Madhya Pradesh News: उमरिया जिले में गोंडवाना रियासत कालीन एकमात्र सिंहपुर स्थित रानी की गढ़ी का कायाकल्प किया गया. जीर्णोद्धार के बाद गढ़ी परिसर में पर्यटकों की संख्या बढ़ गई है. गढ़ी का इतिहास दुश्मन आक्रमणकारियों से अपनी लाज बचाने प्राणों की आहुति देने वाली कहानी से जुड़ा है. इसके किस्से कहानी और कविता के माध्यम से स्थानीय लोग अनाम रानी की कहानी का बखान करते हैं. रिपोर्ट: अरुण त्रिपाठी, उमरिया
एक अनाम रानी, लोगों को जिसकी कहानी जुबानी याद है. कभी किवदंतियां तो कभी कविता के माध्यम से रानी के बलिदान के गाथा पूरे इलाके में गाकर सुनाई जाती है. हम बात कर रहे हैं उमरिया जिले के सिंहपुर ग्राम स्थित रानी की गढ़ी की, जिसका हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने जीर्णोद्धार कराया है.
ज्ञात इतिहास के मुताबिक 15 -16 वीं शताब्दी में जब गोंडवाना रियासत अपने चरम पर थी तब यहां राजा की असमय मृत्यु के बाद रानी ने राजपाट संभाला और दुश्मन आक्रांताओं से अपनी जान और लाज बचाने प्राणों की आहुति दे दी.
रानी की गढ़ी और उसके रोचक इतिहास से जुड़ी खास बात यह है कि तत्कालीन राजा और रानी का नाम अब लोगों को याद नहीं है लेकिन उनके किस्से कहानी लोगों को जुबानी याद है. यहां तक कि स्थानीय आदिवासी समुदाय के लोग कविता के माध्यम से रानी के गौरवशाली इतिहास का बखान करते हैं.
स्थानीय सांसद और विधायक के प्रयासों से इस गढ़ी का कायाकल्प कराए जाने के बाद जीर्ण शीर्ण हो चुकी रानी की गढ़ी अब सुंदर रमणीय पर्यटन स्थल के रूप में तब्दील हो चुकी है. यहां अब लोगों का आना जाना बना रहता है.
गोंडवाना रियासतकालीन यह गढ़ी दो मंजिला बनी है, जिसमें चारों दिशाओं में किलानुमा बुर्ज बने हुए हैं. चारों ओर से लंबी चारदीवारी से घिरी है.
गढ़ी का निर्माण तत्कालीन समय की उत्कृष्ट स्थापत्य कला को प्रदर्शित करता है और गढ़ी के प्रवेश द्वार में 12वीं 13वीं शताब्दी में निर्मित भगवान हनुमान जी को विशाल प्रतिमा है.
आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले का अधिकांश हिस्सा तत्कालीन समय में गोंडवाना रियासत के अधीन रहा है. खास बात यह कि लगातार आदिवासी समुदाय के लिए विधायक और संसदीय क्षेत्र आरक्षित होने के बाद गोंडवाना रियासत कालीन इतिहास को लिपिबद्ध नही किया जा सका है.
विधायक शिवनारायण सिंह के प्रयास से पहली बार रानी के गढ़ी से जुड़े इतिहास और स्थल को सार्वजनिक रूप से लाने का प्रयास किया गया है. देखना होगा जिले के भीतर और अन्य स्थलों के कायाकल्प के प्रयास कब शुरू होंगे.
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