मल्लिकार्जुन खरगे को क्यों याद आए अटल बिहारी वाजपेयी? राज्यसभा में किया इस बात का जिक्र
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मल्लिकार्जुन खरगे को क्यों याद आए अटल बिहारी वाजपेयी? राज्यसभा में किया इस बात का जिक्र

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान पूर्व प्रधानमंत्रीअटल बिहारी वाजपेयी को याद किया और कहा कि  बीजेपी के लोगों ने अटल जी को पढ़ लिया होता तो वो नेहरू जी के बारे में ऐसा नहीं बोलते.

मल्लिकार्जुन खरगे को क्यों याद आए अटल बिहारी वाजपेयी? राज्यसभा में किया इस बात का जिक्र

Mallikarjun Kharge on Atal Bihari Vajpayee: राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को अचानक अटल बिहारी वाजपेयी की याद आ गई. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र करते हुए भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी के लोगों ने अटल जी को पढ़ लिया होता तो वो नेहरू जी के बारे में ऐसा नहीं बोलते. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आरएसएस (RSS) नेहरू जी के बार में गलत भ्रांतियां फैलाता रहा है.

मल्लिकार्जुन खरगे ने राज्यसभा में क्या-क्या कहा?

मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) ने कहा, 'अगर बीजेपी के लोगों ने अटल जी को पढ़ लिया होता तो वो नेहरू जी के बारे में ऐसा नहीं बोलते. बीजेपी के लोग जो जहरीली बाते बोल रहे हैं वो ठीक नही है. अटल जी ने नेहरू जी के बारे में क्या कहा है वो मैं आपको बता रहा हूं. नेहरू जी विरोधी को भी साथ लेकर चलते थे. ये अटल जी कहा करते थे. अटल जी की विचारधारा और नेहरू जी की सोच अलग थी. आरएसएस नेहरू जी के बारे मे गलत भ्रंतिया फैलाता रहा है.'

जब मल्लिकार्जुन खरगे ने अटल बिहारी वाजपेयी का बयान कोट किया तो सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि आप ये भी बता दीजिए कि वाजपेयी जी किस संगठन के थे. इस पर खरगे ने कहा कि वो जनसंघ से थे.

नेहरू के निधन पर संसद में भावुक हो गए अटल बिहारी वाजपेयी

बता दें कि 27 मई 1964 को जब पंडित जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ था, तब अटल बिहारी वाजपेयी राज्यसभा के सदस्य थे. उस दौरान उन्होंने संसद में भाषण के जरिए पंडित नेहरू को श्रद्धांजलि दी थी और भावुक हो गए थे. उन्होंने कहा था, 'एक सपना टूट गया, एक गीत खामोश हो गया. एक लौ अनंत में लुप्त हो गई. मृत्यु निश्चित है और शरीर अनित्य है. जिस सुनहरे शरीर को हमने चंदन की चिता के हवाले कर दिया उसका तो अंत होना ही था, लेकिन क्या मौत को इतने छुपकर आना था, जब दोस्त सो रहे थे और पहरेदार सुस्त थे. हमसे जीवन का अमूल्य उपहार छीन लिया गया. भारत माता आज दुःख से त्रस्त हैं. उन्होंने अपना प्रिय राजकुमार खो दिया. आज मानवता दुःखी है, उसने अपना भक्त खो दिया है. आज शांति बेचैन है, उसका रक्षक नहीं रहा. वंचितों ने अपना आश्रय खो दिया है. आम आदमी की आंखों की रोशनी चली गई.'

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