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Rajasthan Election: विधायी शब्द वैसे तो अंग्रेजी के लेजिस्लेटिव शब्द का हिन्दी रूपान्तर है. लेकिन मजे की बात ये है कि इतना होते हुए भी लेजिस्लेटिव असेंबली के लिए विधायी सभा का शब्द का प्रयोग कभी नहीं किया गया. जबकि विधायी सभा की जगह विधानसभा शब्द का ही प्रयोग होता आया है. ये शब्द अपने आप में ही विधि की व्यापकता को दर्शाती है कि बिना विधि के जानकारों के विधानसभा के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है. पिछले कुछ सालो में बढते कानूनी दावपेंचो के चलते देश के सभी राजनीतिक दलों के पास विधि के जानकारों या यू कहे वकिलों की एक बड़ी जमात तैयार हो गयी है. .तो वही अब राजनीतिक दलों ने विधि प्रकोष्ठ का गठन कर हजारो वकीलों को अपने साथ जोड़ा है.
एक आकलन के अनुसार दुनियाभर के तमाम देशों में सक्रिय राजनीति में सबसे अधिक संख्या वकीलों की है. ये आंकड़ा 20% से अधिक है. वर्तमान में लोकसभा में कुल 543 सांसदों में से 42 सांसदों के पास वकालत की डिग्री है जो कि कुल सांसदो का करीब 7 प्रतिशत है. आजादी से पहले और आजादी के बाद भी वकालत कर आने वाले राजनीतिज्ञ हर सरकार में अहम भूमिका निभाते हैं. . इसलिये वकालत पढ़कर आये लोगों का राजनीति में गहरा दखल नजर आता है. वर्तमान में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल सहित मोदी कैबिनेट में कुल 16 बड़े वकील हैं, तो वही जेपी नड्डा, चौधरी बीरेंद्र सिंह, रामकृपाल यादव और राजेन मोहन गोहन, अर्जुन मेघवाल, पीपी चौधरी भी शामिल हैं.
देश के सभी राजनीतिक दलों को भी वकालत के पेशे से आए लोगों की हमेशा से ही जरूरत रही है. .समाज के सबसे करीब होने के साथ साथ विधानसभा, लोकसभा हो या फिर राज्यसभा कानून बनाने के लिए उसकी जानकारी भी जरूरी है. ऐसे में वकालत से आए राजनेताओं की हमेशा से ही डिमांड रही. राजस्थान में 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2018 के विधानसभा चुनाव तक वकालत के पेशे से आई कई हस्तियां बड़े पदों तक पहुंची है.
अशोक गहलोत— 1998, 2008, 2018
टीकाराम पालीवाल—1952 से 1952
बरकतुल्लाह खां— 1971 से 1973
जगन्नाथ पहाड़िया—1980 से 1981
हीरालाल देवपुरा— 1985 से 1985
गुलाबचंद कटारिया वर्तमान में असम के राज्यपाल है
सरदार हुकमसिंह— 1967 से 1972
रघुकुमल तिलक— 1977 से 1981
बलिराम भगत— 1993 से 1998
नवरंगलाल टिबरेवाल—1998 से 1999
अंशुमानसिंह— 1999 से 2003
नरोत्तमलाल जोशी—1952 से 1957
निरंजन नाथ आचार्य—1967 से 1972
रामकिशोर व्यास—1972 से 1977
पूनमचंद विश्नोई— 1980 से 1985
हीरालाल देवपुरा—1985 से 1985
गिर्राज प्रसाद तिवाड़ी— 1986 से 1990
शांतिलाल चपलोत—1995 से 1998
परसराम मदेरणा—1999 से 2004
परसराम मदेरणा, रामनारायण चौधरी, रामनारायण विश्नोई
बी डी कल्ला, राजेन्द्र राठौड़
निरंजन नाथ आचार्य, पूनमचंद विश्नोई, रामसिंह यादव
गिरिराज प्रसाद तिवाड़ी, अहमद बख्श सिंधी,
किशन मोटवानी, शांतिलाल चपलोत, कैलाश मेघवाल
राजस्थान के विधानसभा में वकालत के पेशे से राजनीति में आने वाले लोगों को खास मुकाम मिला है. .आजादी से पूर्व स्टेट समय में दौलतमल भण्डारी, इन्द्रनाथ मोदी, जस्टिस चन्द्रभान भार्गव, जस्टिस रणछोड़दास गट्टानी, फिरोजशाह मेहता, मोतीलाल मेहरा, रसिहर बॉस जैसे कई हस्तियां वकालत के पेशे से जुड़कर भी समाज सेवा से लेकर राजनीति में सक्रिय रही थी. .बाद में इनमें से कई राजस्थान हाईकोर्ट के जज बने. तो कई जज बनने के बाद भी राजनीति में सक्रिय रहे. .राजस्थान की पहली विधानसभा में 160 में से 29 वकील विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे थे.
अमृतलाल यादव— रेलमगरा, राजसमंद—कांग्रेस
भोगीलाल पण्डया—सांगवाड़ा—कांग्रेस
विश्वम्भर नाथ जोशी—बांदीकुई—कांग्रेस
छोटूसिंह—अलवर—कांग्रेस
दामोदर लाल व्यास—मालपुरा—कांग्रेस
घासी सिंह यादव—मण्डावर—कांग्रेस
इन्द्रनाथ मोदी— जोधपुर ए—निर्दलिय
द्वारकादास —जोधपुर ए, मई 1953— कांग्रेस
खेतसिंह—शेरगढ—निर्दलीय
चांदमल मेहता— परबतसर—कांग्रेस
मथुरादास माथुर—डीडवाना—कांग्रेस
नरोत्तमलाल जोशी—झुझूनु—कांग्रेस
नृसिंह कच्छवाहा—जोधपुर तहसील दक्षिण—निर्दलीय
प्रभुदयाल—''चुरू—कांग्रेस
बृज सुंदर शर्मा—सिरोज—कांग्रेस
रामचन्द्र चौधरी—शादुलगढ—कांग्रेस
रामकरण जोशी—लालसोट—कांग्रेस
रामकिशोर व्यास—जयपुर शहर बी—कांग्रेस
शाह अलीमुद्दीन अहमद—जयपुर शहर ए—कांग्रेस
श्री दास गोयल—सवाई माधोपुर— कांग्रेस
कमला बेनीवाल—आमेर ए—कांग्रेस
टीकाराम पालीवाल—महुवा—कांग्रेस
वेदपाल त्यागी—छबड़ा—कांग्रेस
टीकाराम पालीवाल—मलारना चौर—कांग्रेस
हरिकिशन व्यास—जोधपुर बी—साम्यवादी
प्रदेश में 1952 की पहली विधानसभा से लेकर 2018 की 15 वीं विधानसभा तक वकालत के पेशे से आने वाले कुल विधायकों की संख्या 1071 रही है. लेकिन एक हकीकत ये भी रही है इनमें से करीब 279 विधायक ही वास्तविकता में वकालत के पेशे से जुड़े रहे. राजस्थान विधानसभा के लिए 1952 में हुए प्रथम चुनावों में कुल 160 सदस्यों में से 29 सदस्य वकालत के पेशे से आए थे. बड़ी बात ये कि ये सभी 29 विधायक पूर्णतया वकालत से जुड़े थे. लेकिन 2018 में 14 वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में कुल 200 में से 32 विधायक वकालत कि डिग्री लिए हुए विजयी हुए, लेकिन इनमे से 23 विधायक ही वकालत के पेशे से सीधे जुड़े रहे थे.
15 वीं विधानसभा में वकालत पेशे से आए करीब 28 विधायक रहे है. इसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी शामिल है, बहुत कम लोग जानते है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने शुरुआती कैरियर में वकालत से जुड़े थे, उन्होने कुछ समय के लिए पूर्व जस्टिस विनोद शंकर दवे का कार्यालय भी जॉइन किया था. 15 वीं विधानसभा में अशोक गहलोत, गोविंद डोटासरा, बृजेन्द्र ओला, सुखराम विश्नोई, राजेन्द्र राठौड़, नरपत सिंह राजवी, जोगाराम पटेल, कैलाश मेघवाल, रामलाल शर्मा सहित कुल 28 विधायक वकालत के पेशे से जुड़े रहे है.
ऐसा नहीं है कि केवल वकील ही राजनीति में आए. वक्त के साथ साथ राजस्थान हाईकोर्ट से जुड़े कई जज भी इस पेश में शामिल हुए..तो वही कई वकील जज बनने से पहले भी राजनीति में सक्रिय रहे और जज बनने के बाद फिर से राजनीति में सक्रिय हुए. .ये अलग बात है कि इनकी संख्या एक दर्जन से भी कम रही है.
कई जजो ने भी थामा जब राजनीति का दामन
राजस्थान हाईकोर्ट के 9 जज लड़ चुके है चुनाव
जस्टिस दौलतमल भण्डारी— सांसद
जस्टिस इन्द्रनाथ मोदी— विधायक
गुमानमल लोढा— सांसद
जस्टिस फारूक हुसैन— राज्य में मंत्री
जस्टिस चंद्रभान भार्गव—स्टेट असेंबली में सदस्य
जस्टिस रणछोड़दास गट्टानी—कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे.
जस्टिस पी डी कुडाल, जस्टिस दिनकर लाल मेहता
जस्टिस मोहनलाल श्रीमाल, महाधिवक्ता नाथूलाल सैन
सहित कई जजों ने आजमाया राजनीति में भविष्य
बहरहाल प्रदेश में 16 वीं विधानसभा के लिए आगामी 25 नवंबर को चुनाव होंगे, इस बार भी भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों के करीब 200 से अधिक वकालत से जुड़े नेता चुनावी मैदान में है. चुनाव लड़ने वाले में अशोक गहलोत, गोविंद डोटासरा, कालीचरण सराफ, बाबूलाल नागर, बृजेन्द्र ओला, चन्द्रमनोहर बंटवाड़ा, सुखराम विश्नोई, हनुमान बेनीवाल, मनोजकुमार, राजेन्द्र राठौड़, नरपत सिंह राजवी, सुरेन्द्र गोयल, जोगाराम पटेल, प्रभुलाल सैनी, कैलाश मेघवाल, रामलाल शर्मा, प्रहलाद गुंजल सहित कई बड़े नाम शामिल है. देखना होगा कि इस बार विधानसभा में कुल कितने वकालत की पृष्ठभूमि से जुड़े राजनेता पहुंच पाते है.
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