एक देश-एक चुनाव.. संविधान संशोधन के लिए JPC गठित, प्रियंका से लेकर पात्रा तक देखें सभी सदस्यों की लिस्ट
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एक देश-एक चुनाव.. संविधान संशोधन के लिए JPC गठित, प्रियंका से लेकर पात्रा तक देखें सभी सदस्यों की लिस्ट

One country one election: ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्तावित विधायी ढांचे की समीक्षा के लिए 21 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन किया गया है. इस समिति में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल हैं.

एक देश-एक चुनाव.. संविधान संशोधन के लिए JPC गठित, प्रियंका से लेकर पात्रा तक देखें सभी सदस्यों की लिस्ट

One country one election: ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्तावित विधायी ढांचे की समीक्षा के लिए 21 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति (JPC) का गठन किया गया है. इस समिति में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल हैं. मंगलवार को केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता अर्जुन राम मेघवाल द्वारा पेश किए गए बिल की समीक्षा के लिए यह समिति बनाई गई है. इस बिल का उद्देश्य संविधान और संबंधित कानूनों में संशोधन कर पूरे देश में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की प्रक्रिया को लागू करना है. सरकार लंबे समय से इस प्रस्ताव पर काम कर रही है, जिसका मकसद चुनावी खर्च को कम करना और शासन को अधिक प्रभावी बनाना है.

लोकसभा से 21 सदस्य शामिल

समिति में लोकसभा के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता शामिल किए गए हैं. इन सदस्यों में पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर और हाल ही में निर्वाचित कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं.

लोकसभा सदस्यों के नाम..

पी.पी. चौधरी
डॉ. सी.एम. रमेश
बंसुरी स्वराज
परशोत्तमभाई रुपाला
अनुराग सिंह ठाकुर
विष्णु दयाल राम
भरत हरि महताब
डॉ. संबित पात्रा
अनिल बलूनी
विष्णु दत्त शर्मा
प्रियंका गांधी वाड्रा
मनीष तिवारी
सुखदेव भगत
धर्मेंद्र यादव
कल्याण बनर्जी
टी.एम. सेल्वगणपति
जी.एम. हरीश बालयोगी
सुप्रिया सुले
डॉ. श्रीकांत एकनाथ शिंदे
चंदन चौहान
बलाशोरी वल्लभनेनी

राज्यसभा से 10 सदस्य भी शामिल

इस समिति में राज्यसभा के 10 सदस्यों को भी शामिल किया गया है, जो बिल की समीक्षा में अहम भूमिका निभाएंगे.

विपक्ष ने जताई कड़ी आपत्ति

‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्ताव का विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया है. उनका कहना है कि यह कदम लोकतांत्रिक ढांचे पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. विपक्ष का तर्क है कि यह सत्ताधारी पार्टी को राज्यों में चुनावी प्रक्रिया पर अधिक प्रभाव जमाने का मौका देगा और क्षेत्रीय दलों की स्वायत्तता और आवाज को कमजोर कर सकता है.

सरकार का पक्ष

सरकार का मानना है कि इस प्रस्ताव से बार-बार होने वाले चुनावों से बचा जा सकेगा, जिससे चुनावी खर्च में कमी आएगी और विकास कार्यों में बाधा कम होगी. हालांकि, इस पर अभी गहन चर्चा और समीक्षा की आवश्यकता है.

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