Mata Kaushalya Birth Place: भारत के अलग-अलग हिस्सों के लोग भगवान राम के साथ अलग-अलग रिश्ते होने के दावे करते हैं. कोई उन्हें अपना दामाद मानता है. तो कोई उन्हे अपना लाल मानता है. एक ऐसा ही दावा छत्तीसगढ़ के लोग भी करते हैं. छत्तीसगढ़ के लोग राम को अपना भांजा मानते हैं. तो आइए जानते हैं, इस रिश्ते के पीछे की कहानी, आखिर, क्यों छत्तीसगढ़ में राम को भांजा माना जाता है.
प्रदेश की राजधानी रायपुर से 27 KM दूर चंदखुरी नाम का गांव हैं. इस गांव में विश्व का इकलौता माता कौशल्या का मंदिर है. यह विश्व का अकेला ऐसा मंदिर है, जो माता कौशल्या को समर्पित है.
लोगों का कहना है कि तालाब के बीचों बीच बना यह मंदिर 8वीं शताब्दी में बना था. जब से मंदिर को कई बार तोड़ कर बनाया गया है. मंदिर के गर्भगृह में जो प्रतिमा स्थापित है उसमें वे अपनी गोद में भगवान राम को लिए बैठी हैं.
छत्तीसगढ़ के जिस चंदखुरी गांव में भगवान राम की माता कौशल्या का यह मंदिर स्थापित है, उसे माता कौशल्या की जन्मस्थली माना जाता है.
माता कौशल्या की जन्मस्थली होने के नाते यह गांव श्री राम का ननिहाल हुआ. इस लिहाज से छत्तीसगढ़ के लोग भगवान राम को अपना भांजा मानते हैं.
स्थानियों की माने तो इस क्षेत्र को रामायण काल में और पुराणों में दक्षिण कौशल और महाकौशल नाम से जाना जाता है. यहां के राजा भानूमंत थे. इनकी राजकुमारी का नाम भानूमति था.
राजकुमारी भानुमति का नाम बाद में महाकौशल प्रदेश की वजह से कौशल्या पड़ा. दक्षिण कौशल की इन राजकुमारी कौशल्या का विवाह उत्तर कौशल (अयोध्या) के राजकुमार दशरथ जी के साथ हुआ था.
क्षेत्रीय मान्यताओं के मुताबिक, विवाह में भेंट के रूप में राजा भानुमंत ने बेटी कौशल्या को दस हजार गांव दिए थे. इसमें उनका जन्म स्थान चंद्रपुरी भी शामिल था. चंदखुरी का ही प्राचीन नाम चंद्रपुरी था.
जिस तरह अपनी जन्मभूमि से सभी को लगाव होता है ठीक उसी तरह माता कौशल्या को भी चंद्रपुर विशेष प्रिय था. राजा दशरथ से विवाह के बाद माता कौशल्या ने तेजस्वी और यशस्वी पुत्र राम को जन्म दिया.
गांव वालों की माने तो मंदिर में भगवान श्री राम को गोद में लिए हुए माता कौशल्या की जो मूर्ति मंदिर में स्थापित है वो सोमवंशी राजाओं ने बनवाई थी और यह तभी से चंदखुरी के मंदिर में मौजूद है.
भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद उनका राज्याभिषेक किया गया था. इस अभिषेक के बाद तीनों माताएं कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी तपस्या के लिए चंदखुरी ही पहुंचीं थीं. तीनों माताएं तालाब के बीच में विराजित हो गईं थी. जब इस तालाब के जल का उपयोग लोग गलत कामों के लिए करने लगे तो माता सुमित्रा और कैकयी रूठकर दूसरी जगह चली गईं. लेकिन, माता कौशल्या आज भी यहां विराजमान हैं.
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