Mughal Emperor Humayun: पत्नी को छोड़ भाग खड़ा हुआ यह मुगल बादशाह, 1540 की लड़ाई से खौफनाक कनेक्शन
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Mughal Emperor Humayun: पत्नी को छोड़ भाग खड़ा हुआ यह मुगल बादशाह, 1540 की लड़ाई से खौफनाक कनेक्शन

Mughal Emperor Humayun History: मुगल बादशाह हुमायूं के बारे में कहा जाता है कि वो जीवन भर लड़खड़ाता रहा. यह बहस का विषय हो सकता है कि बाबर ने उसके लिए अनुकूल हालात नहीं बनाए थे लेकिन एक सच यह भी है उसे हिंदुस्तान छोड़ 15 साल तक निर्वासन में रहना पड़ा.

Mughal Emperor Humayun: पत्नी को छोड़ भाग खड़ा हुआ यह मुगल बादशाह, 1540 की लड़ाई से खौफनाक कनेक्शन

Battle of Bilgram 1540: 16वीं सदी के तीसरे दशक में आधुनिक हरियाणा के पानीपत में 1526 में एक लड़ाई लड़ी गई. लड़ाई का नतीजा यह रहा कि अफगानों की सत्ता चली गई और हिंदुस्तान में एक नए वंश की नींव पड़ी. बाबर की अगुवाई में मुगलों ने सत्ता स्थापित की. बाबर करीब चार साल तक जिंदा रहा और उसे साम्राज्य को व्यवस्थित रखने के लिए कई और लड़ाइयां और लड़नी पड़ीं जिसमें खानवा,चंदेरी और घाघरा का नाम खास है. खानवा और चंदेरी को तो उसने अपने झंडे के तले ला दिया लेकिन अफगानों के खिलाफ घाघरा की लड़ाई से उसे जो सीख मिली थी उसका जिक्र अपने बेटे हुमायूं से किया था. बाबर को यह आभास हो चुका था कि मुगलों के लिए राजपूतों से अधिक खतरनाक अफगान साबित हो सकते हैं.

बाबर की तरह नहीं था हुमायूं

हुमायूं ने बाबर की बातों से कितनी सीख ली होगी उससे आप इस बात से समझ सकते हैं उसके सिर से अफगानों ने हिंदुस्तान का ताज छीन लिया. 1539 में चौसा की लड़ाई में मिली करारी हार से उसने सबक नहीं लिया और जब 1540 में बिलग्राम में अफगानी सेना एक बार फिर आ खड़ी हुई तो उसे हिंदुस्तान छोड़कर भागना पड़ा. निर्वासन में उसे करीब 15 साल ईरान में रहना पड़ा. उसके बारे में ब्रिटिश इतिहासकार लेनपूल लिखते हैं कि वो एकलौता मुगल शासक था जो जीवन भर लड़खड़ता रहा.

शेरशाह बनाम हुमायूं

-चौसा का युद्ध, 26 जून 1539 को लड़ा गया था

-बिलग्राम का युद्ध 1540 में लड़ा गया. उसका असर यह हुआ मुगल बादशाह हुमायूं को हिंदुस्तान छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. यही नहीं 15 साल तक बिना राज्य वो बादशाहत करता रहा

-शेरशाह सूरी ने बिलग्राम की लड़ाई में हराया था. लेकिन सच ये था कि उस लड़ाई को हुमायूं ने बिना लड़े हाथ से जाने दिया.  पड़ा. शेरशाह ने परास्त किया

-गंगा के तट पर बिना युद्ध लड़े दोनों की सेनाएं यूं ही खड़ी रहीं

-दोनों तरफ की सेना की संख्या 2 लाख के करीब थी.

-शेरशाह पूरी तैयारी के साथ बिलग्राम में गंगा के तट पर डटा हुआ था वहीं हुमायूं की तैयारी अधूरी थी.

पत्नी को छोड़ भाग निकला

हुमायूं को यह उम्मीद नहीं थी कि शेरशाह गंगा के दूसरी छोर पर महीने भर टिकेगा. शेरशाह और हुमायूं दोनों एक दूसरे को परास्त करने की जुगत लगाते रहे. लेकिन कमजोर रणनीति का असर हुमायूं की सेना पर पड़ा. रसद की कमी होने लगी. इस बीच शेरशाह ने अपने एक गुप्तचर को हुमायूं के कैंप में भेजा. गुप्तचर को पता चला कि ना सिर्फ हुमायूं के पास रसद की कमी है बल्कि उसके भाइयों ने भी मदद करने से इनकार कर दिया है. इस बात की जानकारी जब शेरशाह तक पहुंची तो उसने भीषण आक्रमण किया. मुगल सेना रणभूमि में मौजूद होने के बावजूद शेरशाह की मंशा को नहीं भांप सके. अफगान फौज की दहशत की वजह से हजारों की संख्या में मुगल सैनिक गंगा में कूद गए. यह सब देख हुमायूं घबरा गया और युद्धभूमि छोड़ भाग निकला. यहां तक कि अपनी बेगम को भी उसके हाल ए अंदाज पर छोड़ दिया.

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