India's Oldest Shani Mandir: शनिदेव का न्याय का देवता कहा जाता है. ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव का बहुत महत्व बताया गया है. कह जाता है कि अगर शनिदेव की दृष्टि किसी पर पड़ जाए शुभ या अशुभ कुछ भी हो सकता है. शनिदेव की छाया होने पर या तो इंसान के साथ बहुत अच्छा होता है या फिर उसके साथ बुरा होता है. इसलिए कई लोग शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए उनके मंदिर में जा कर दर्शन करते हैं, लेकिन क्या आप जानते देश का सबसे प्राचीन शनि मंदिर कहां है?
महाराष्ट्र के शनिशिंगणापूर गांव में शनिदेव का प्रसिद्ध मंदिर है. यहां रोज हजारों-लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए जाते हैं. हालांकि, मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में शनिशिंगणापूर से भी प्राचीर मंदिर बना हुआ है.
इस शनि मंदिर को शनिचरा के नाम से जाना जाता है. यहां भी हर शनिवार को हजारों श्रद्धालुओं की भी उमड़ती है. यहां के शनि मंदिर को भी चमात्कारिक माना जाता है.
मुरैना के ऐंती गांव की पहाड़ी पर बना शनिचरा मंदिर त्रेतायुग का बताया जाता है. कहा जाता है कि त्रेतायुग में लंकापति रावण ने शनिदेव को सोने की लंका में कैद कर लिया था.
श्रीराम भक्त हनुमानजी उस वक्त जब माता सीता को खोजते हुए लंका पहुंचे तो उन्होंने शनिदेव को रावण की कैद से रिहा कराया था. इसके बाद हनुमान जी ने शनिदेव को यहां लाकर छोड़ दिया था.
मान्यता है कि त्रेतायुग से ही शनिदेव का मंदिर बना हुआ है. यहां हर शनिवार को मेला लगता है. जिसमें देशभर से लोग आते हैं.
शनिशिंगणापूर से अलग इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां महिला और पुरुष दोनों शनिदेव को तेल चढ़ा सकते हैं. इस लिए ऐंती के शनिदेव मंदिर को देश का प्राचीन मंदिर माना जाता है.
फिलहाल मंदिर को महाकाल लोक की तरह भव्य बनाया जा रहा है. परिसर में बने अन्य मंदिरों का भी जीर्णोद्धार किया जा रहा है. यहां एयरपोर्ट से लेकर शनि मंदिर तक टू-लेन सड़क का भी निर्माण किया जा रहा है.
शनि मंदिर महाकाल लोक की तरह सप्तऋषि की 7 मूर्तियां स्थापित की जाएंगी, जिनका ऑर्डर मूर्तिकला को दे दिया गया है. सभी मूर्तियां मिंट स्टोन से बनाई जा रही हैं. ये स्टोन विश्व विख्यात है. यहां एक परिक्रमा मार्ग भी विकसित किया जा रहा है.
यहां शनिदेव का मंदिर जिस पहाड़ पर बना हुआ है. वहां काफी अधिक मात्रा में लौह तत्व है. इस वजह से यहां दर्शन का विशेष महत्व है. बताया जाता है कि शनिशिंगणापूर में विराजमान शनि देव की शिला को यहां से ले जाया गया था.
बताया जाता है कि त्रेता युग में इस मंदिर की खोज हुई थी. उसके बाद राजा विक्रमादित्य ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. कहा तो यह भी जाता है कि यहां स्थापित शनिदेव की मूर्ति उल्कापिंड से बनी हुई है. यहां कुछ गड्ढों का निशान आज भी मौजूद हैं.
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