ZEE NEWS TIME MACHINE: जी न्यूज के खास कार्यक्रम टाइम मशीन में आज हम जाएंगे 1954 यानी 68 साल पहले के हिंदुस्तान में. ये वो साल था जब जवाहरलाल नेहरू का एक फैसला उन्हें अनगिनत ताने दे गया. नेहरू ने उस वक्त सैकड़ों चीनियों का पेट भरा था, उन्हें चावल खिलाए थे. ये वही साल था जब किसी भी धर्म या जाति में शादी करने की छूट देने वाला कानून बना और प्रेमी जोड़ों ने आजाद हवा में सांस ली.
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ZEE NEWS TIME MACHINE: जी न्यूज के खास कार्यक्रम टाइम मशीन में आज हम जाएंगे 1954 यानी 68 साल पहले के हिंदुस्तान में. ये वो साल था जब जवाहरलाल नेहरू का एक फैसला उन्हें अनगिनत ताने दे गया. नेहरू ने उस वक्त सैकड़ों चीनियों का पेट भरा था, उन्हें चावल खिलाए थे. ये वही साल था जब किसी भी धर्म या जाति में शादी करने की छूट देने वाला कानून बना और प्रेमी जोड़ों ने आजाद हवा में सांस ली. ये साल एक हादसा भी लेकर आया, आप टाइम मशीन में देखेंगे कैसे कुंभ में भगदड़ मची और सैकड़ों भक्त मारे गए. ये सब हुआ था एक नेता के दौरे की वजह से.
ये साल अभिनेता दिलीप कुमार के एक खास दाग का भी है जिस दाग ने उन्हें बड़ा सम्मान दिलाया, ये साल फुटबॉल में पाकिस्तान को मारी गई हमारी किक का भी है. इसी तरह पहली बार दुनिया ने देखा भारत का पहला मोंगली बॉय. तो चलिए ब्लैक एंड वाइट की अनोखी दुनिया में आपको ले चलते हैं.
आजाद भारत में एशियाई देशों को एकजुट करने के लिए देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने कई कदम उठाए, जिसमें से कुछ में नेहरू की सराहना हुई और कुछ के दांव नेहरू पर उल्टे पड़ गए. इन्हीं में से एक था -चीन के सैनिकों के लिए चावल भेजना.
1952 में चीन ने तिब्बत पर अपना कब्जा जमाने के लिए वहां अपने 1 लाख सैनिक भेज दिए और जब इन सैनिकों को खाद्य आपूर्ति की कमी होने लगी तो चीन के सचिव ने भारत से गुहार लगाई, उस वक्त नेहरू ने चीन के सैनिकों को चावल पहुंचाए, वो भी एक साल नहीं बल्कि तीन साल तक....जिसका जिक्र सिलेक्टेड वर्कस ऑफ जवाहरलाल नेहरू नाम की सरकारी संकलन किताब में किया गया है.
इसमें जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, 'चीन को बहुत अधिक मात्रा में चावल नहीं भेजे गए हैं. स्पेशल केस होने की वजह से हमने कम मात्रा में ही चावल भेजा है. चीन की सेना को इस चावल की बहुत जरूरत है और हम उनको जिंदा रखने में मदद कर रहे हैं. लेकिन हम उन्हें तिब्बत के बाहर भी देखना चाहते हैं.' नेहरू जिन चीनी सैनिकों को 1954 में चावल खिला रहे थे, वो चीनी सैनिक तिब्बत में मानवता का कत्ल कर रहे थे और इसी वजह से नेहरू के इस कार्य की कई लोगों ने आलोचना भी की थी.
भारत के हर व्यक्ति का ये संवैधानिक अधिकार है कि वो जिस धर्म और जाति में चाहे शादी कर सकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए देश की आजादी के बाद 1954 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय एक कानून बनाया गया. इस कानून को स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तौर पर जाना जाता है. इसे सिविल मैरिज एक्ट भी कहते हैं. इस एक्ट के अनुसार दो अलग-अलग जाति या धर्म के लोग आपस में शादी कर सकते हैं.
-अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह को रजिस्टर करने और मान्यता देने के लिए.
- ये एक्ट शादी को विधिपूर्वक करने की अनुमति देता है.
-इस एक्ट के तहत किसी भी धार्मिक औपचारिकता की जरूरत नहीं होती.
- एक्ट में लड़की या लड़के किसी को भी धर्म बदलने की जरूरत नहीं पड़ती.
इस एक्ट में शादी के लिए किसी तरह का धार्मिक अनुष्ठान नहीं होता है, लेकिन इसमें विवाह का रजिस्ट्रेशन होना जरूरी है वो भी कुछ शर्तों के साथ.
-दोनों पक्षों में से किसी एक का कोई जीवनसाथी नहीं होना चाहिए
-दोनों वयस्क तथा अपने फैसले लेने में सक्षम हों
-पुरुष की आयु 21 और महिला की कम से कम 18 साल होनी चाहिये
1954 में भले ही लड़कियों की उम्र 18 वर्ष थी लेकिन साल 2021 में स्पेशल मैरिज एक्ट में संशोधन करते हुए लड़की की वैवाहिक उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल कर दी गई है.
हिंदू धर्म में ये मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति कुंभ स्नान करता है तो उसे पापों से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही कुंभ स्नान करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1954 में इलाहाबाद के कुंभ मेले के दौरान कुछ ऐसा हुआ जो इतिहास के पन्नों में एक दर्दनाक हादसे के तौर पर दर्ज हो गया.
3 फरवरी 1954 यानि मौनी अमावस्था के दिन कुंभ मेले का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों लोगों ने हिस्सा लिया था. आस्था के इस पर्व पर उस वक्त ग्रहण लग गया था जब वहां भगदड़ मच गई, जिसकी वजह से कुंभ में करीब 800 लोगों की जान चली गई थी. कुंभ में हुई इस भगदड़ के कई कारण माने गए.
- पहला कारण- सैकड़ों लोगों की व्यवस्था वाले कुंभ में हजारों लोगों का पहुंचना
- दूसरा कारण- पंडित जवाहर लाल नेहरू का अचानक निरीक्षण करने आना
-तीसरा- प्रशासन की तरफ से सही इंतजाम ना करना
- कहा तो ये भी जाता है कि उस वक्त कुंभ में आए एक हाथी के बिगड़ने की वजह से भी भगदड़ मच गई थी
इस घटना का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में कौशांबी की एक रैली में भी किया था, हालांकि अब कुंभ के लिए जो भी इंतजाम किए जाते हैं उसे राज्य सरकार करती है.
आपने बचपन में ''मोगली'' की कहानियां तो खूब सुनी होंगी, जो जंगल में जानवरों के साथ रहता है और बिल्कुल जानवरों की तरह ही बर्ताव करता है.अगर हम आपसे कहें कि सन 1954 में एक ऐसा बच्चा था जो काफी हद तक मोगली से मिलता-जुलता था तो आप यकीन करेंगे?
अगर इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो लखनऊ में सन 1954 की वो घटना आज भी लोगों के ज़हन में कई सवाल खड़े कर जाती है, जिसमें रामू नाम के एक बच्चे का जिक्र किया गया, जिसकी हरकत बिल्कुल एक भेड़िए जैसी थी.
ये बच्चा लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के डिब्बों में देखा गया था. वह भेड़ियों की तरह आवाजें निकालता था. दो हाथ और दो पैर होने के बावजूद भी रामू जानवरों की तरह चलता था. ऐसा कहा जाता है कि 1 साल की उम्र में रामू को भेड़िया उठाकर ले गया था, जिसके बाद रामू करीब 6 साल तक भेड़ियों के बीच ही पला-बढ़ा. रामू में मानवीय गुण विकसित करने के प्रयास किए गए लेकिन 1968 में उसकी मौत हो गई. रामू के चर्चे सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी होने लगे थे. रामू को India's 'Wolf Boy के नाम से जाना जाने लगा. रामू का जिक्र एक बड़ी विदेशी मैगजीन में भी हुआ था.
दूध ऐसी चीज है जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी के लिए जरूरी है. दूध हमारे आहार का एक अभिन्न अंग है और जितना यह हमारी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करता है उतना खाने की कोई और चीज़ नहीं कर सकती. आज दूध हर जगह आसानी से मिल जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजाद भारत में दूध की कितनी किल्लत थी और इसी कमी के चलते भारत में श्वेत क्रांति आई थी.
1954 में दूध की कमी को पूरा करने के लिए भारत ने यूनिसेफ की मदद से 13 दूध प्रसंस्करण संयंत्र लगाए गए. भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भैंस के दूध से दूध पाउडर के निर्माण के लिए दुनिया की पहली डेयरी की नींव रखी. इसका उद्देश्य था ज़रूरतमंद बच्चों को निःशुल्क या रियायती दर पर दूध उपलब्ध कराया जाए.
1954 में आई श्वेत क्रांति तेजी से पूरे भारत में फैली, जिसका नतीजा ये हुआ कि भारत कुछ ही सालों के अंदर दुग्ध उत्पादक देशों की श्रेणी में चौथे स्थान पर आ गया और आज भारत की गिनती दुनिया के टॉप डेयरी उत्पादकों में होती है.
आजादी के बाद जो किस्से और कहानियां सबसे ज्यादा लोगों को पसंद आती थीं वो भारत और पाकिस्तान से जुड़ी थीं. आज भी भारत और पाकिस्तान का जब भी कोई मैच होता है तो दोनों मुल्कों की सड़कें सुनसान हो जाती हैं, जो जहां होता है वहां थम जाता है. ऐसा ही कुछ हुआ था 1954 में जब 4 देशों के अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंट में भारत ने पाकिस्तान को हराया था.
कोलकाता के ईडन गार्डन में खेले गए इस मैच की खासियत थी कि 8वीं गोरखा राइफल्स और गोरखा ब्रिगेड के लेफ्टिनेंट कर्नल पूरन बहादुर थापा ने इस मैच में हैट्रिक गोल दागे थे.भारत ने ये मैच पाकिस्तान के खिलाफ 3-1 से जीता था.
यूं तो फिल्म जगत में कई फनकार आए और गए, लेकिन इनमें से कुछ अदाकाराएं ऐसे भी रहीं जो आज भी दर्शकों के दिल पर राज कर रही हैं, हम बात कर रहे हैं रेखा की, जिन्होंने फिल्मी जगत में प्यार का ऐसा ''सिलसिला'' छेड़ा, जो अबतक थमने का नाम नहीं ले रहा है. 1954 में जन्मी रेखा आज भी जब स्क्रीन पर आती हैं, तो अपने चाहने वालों का दिल धड़का जाती हैं.
रेखा का असली नाम भानुरेखा गणेशन है. उनका जन्म चेन्नई में 10 अक्तूबर 1954 को हुआ. छोटी सी उम्र में रेखा के पिता उनके परिवार का साथ छोड़ चले गए, जिसके बाद परिवार का पालन-पोषण करने के लिए रेखा ने 13 साल की कम उम्र में फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था. रेखा ने अपने जीवन में लगभग 170 फिल्में कीं.
67 साल की हो चुकी रेखा की 7 बहनें और 1 भाई है. रेखा का नाम यूं तो कई एक्टर्स के साथ जोड़ा गया लेकिन अमिताभ बच्चन और रेखा को लेकर लोगों की ज़ुबान पर चर्चे आम रहे. मगर किस्मत को शायद कुछ और मंजूर था. रेखा और अमिताभ कभी एक नहीं हो पाए, इसलिए कई तरह के किस्से, कहानी और अफवाहों के बाद भी रेखा और अमिताभ के बीच उतना ही फासला है जितना दो किनारों के बीच में होता है.
सिनेमा जगत में योगदान देने के लिए 21 मार्च 1954 से हर साल फिल्मफेयर अवॉर्ड की शुरुआत की गई. 1954 में मुंबई के मेट्रो सिनेमा में आयोजित एक छोटे समारोह में केवल 5 श्रेणियों में पुरस्कार दिए गए. समारोह के मुख्य अतिथि भारत में अमेरिकी राजदूत जॉर्ज एलन थे. इन अवॉर्ड शो में मीना कुमारी को बैजू बावरा के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री और दिलीप कुमार को फिल्म दाग के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अवॉर्ड दिया गया.
'भारत रत्न’, देश का सर्वोच्च सम्मान. ये सम्मान उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने देश के किसी भी क्षेत्र में असाधारण योगदान के जरिए राष्ट्र सेवा की हो.इन सेवाओं में कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा और खेल भी शामिल है. इस सम्मान की शुरुआत 2 जनवरी 1954 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी. उन्होंने भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति रहे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को पहला भारत रत्न दिया था. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए भारत रत्न दिया गया था.अब हम आपको बताते हैं कि भारत रत्न मिलने वाले को और क्या-क्या सुविधाएं दी जाती हैं.
-भारत रत्न पाने वालों को सरकार से प्रमाणपत्र और तमगा मिलता है.
-भारत रत्न से सम्मानित लोग रेलवे में मुफ्त यात्रा कर सकते हैं.
-भारत रत्न पाने वाले शख्स को वॉरंट ऑफ प्रिसिडेंस में जगह दी जाती है. यानि उन्हें प्रोटोकॉल में सम्मानजनक जगह मिलती है.
भारत रत्न से सम्मानित लोग विजिटिंग कार्ड पर सम्मान का नाम लिख सकते हैं.
- साल 2014 में सचिन तेंदुलकर खेल के क्षेत्र में भारत रत्न पाने वाले अब तक इकलौते भारतीय हैं।
लोथल उस भारत की पहचान है, जिस काल में भारतीय उपमहाद्वीप में बहती सरस्वती नदी के किनारे पर मानव जीवन का वास हुआ करता था. इसके प्रमाण आज भी सरस्वती नदी और उसकी उप-नदियों के आस-पास बिखरे अवशेषों के रूप में पाए जाते हैं.
लोथल की खुदाई 13 फरवरी 1955 से 19 मई 1960 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई थी. लोथल प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के दक्षिणी शहरों में से एक था.आधुनिक राज्य गुजरात के भाल क्षेत्र में स्थित इस शहर का निर्माण 2200 ईसा पूर्व के आसपास हुआ था.लोथल प्राचीन काल में एक महत्वपूर्ण और संपन्न व्यापार केंद्र था, जिसके मोतियों, रत्नों और बहुमूल्य गहनों का व्यापार पश्चिम एशिया और अफ्रीका के सुदूर कोनों तक पहुंचता था.
- लोथल की खोज 1954 में की गई थी.
- इसकी खुदाई आर्कियोलॉजिस्ट एसआर राव ने की थी.
-लोथल हड़प्पा सभ्यता का एक महत्वपूर्ण भाग है.
- लोथल की खुदाई में कई कंकाल मिले थे
-लोथल में चावल के साक्ष्य मिले हैं
- लोथल को सिंधु घाटी सभ्यता के मैनचेस्टर के रूप में भी जाना जाता है
-वर्तमान में भारत की इस ऐतिहासिक धरोहर को एक बड़े दर्शनीय स्थल के रूप में निखारा जा रहा है.
भारत की विदेश नीति की मिसाल देने वालों के लिए 1954 का ये साल एक आई ओपनर है, क्योंकि तिब्बत के दमन में जुटे चीन की मदद के लिए वो भारत सामने आया था जिसने बाद में खुद भारत की जमीन कब्जाने की कोशिश की. पंडित नेहरू को काफी ताने सुनने को मिले कि आखिर उन्हें भूखे चीन के सिपाहियों को चावल खिलाने की क्या जरूरत थी, लेकिन शायद उस वक्त इंसानियत सियासत पर भारी पड़ी थी. ये वो साल था जब भारत 7 साल का हुआ था. भारत की आजादी के 75 साल के मौके पर जी न्यूज स्पेशल टाइम मशीन में कल चलेंगे साल 1955 में.