15 अगस्त 1947 को भले ही देश आजाद हो गया हो लेकिन इस आजादी से पहले कई लोग अपने ही घर से बेघर हुए. उन्हें 14 अगस्त को मिली आजादी के बाद के दंगों का दंश भी झेलना पड़ा, जिसमें हजारों लोगों को पाकिस्तान से अपने घर और जमीन छोड़कर अजमेर आना पड़ा.
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Ajmer: 15 अगस्त 1947 को भले ही देश आजाद हो गया हो लेकिन इस आजादी से पहले कई लोग अपने ही घर से बेघर हुए. उन्हें 14 अगस्त को मिली आजादी के बाद के दंगों का दंश भी झेलना पड़ा, जिसमें हजारों लोगों को पाकिस्तान से अपने घर और जमीन छोड़कर अजमेर आना पड़ा. ऐसा ही एक परिवार अजमेर उत्तर से विधायक वासुदेव देवनानी का है.
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विधायक के जन्म से 3 साल पहले उनका पूरा परिवार पाकिस्तान सिंध प्रांत नवाब शाह जिले में स्थित ठंडी आदम शहर रहता था. जहां उनके बाबा स्वर्गीय भगवान दास अनाज के व्यापारी थे.वे एक समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखते थे. लेकिन 14 अगस्त 1947 को आजादी के बाद हुए दंगों में उन्हें अपना पूरा परिवार छोड़ने को मजबूर होना. अपनी जगह से विस्थापित होकर भारत में आ गए. जहां उन्होंने जोधपुर में विस्थापितों भरी जिंदगी जी.
बिस्किट गोली और कागज की थैलियां बेची
इस दौरान उनके परिवार ने बिस्किट, गोली और कागज की थैलियां बेचकर अपना गुजर बसर किया. इस बारे में विधायकवासुदेव देवनानी का कहना है कि यह दंश उनके पूरे परिवार ने झेला था. पर कुछ राहत मिलने के कुछ समय बाद बाबा की नौकरी भारतीय डाक विभाग के चपरासी के रूप में लग गई. उसके बाद उनके जीवनस्तर में सुधार आया. उन्होंने और उनके पूरे परिवार ने मुफलिसी में जीवन जिया.
उन्होंने बताया कि, पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए एक और सिंधी समाज आज भी अपने पैरों पर खड़ा है और अपने देश की आन बान शान के लिए हमेशा तत्पर रहता है. विधायक वासुदेव देवनानी को उम्मीद है कि भारत एक बार फिर अखंड होगा.
अपनी बात पर उदाहरण देते हुए बताया कि, ईसाई समाज में भी 22 सालों बाद वसल्लम पर अपना कब्जा जमाया था. इसी प्रकार भारत को कुछ समय जरूर लगेगा. लेकिन एक दिन ऐसा आएगा कि वह अपनी जमीन पर होंगे और इन खुशियों को और अच्छा महसूस किया जाएगा.
इस मौके पर उन्होंने कहा कि उस समय भी संघ परिवार ने पाकिस्तान से अपना सब कुछ छोड़कर भारत आए. लोगों की काफी मदद की थी. इसी कारण वह अपना जीवन यापन कर पाए. इस मौके पर संगीत के अनेकों स्वयंसेवकों ने विभाजन के दौरान विस्थापित शिविरों में आवाज भोजन व चिकित्सा में सहयोग किया. उनके बाबा भी हजारों स्वयंसेवकों के साथ विभाजन के समय हजारों हिंदू व सिख परिवारों की पलायन एवं पुनर्वास में संघ के सेवा कार्य में सहभागी बने थे.
Reporter: Ashok Bhati
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