Balod Ancient Temple: बालोद जिले के गोंदली जलाशय में 70 साल बाद पानी खाली करने पर एक प्राचीन मंदिर का अवशेष सामने आया है. यह मंदिर ढाई सौ साल पुराना बताया जा रहा है और लोगों का मानना है कि यह महामाया माता का मंदिर है. जलाशय के निर्माण से पहले यहां गोंदली गांव हुआ करता था, और यह मंदिर उसी गांव का माना जाता है. मंदिर के आसपास बावली और पुराने गांव के अवशेष भी मिले हैं. यह स्थान अब पर्यटन का केंद्र बन गया है.
बालोद जिले का गोंदली जलाशय जो लगभग 70 वर्षों बाद अब खाली हुआ है और खाली करने की वजह है. डैम सेफ्टी टीम द्वारा किया जा रहा गेट का अवलोकन इस बार गेट के पूरा अवलोकन के लिए पानी को खाली किया गया है. जिसके बाद अगले साल उसकी मरम्मत की जाएगी. परंतु जब जलाशय को खाली किया गया तो बरसों पुराना इतिहास लोगों के सामने आया.
दरअसल, एक प्राचीन मंदिर का अवशेष इस जलाशय में पाया गया है. जिसे लोग लगभग ढाई सौ वर्ष पुराना बता रहे हैं. वैसे तो बालोद राज परिवारों और राजवाड़े का गढ़ रहा है. अभी तक किसी भी राज्य परिवार ने इस मंदिर को लेकर कोई दावा प्रस्तुत नहीं किया है. परंतु लोगों के लिए पहेली बनी इस मंदिर को देखने के लिए रोजाना सैकड़ों लोगों की भीड़ यहां पहुंच रही है. मानो यह एक पर्यटन स्थल का रूप ले लिया है.
यहां पर लोग बताते हैं कि यह महामाया माता का मंदिर है. जिसे पूर्वजों ने स्थापित किया था. आपको बता दें कि वर्ष 1954 से 1956 के बीच इस जलाशय का निर्माण पूरा हुआ था. सहगांव और गैंजी के मध्य इस क्षेत्र में एक पुराना मंदिर दिखाई देने लगा. जो पानी में डूबा हुआ था. इस जगह पर लोहे के संकल, मिट्टी से बनी मूर्तियां और कुएं मिलने से लोगों के बीच कौतूहल का विषय बना है.दूर दूर से लोग यहां पहुंच रहे हैं.
आसपास के लोगों से जब इस मंदिर के विषय में जानकारी ली गई तो पता चला कि जब जलाशय का निर्माण नहीं हुआ था. तब इस जगह पर दर्जन भर गांव थे. जब गांव डूबान क्षेत्र में आया तो उन्हें विस्थापित किया गया और उसी गांव का या मान्यता वाला मंदिर रहा होगा. पूरा गांव उजड़ गया परंतु यह मंदिर आज सीना ताने खड़ा हुआ है. इसकी दीवारें जस की तस है. बाकी बाउंड्री जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है.
आपको बता दें कि मंदिर के आसपास करीब 3 बावली का अस्तित्व भी सामने आया है. यहां पर पुराने समय की झलक देखने को मिलती है. पुराने समय यहां पर बावली को बड़े ईंट और पत्थरों से बांधा गया है और इन बावली में आज भी पानी भरा हुआ है और इसकी बनावट लोगों को आकर्षित कर रही है.
1956-57 में जब गोंदली जलाशय का निर्माण किया. उससे पहले यहां पर गोंदली गांव हुआ करता था. जलाशय निर्माण के समय गांव को खाली कराया गया और ग्रामीण दूसरे जगह जाकर बस गए. उसके बाद में जो इस गांव का मां शीतला का मंदिर था. वो जलाशय निर्माण के समय वहीं स्थित रहा और वह पानी में डूब गया था. मंदिर का निर्माण तकरीबन 200 साल पुराना बताया जा रहा है. मंदिर के साथ-साथ कुछ पुरानी मूर्तियां भी मिली है.
यह मंदिर अब एक आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है. पानी कम होने के बाद लोग दूर-दूर से यहां पर पूजा पाठ करने के लिए आप आ रहे हैं और कुछ ट्रैवलर और जो प्राचीन चीजों को समझने की शौक रखते हैं. वह भी पहुंच रहे हैं. आपको बता दें कि कुंडली जलाशय तक पहुंचाने के लिए लोगों को लंबी दूरी तय करनी पड़ रही है.
ट्रेन्डिंग फोटोज़