कौन बनेगा किशनगढ़ बास का MLA! दो मौजूदा विधायक ने कांग्रेस से जताई दावेदारी, जानें क्या कहता है इतिहास
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कौन बनेगा किशनगढ़ बास का MLA! दो मौजूदा विधायक ने कांग्रेस से जताई दावेदारी, जानें क्या कहता है इतिहास

मेवात का किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र यूं तो कई मयनों में अहम हो जाता है, लेकिन सियासी तौर पर भी इस क्षेत्र की अहमियत है. यह क्षेत्र पहले खैरथल विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था, लेकिन 2008 के बाद से इसे किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र कहा जाने लगा.

कौन बनेगा किशनगढ़ बास का MLA! दो मौजूदा विधायक ने कांग्रेस से जताई दावेदारी, जानें क्या कहता है इतिहास

Kisangarhbas Alwar Vidhansabha Seat: मेवात का किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र यूं तो कई मयनों में अहम हो जाता है, लेकिन सियासी तौर पर भी इस क्षेत्र की अहमियत है. यह क्षेत्र पहले खैरथल विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था, लेकिन 2008 के बाद से इसे किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र कहा जाने लगा. किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र, सरसों की खैरतल मंडी के लिए भी जाना जाता है. इसके अलावा यहां श्याम बाबा का एक प्राचीन मंदिर भी है. यह क्षेत्र आर्थिक रूप से संपन्न माना जाता है. किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र को जिला बनाने की मांग पूरी कर यहां के मौजूदा विधायक दीपचंद खेरिया एक मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहे हैं.

खासियत

खैरथल विधानसभा क्षेत्र 1967 से 2003 तक अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित रही. हालांकि 2008 में परिसीमन के बाद किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र आरक्षित से सामान्य हो गई. अगर किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र की बात की जाए तो इस सीट से दो बार जीत का रिकॉर्ड भाजपा के रामहेत सिंह के नाम रहा है तो वहीं एक बात दीपचंद खैरिया ने जीत हासिल की. वहीं खैरतल विधानसभा क्षेत्र से चार बार जीत का रिकॉर्ड संपत राम के नाम रहा. संपतराम ने 1972, 1977, 1980 और 1990 में कुल चार बार जीत हासिल की. इसके अलावा कांग्रेस के चंद्रशेखर ने दो बार जीत दर्ज की. वहीं एक-एक बार जयराम, मदन मोहन और जी चंद जीते.

जातीय समीकरण

खैरथल विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा मतदाता यादव समाज से आते हैं. वहीं इसके बाद जाट, दलित और अनुसूचित जाति का दबदबा रहा है. वहीं सबसे खास बात यह है कि इस क्षेत्र में पाकिस्तान के सिंध से आकर बसे सिंधियों की आबादी भी अच्छी खासी है. यहां झूलेलाल महाराज का एक विशाल मंदिर भी है. साथ ही बनिया और ब्राह्मण भी इस क्षेत्र में खासा प्रभाव रखते हैं.

2023 का विधानसभा चुनाव

2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से जहां दीपचंद खेरिया मजबूत दावेदार हैं. तो वहीं पड़ोसी क्षेत्र तिजारा से विधायक संदीप यादव भी किशनगढ़ बास विधानसभा क्षेत्र से ही टिकट दावेदारी जता रहे हैं. वहीं कांग्रेस से टिकट मांगने वालों में बलराम यादव, राम यादव और सिमरत कौर जैसे नाम भी शामिल है. वहीं भाजपा की बात करें तो भाजपा से जिला परिषद के पार्षद दिनेश यादव, स्टार पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर दिनेश यादव मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं. वहीं पूर्व विधायक रहे रामहेत सिंह यादव भी एक बार फिर टिकट की दावेदारी जता रहे हैं.

किशनगढ़ पास विधानसभा क्षेत्र का इतिहास

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पहला विधानसभा चुनाव 2008

2008 में परिसीमन के बाद किशनगढ़ बास एक नया विधानसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में आया. इससे पहले यह क्षेत्र खैरथल विधानसभा क्षेत्र के रूप में जाना जाता था. 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से दीपचंद खेरिया उम्मीदवार बने और चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं इस चुनाव में भाजपा की ओर से रामहेत सिंह यादव को टिकट दिया गया. इनके अलावा बसपा से शेर मोहम्मद उम्मीदवार बने. साथ ही ओम प्रकाश निर्दलीय के तौर पर एक मजबूत दावेदार के रूप में सामने आए. इस चतुष्कोणीय मुकाबले में भाजपा के रामहेत सिंह को 31,594 मतों से जीत हुई तो वहीं कांग्रेस के दीपचंद खेरिया को 29,484 मत मिले. वहीं बसपा के शेर मोहम्मद 17,835 मत के साथ तीसरे और निर्दलीय ओम प्रकाश 16,401 मत के साथ चौथे स्थान पर रहे.

दूसरा विधानसभा चुनाव 2013

2013 में कांग्रेस ने एक बार फिर दीपचंद खेरिया को ही अपना उम्मीदवार बनाया तो वहीं भाजपा की ओर से रामहेत सिंह यादव ही उम्मीदवार बने. इस चुनाव में बसपा ने अपना उम्मीदवार बदला और सपत खान को टिकट दिया. इस चुनाव में डॉ. दिनेश यादव ने चुनावी मैदान में उतरे कर मुकाबले को एक बार फिर चतुष्कोणीय बना दिया. हालांकि चुनावी नतीजे आए तो मोदी लहर में एक बार फिर भाजपा के रामहेत सिंह यादव जीतने में कामयाब रहे और उन्हें किशनगढ़ बास की 46% जनता का समर्थन हासिल हुआ, जबकि 36 फ़ीसदी मतों के साथ दीपचंद खेरिया दूसरे स्थान पर रहे. वहीं डॉ. दिनेश यादव तीसरे और सपथ खान चौथे स्थान पर रहे.

तीसरा विधानसभा चुनाव 2018

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार बदला और डॉ. करण सिंह यादव को टिकट दिया तो वहीं दीपचंद खेरिया बागी हो गए और उन्होंने बसपा से चुनावी ताल ठोक दिया. वहीं भाजपा ने एक बार फिर रामहेत सिंह यादव पर ही भरोसा जताया और उन्हें टिकट दिया. इस बेहद रोमांचक त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस के बागी और बसपा उम्मीदवार दीपचंद खेरिया चुनाव जीतने में कामयाब रहे और उन्हें 73,208 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ, जबकि भाजपा के रामहेत सिंह को 63,883 मत हासिल हुए. वहीं कांग्रेस के डॉ. करण सिंह 39,033 मत ही हासिल कर सके. इसके साथ ही इस चुनाव में दीपचंद खेरिया की जीत हुई, हालांकि बाद में दीपचंद खेरिया कांग्रेस में शामिल हो गए.

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