Trending Photos
Time Machine on Zee News: आज टाइम मशीन में बात होगी उस साल की जब नागरिकों के अधिकार खत्म कर दिए गए थे. जब देश की न्याय व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी. प्रेस से लेकर आम आदमी तक किसी को भी अपनी बात कहने की आजादी नहीं थी. ये वो साल था जब किसी को भी जेल भेज दिया जाता था या फिर नजरबंद कर दिया जाता था. हम बात कर रहे हैं साल 1975 की. 25 और 26 जून की दरम्यानी रात को अचानक इमरजेंसी यानी आपातकाल का ऐलान कर दिया गया. धीरे-धीरे देश के सभी बड़े विपक्षी नेताओं को जेल भेज दिया गया. लोगों की जबरदस्ती नसबंदी करवाई गई. बड़ी-बड़ी फिल्मों पर बैन लगा दिया गया.
इंदिरा की 'इमरजेंसी' वाली मनमानी!
साल 1975 अपने साथ आपातकाल का काला अध्याय लेकर आया. इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी. फिर आई तारीख 12 जून 1975. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा की अदालत में सोशलिस्ट नेता राजनारायण की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रायबरेली से चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाया जाना था. खुद श्रीमती गांधी कोर्ट रूम में मौजूद थीं. जस्टिस जगमोहनलाल ने फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी को चुनावी गड़बड़ी का दोषी करार दिया और उनका चुनाव रद्द करते हुए, उन्हें छह वर्ष तक किसी भी संवैधानिक पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया. इस फैसले से इंदिरा गांधी के लोकसभा छोड़कर राज्यसभा जाने का रास्ता भी खत्म हो गया. इंदिरा गांधी के सामने प्रधानमंत्री पद छोड़ने के अलावा सिर्फ एक ही रास्ता बचा था, वो रास्ता था आपातकाल लगाने का. फिर 25 और 26 जून की दरम्यानी रात को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू करने का ऐलान कर दिया.
आपातकाल के ड्राफ्ट पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने 25 जून की आधी रात को हस्ताक्षर किए थे और 26 जून को इंदिरा गांधी ने कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई जिसमें गृह सचिव खुराना ने आपातकाल का घोषणापत्र कैबिनेट को सुनाया जिसके बाद कई बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया, कई लोगों को नजरबंद कर दिया गया. प्रेस की स्वतंत्रता को समाप्त कर दिया गया. मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी MISA लागू कर लोगो को गिरफ्तार किया जाने लगा. आम नागरिकों से उनके अधिकार छीन लिए गए. मनमाने ढंग से सरकारी तंत्र का इस्तेमाल होने लगा.
आपातकाल लागू होते ही MISA तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी की गई, इनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस और अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे. ये आपातकाल करीब 21 महीने तक चला और इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल आंका गया.
इमरजेंसी की चीफ ग्लैमर गर्ल 'रुखसाना सुल्ताना'
70 के दशक में अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर समाजसेवी रूखसाना सुल्ताना को संजय गांधी का काफी करीबी माना जाता था. इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी ने नसबंदी कार्यक्रम चलाया था और रुखसाना सुल्ताना को मुस्लिम बहुल इलाके जामा मस्जिद में लोगों की नसबंदी कराने और वहां से अवैध निर्माण हटाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. जिसके तहत लोगो को कभी पैसों तो कभी नौकरी का लालच देकर नसबंदी के लिए राजी करवाया गया और तो और संजय गांधी की छत्रछाया में रुखसाना की ताकत इतनी बढ़ गई थी कि उन्होनें अवैध निर्माण के नाम पर दिल्ली के तुर्कमान गेट पर भी बुलडोजर चलाने की तैयारी कर ली थी. लेकिन बाद में इंदिरा गांधी के हस्तक्षेप की वजह से रूखसाना को पीछे हटना पड़ा.
रुखसाना सुल्ताना का नाम भारतीय फिल्मों और मीडिया जगत की कई मशहूर हस्तियों से जुड़ा हुआ है. रुखसाना ने भारतीय सेना में एक सिख जनरल शविंदर सिंह विर्क से शादी की थी, लेकिन जल्द ही उनका तलाक हो गया. रुखसाना सुल्ताना की एक बेटी है, जिन्हे लोग बॉलीवुड अभिनेत्री अमृता सिंह और सारा अली खान की मां के रुप में जानते हैं.
महारानी को जाना पड़ा जेल
आपातकाल का एक किस्सा जो सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहा वो था जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी के किले पर फौज की तैनाती और आयकर विभाग की रेड. एक ही स्कूल में पढ़ने वालीं देश की सबसे ताकतवर महिला इंदिरा गांधी और दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला का खिताब पाने वाली पूर्व महारानी गायत्री देवी के बीच मनमुटाव तो शुरू से ही था, लेकिन इसका असर तब ज्यादा देखने को मिला जब गायत्री देवी ने इंमरजेंसी के खिलाफ आवाज उठाते हुए इंदिरा गांधी का विरोध किया और यही बात इंदिरा को पंसद नहीं आई. जिसके बाद इंदिरा ने गायत्री देवी के महल पर आयकर विभाग से छापे पड़वाए और सेना की मदद से पूरे महल की खुदाई करवा दी. महारानी गायत्री देवी की किताब 'A princess Remembers के अनुसार महारानी गायत्री देवी इंदिरा गांधी द्वारा लगाए आपातकाल का विरोध किया था. इसके बाद इंदिरा ने आयकर विभाग से राजघराने की आय और संपत्ति की जांच का आदेश दिया. सेना की मदद से आयकर विभाग ने राजस्थान में उनके पैलेस में खुदाई की ताकि छुपा खजाना मिल जाए. सेना ने महारानी का पुरा किला खोद दिया, कहा जाता है कि तीन महीने तक ये खुदाई चली. इसके लिए गायत्री देवी को तिहाड़ जेल भी जाना पड़ा था. इस दौरान वो करीब 6 महीन जेल में रहीं.
नरेंद्र मोदी ने पहनी पगड़ी
आपातकाल के दौरान एक तरफ जहां अटल बिहारी वाजपेई लालकृष्ण आडवाणी जैसे बड़े नेताओं को जेल जाना पड़ रहा था. वहीं पुलिस की कार्यवाही से बचने के लिए वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना भेष बदल लिया था. तत्कालीन RSS कार्यकर्ता के तौर पर जाने जाने वाले नरेंद्र मोदी ने पगड़ी पहनी और दाढ़ी बढ़ाई और सिख का भेष बनाया.
इमरजेंसी के दौरान 2 साल तक विपक्ष के नेताओं को जेल भेजा गया, प्रेस की स्वतंत्रता पर ताला लगा दिया और आम लोगों की जबरन नसबंदी कराई गई. उस संघर्ष और आंदोलन के दौर में RSS ने काफी सक्रिय भूमिका निभाई RSS के सभी छोटे-बड़े कार्यकर्ता हर संभव मदद करने के लिए अंडरग्राउंड होकर काम कर रहे थे जिनमें से एक नरेंद्र मोदी भी थे. उस वक्त मोदी को साहित्य का वितरण करने की जिम्मेदारी दी गई थी जिसे उन्होनें बखूबी निभाया था.
इंदिरा गांधी के साथ किरण बेदी का ब्रेकफास्ट
1975 में किरण बेदी को दिल्ली में पहली पोस्टिंग मिली और इसी साल 26 जनवरी की परेड में उन्होंने दिल्ली पुलिस के सैन्य दस्ते का नेतृत्व किया था और ये बात जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पता चली तो वो इस बात से बहुत खुश हुई कि पहली बार पुलिस का सैन्य दस्ता किसी महिला अधिकारी के नेतृत्व में 26 जनवरी की परेड में शामिल होगा. इस बात से खुश होकर इंदिरा गांधी ने किरण बेदी को अपने निवास स्थान पर नाश्ते के लिए आमंत्रित किया जिसके बारे में किरण बेदी ने अपनी किताब ऑटो बायोग्राफी I Dare में भी लिखा है.
ऐसा नहीं है कि उन्होंने नाश्ते पर सिर्फ मुझे आमंत्रित किया था मेरे अलावा तीन और महिला NCC कैडेट्स को भी पीएमओ से निमंत्रण मिला था उस दिन कि ये हमारी सबसे अच्छी तस्वीर है, इंदिरा गांधी के इस GESTURE से हम लोग काफी खुश हुए थे.
किशोर कुमार के गाने बैन
आपातकाल में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का शिकार मशहूर गायक किशोर कुमार भी हुए. कहा जाता है कि किशोर कुमार अपने नियमों के काफी पक्के थे. वो जो सोच लेते थे फिर उससे समझौता नहीं करते थे. अपने इन्हीं उसूलों के चलते उनके गानों को बैन कर दिया गया था. आपातकाल के दौरान कांग्रेस की हालत काफी खराब थी. अपनी खराब हालात को देखकर कांग्रेस को भी समझ आ गया था कि उन्हें एक ऐसे आवाज की जरूरत है जो उसकी बात आम जनता तक पहुंचा सके, उनके लिए गाने बनाए और उनका प्रचार प्रसार करे. इसके लिए इंदिरा गांधी ने तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री वीसी शुक्ला की मदद ली.
इंदिरा गांधी ने वीसी शुक्ला के माध्यम से किशोर कुमार के पास संदेश भेजा कि वो इंदिरा गांधी के लिए गीत गाएं लेकिन किशोर कुमार ने इसके लिए मना कर दिया. यह बात कांग्रेस को इस कदर नागवार गुजरी कि उन्होंने किशोर कुमार के गानों पर ही बैन लगा दिया. जब तक देश में आपातकाल रहा, किशोर कुमार के गाने आकाशवाणी जैसे किसी भी प्लेटफॉर्म पर नहीं चलाए जाते थे.
इंदिरा को सताया 'आंधी' का खौफ!
1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में दो साल के लिए इमरजेंसी लगाई. आपातकाल घोषित होने के बाद देश में कई सारी चीजें बदलीं. लेकिन इसी साल एक ऐसी फिल्म जिसने इंदिरा की रातों की नींद उड़ा दी और वो फिल्म थी आंधी.
'आंधी' फिल्म 1975 में रिलीज हुई थी और उस समय इस फिल्म पर इंदिरा गांधी की जिंदगी से जुड़े होने का आरोप लगाया गया था. दरअसल, फिल्म को रिलीज के कुछ महीने बाद बैन किया गया था और वो इसलिए क्योंकि उस साल में आने वाले गुजरात चुनाव में विपक्षी दलों के नेताओं ने फिल्म की कुछ क्लिप्स को अपने चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किया था. उस समय सुचित्रा सेन को तस्वीरों में सिगरेट और शराब पीते दिखाया गया था. क्योंकि फिल्म में सुचित्रा सेन एक पॉलिटिशियन का किरदार निभा रही थीं और उधर उस दौर में इंदिरा गांधी ही देश की सबसे बड़ी महिला नेता थीं तो ऐसे में इसे इंदिरा से जोड़ा गया और कहा गया कि फिल्म के जरिए इंदिरा की छवि खराब हो रही है.
बाद में ये बात सामने आई कि ये फिल्म इंदिरा गांधी की जिंदगी पर आधारित है और इसलिए कांग्रेस पार्टी ने इस फिल्म को बैन करवा दिया और फिर 1975 में इसके बाद इमरजेंसी भी लग गई और फिर 1977 तक ये फिल्म बैन रही थी. इस फिल्म को इलेक्शन के कोड ऑफ कंडक्ट का उल्लंघन करने के लिए बैन किया गया था.
आपातकाल ने बदला शोले का क्लाइमेक्स
फिल्म शोले 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई थी. अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, जया बच्चन और हेमा मालिनी जैसे स्टार्स इस फिल्म में थे. फिल्म सुपरहिट साबित हुई. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी फिल्म शोले का क्लाइमैक्स आखिरी वक्त पर बदल दिया गया था. फिल्म के डायरेक्ट रमेश सिप्पी ने बताया कि 'फिल्म का क्लाइमैक्स जैसा दिखाया गया वैसा नहीं था. उस वक्त चल रही इमरजेंसी को ध्यान में रखते हुए सेंसर ने फिल्म के क्लाइमैक्स पर आपत्ति जताई थी. असली क्लाइमैक्स सीन में ठाकुर अपने नुकीले जूतों से गब्बर को मार देता है. इस सीन को सेंसर ने कानून का हवाला देकर बदलने को कहा था. जिसमें गब्बर को कानून के हवाले किया गया.'
रमेश सिप्पी इस फिल्म के डायरेक्टर थे. इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर पैसों की बरसात कर दी थी. गली-गली में फिल्म के डायलॉग गूंजने लगे थे. पक्के दोस्तों को जय वीरू कहा जाने लगा था. तो बकबक करने वाली लड़कियों को बसंती के नाम से पुकारने लगे. मांओ ने अपने छोटे बच्चों को गब्बर का डर दिखाकर सुलाना शुरू कर दिया था और धीरे-धीरे ये फिल्म 70 के दशक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में शामिल हो गई.
नागपुर में मनाया गया विश्व हिंदी दिवस
भारत कई तरह की भाषाओं का धनी देश है लेकिन भारत को मूल रूप से उसकी हिंदी भाषा के लिए जाना जाता है. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पहला विश्व हिंदी दिवस सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को महाराष्ट्र के नागपुर में आयोजित किया गया था. इस सम्मेलन का उद्देश्य दुनियाभर में हिंदी के प्रचार-प्रसार करना था. सम्मेलन में 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे. जिस तारीख को पहला सम्मेलन हुआ था, उसी दिन को राष्ट्रीय हिंदी दिवस घोषित कर दिया गया.
आपको बता दें कि विश्व हिंदी दिवस और राष्ट्रीय हिंदी दिवस में एक खास फर्क है और वो ये कि राष्ट्रीय हिंदी दिवस को इसलिए मनाया जाने लगा क्योंकि भारत में ही हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था. वहीं विश्व हिंदी दिवस को इसलिए मनाया जाता है ताकि विश्न में भी हिंदी को वही दर्जा मिले.
1975 में लॉन्च भारत का पहला सैटेलाइट!
1970 आजाद हिंदुस्तान का ये वो दौर था. जो धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था और नई-नई उपलब्धियों को छू रहा था. इसी बीच साल 1975 में भारत का पहला सैटेलाइट यानि उपग्रह लॉन्च किया गया. 1975 में इसरो ने 19 अप्रैल को सोवियत संघ की सहायता से देश में ही विकसित पहले उपग्रह यानि सेटेलाइट आर्यभट्ट को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित किया था और उस वक्त इसरो की ये पहली कामयाबी थी.
इस सैटेलाइट का वजन 360 किलोग्राम था. इंदिरा गांधी ने सैटेलाइट आर्यभट् का नाम गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर ही रखा था. 17 साल बाद 11 फरवरी 1992 में इसने दोबारा पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश किया. 360 किग्रा वजनी आर्यभट्ट को सोवियत संघ के इंटर कॉसमॉस रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में भेजा गया था. इस सैटेलाइट के लिए एक शौचालय का कायाकल्प किया गया और वहां इसका काम चला. सैटेलाइट को बनाने से लेकर लॉन्च करने तक में 3 करोड़ खर्च आया, लेकिन बाद में ये खर्च और बढ़ा. 1975 में इस सैटेलाइट के लॉन्च होने के इस ऐतिहासिक क्षण को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 1976 में दो रुपये के नोट के पिछले हिस्से पर छापा और 1997 तक दो रुपये के नोट पर आर्यभट्ट उपग्रह की तस्वीर छापी गई.
ये स्टोरी आपने पढ़ी देश की सर्वश्रेष्ठ हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर
Video