हें 51,389 वोटों के साथ फिर जीत हासिल की.
1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से परसराम मोरदिया मैदान में उतरे तो वहीं जनता दल ने केसर देव को चुनावी मैदान में उतारा. वहीं बीजेपी की ओर से दयाल चंद ने चुनावी ताल ठोकी. लेकिन यह चुनाव एकतरफा साबित हुआ और परसराम मोरदिया की जीत हुई. उन्हें 50,154 वोट मिले जबकि उनके सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी केसर देव को उसके भी आधे यानी 24,312 मत मिले. इस चुनाव में परसराम मोरदिया प्रचंड जीत के साथ ही लक्ष्मणगढ़ की जनता का प्रतिनिधित्व करने राजस्थान विधानसभा पहुंचे.
1998 के विधानसभा चुनाव में लक्ष्मणगढ़ से एक बार फिर कांग्रेस ने परसराम मोरदिया को ही चुनावी मैदान में भेजा तो वहीं भाजपा की ओर से केसर देव चुनावी ताल ठोकने उतरे, वहीं कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से पेमाराम ने ताल ठोकी. इस चुनाव में परसराम मोरदिया एक बार फिर बड़े अंतर के साथ 49,373 वोट जीत पाने में कामयाब हुए और फिर से राजस्थान विधानसभा पहुंचे जबकि केसर देव को 38,265 वोट ही हासिल कर सके.
2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से केसर देव पर ही दांव खेला तो वहीं कांग्रेस की ओर से परसराम मोरदिया चुनावी ताल ठोकने उतरे. यानी मुकाबला एक बार फिर केसर देव बनाम परसराम मोरदिया के बीच था. इस चुनाव में पासा पलट गया और लगातार जीतते आ रहे परसराम मोरदिया को हार का सामना करना पड़ा. जबकि केसर देव की जीत हुई.
2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गोविंद सिंह डोटासरा को चुनावी मैदान में उतारते हुए दांव खेला जबकि बीजेपी की ओर से मदनलाल सेवदा चुनावी मैदान में उतरे. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी से बृजेंद्र सिंह मील चुनावी ताल ठोकने उतरे. इसके साथ ही निर्दलीय उम्मीदवार दिनेश जोशी ने भी मजबूत दावेदारी जताई. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार गोविंद सिंह डोटासरा की जीत हुई और उन्हें 31,705 मतदाताओं का साथ मिला. जबकि निर्दलीय ही ताल ठोक रहे दिनेश जोशी चुनाव जितने में कुछ ही मतों से चुक गए और उन्हें 31,671 वोट मिले. जबकि कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार तीसरे स्थान और बीजेपी उम्मीदवार चौथे स्थान पर रहे.
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से गोविंद सिंह डोटासरा पर ही फिर से भरोसा जताया गया तो वहीं बीजेपी की ओर से सुभाष महरिया फिर किस्मत आजमाने उतरे. वहीं बेहद ही कम अंतर से पिछला चुनाव हारने वाले निर्दलीय उम्मीदवार दिनेश जोशी ने एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरने का ठाना. इस चुनाव में गोविंद सिंह डोटासरा को 55,730 मत मिले और इसके साथ ही डोटासरा लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे जबकि भाजपा उम्मीदवार सुभाष महरिया को 45,007 वोट मिले तो वहीं निर्दलीय ही ताल ठोकने वाले दिनेश जोशी को 43,199 वोट मिले और इसके साथ ही जोशी तीसरे स्थान पर रहे.
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से तीसरी बार गोविंद सिंह डोटासरा ने ताल ठोकी जबकि बीजेपी की ओर से पिछले दो बार से निर्दलीय ही ताल ठोकने वाले दिनेश जोशी को टिकट दिया गया. इस चुनाव में गोविंद सिंह डोटासरा को 98,227 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त किया तो वहीं दिनेश जोशी 76,175 वोट ही हासिल कर सके और चुनाव में लगातार तीसरी बार गोविंद सिंह डोटासरा की जीत हुई.
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