Dhod Sikar Vidhansabha Seat : सीकर जिले की धोद विधानसभा क्षेत्र कम्युनिस्टों का गढ़ माना जाता है. हालांकि इस सीट से मौजूदा वक्त में कांग्रेस के परसराम मोरदिया विधायक हैं. पढ़ें इस सीट का सियासी गणित...
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Dhod Sikar Vidhansabha Seat : सीकर जिले की धोद विधानसभा क्षेत्र कम्युनिस्टों का गढ़ माना जाता है. यहां अब तक हुए 10 विधानसभा चुनाव में चार बार कम्युनिस्ट ने जीत हासिल की है, जबकि पिछले 30 सालों में कांग्रेस और बीजेपी सिर्फ एक एक बार जीत हासिल कर पाई है. इस सीट से मौजूदा विधायक परसराम मोरदिया हैं.
इस सीट सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड रामदेव सिंह के नाम है. रामदेव सिंह ने यहां से कुल 4 बार जीत हासिल की. उन्होंने 1977, 1980, 1985 और 1990 तक लगातार जीत हासिल की. इसके बाद कॉमरेड अमराराम यहां से लगातार तीन बार जीतने में कामयाब हुए. उन्होंने 1993, 1998 और 2008 में जीत हासिल की. इसके बाद यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई.
2023 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर धोद विधानसभा क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है. कांग्रेस यहां से मौजूदा वक्त में कांग्रेस के परसराम मोरदिया यहां से विधायक हैं. बीजेपी की ओर से एक बार फिर गोवर्धन वर्मा ताल ठोकते नजर आ सकते हैं, वहीं कम्युनिस्ट पार्टी पेमाराम को एक बार फिर चुनावी मैदान में उतार सकती हैं. वही चर्चा है कि कांग्रेस परसराम मोरदिया की जगह उनके पुत्र महेश मोरदिया को भी टिकट दे सकती है.
धोद विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा आबादी जाट समुदाय की है. इसके बाद अनुसूचित जाति, जनजाति और मुस्लिम मतदाताओं की है. इस सीट पर यह सीट भले ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो लेकिन यहां जीत और हार का फैसला जाट ही करते हैं.
धोद विधानसभा सीट 1977 में बनी. इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राम देव सिंह को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं जनता पार्टी की ओर से गोवर्धन सिंह चुनावी ताल ठोकने उतरे. इस चुनाव में जनता पार्टी के गोवर्धन सिंह को 23,355 मत हासिल हुए तो वहीं राम देव सिंह को 30,106 मतदाताओं का मत हासिल हुआ और उसके साथ ही चुनाव में कांग्रेस के राम देव सिंह की जीत हुई.
1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर गुटबाजी के बीच वापसी की तैयारी कर रही थी, इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस आई ने रामदेव सिंह को एक बार फिर टिकट दिया तो वहीं गोवर्धन सिंह ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा. चुनाव में रामदेव सिंह को 29,275 मत हासिल हुए, जबकि गोवर्धन सिंह 16,086 मत ही हासिल कर सके और उसके साथ ही रामदेव सिंह दूसरी बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए.
1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से फिर रामदेव सिंह ने फिर ताल ठोकी तो वहीं लोक दल की ओर से जय सिंह शेखावत चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के रामदेव सिंह को 33539 मत हासिल हुए तो वही लोक दल के जयसिंह शेखावत को 27240 मत मिले और उसके साथ ही जय सिंह को शिकस्त का सामना करना पड़ा और देव सिंह रामदेव सिंह तीसरी बार धोद विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने राजस्थान विधानसभा पहुंचे.
1990 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने एक बार फिर रामदेव सिंह पर ही विश्वास जताया तो वहीं जनता दल की ओर से जय सिंह शेखावत ने ताल ठोकी. इस चुनाव में एक बार फिर मुख्य मुकाबला रामदेव सिंह बनाम जय सिंह शेखावत था. इस चुनाव में जनता दल के जयसिंग शेखावत को 30,614 मत हासिल हुए तो वहीं कांग्रेस के रामदेव सिंह को 32,906 मतदाताओं का साथ हासिल हुआ और उसके साथ ही रामदेव सिंह लगातार चौथी बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे.
1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से रामदेव सिंह को ही टिकट दिया गया. बीजेपी की ओर से इस चुनाव में रिछपाल सिंह चुनावी मैदान में उतरे जबकि कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से अमराराम ने ताल ठोका. इस चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी के अमराराम की जीत हुई और उन्हें 42 फ़ीसदी मतों के साथ जीत हुई और उन्हें 44,375 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ जबकि कांग्रेस के रामदेव सिंह को 31,843 मत मिले और दूसरे स्थान पर रहें. जबकि बीजेपी के रिचपाल सिंह 21 फ़ीसदी मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहें.
1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रामदेव सिंह पर ही दांव खेलना ठीक समझा जबकि बीजेपी की ओर से रिछपाल सिंह फिर मैदान में उतरे. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से अमराराम ने ताल ठोकी यानी मुकाबला एक बार से तीन नेताओं के बीच था. इस त्रिकोणीय मुकाबले में एक बार फिर अमराराम 43% मतों जीत से हासिल करने में कामयाब हुए और उन्हें 44,672 मतदाताओं का साथ मिला जबकि बीजेपी के रिछपाल सिंह फिर से तीसरे स्थान पर है और वह महज 11 फीसदी मत ही हासिल कर सके, जबकि कम्युनिस्ट पार्टी के अमरा राम दूसरी बार जीतने में कामयाब रहे.
2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता अमरा राम ने फिर से कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से ताल ठोक जबकि बीजेपी ने इस बार उम्मीदवार बदलते हुए रामेश्वर लाल को टिकट दिया, जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर रामदेव सिंह पर ही दांव खेला. चुनाव में बीजेपी के लिए नतीजा थोड़े तो सकारात्मक रहा लेकिन वह जीत नहीं दिलवा पाए और रामेश्वर लाल 23,500 मत पा कर भी चुनाव हार गए जबकि कांग्रेस के दिग्गज नेता रामदेव सिंह इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें 18,745 वोट मिले जबकि कम्युनिस्ट पार्टी के अमराराम चुनाव जीतने में कामयाब हुए और उन्हें 44,647 मत हासिल हुए और उसके साथ ही अमराराम लगातार तीसरी बार विधायक बनने में कामयाब हुए.
2008 के विधानसभा चुनाव में क्षेत्र का समीकरण ही बदल गया. यह सीट सामान्य वर्ग से अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित कर दी गई, लिहाजा ऐसे में यहां से टिकट दावेदार भी बदल गए. 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने परसराम मोरदिया को टिकट दिया तो वहीं बीजेपी की ओर से गोवर्धन चुनावी मैदान में उतरे. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी को भी अपना उम्मीदवार बदलना पड़ा और पेमाराम को चुनावी मैदान में उतारा. चुनाव में पेमाराम को 47,840 मत हासिल हुए जबकि कांग्रेस के परसराम मोदिया को 44,695 मत ही मिल सके. वहीं बीजेपी के गोवर्धन तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें 31,948 मत मिले. इसके साथ ही इस सीट पर लगातार चौथी बार कम्युनिस्ट पार्टी जीत का परचम लहराने में कामयाब हुई.
2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टी ने जहां अपने-अपने उम्मीदवारों को रिपीट किया तो वहीं कांग्रेस अनोपाराम के रूप में नया चेहरा लेकर आई. इस चुनाव में कांग्रेस के अनोपाराम को को 22,500 सात मत मिले तो वहीं कम्युनिस्ट पार्टी के पेमाराम 43,597 मत पाने में कामयाब हुए जबकि बीजेपी के गोवर्धन को जीत हासिल हुई और इसी के साथ ही इस सीट पर पहली बार बीजेपी का खाता खुला.
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से परसराम मोरदिया ही चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं बीजेपी ने फिर से गोवर्धन पर ही विश्वास जताया जबकि कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से पेमाराम चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के परसराम मोरदिया की जीत हुई और उन्हें 75,142 मत मिले जबकि कम्युनिस्ट पार्टी के पेमाराम 61089 मत हासिल कर पाए तो वहीं भाजपा के गोवर्धन 46,667 मत के साथ तीसरा स्थान पर रहे.
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