मध्य प्रदेश में कल 170 सीटों पर जनपद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव हुए थे. लेकिन राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी जीत का जो दावा किया है, उसके हिसाब से सीटों की संख्या 210 हो गई. यानि सियासी दलों के दावों में आंकड़े उलझ गए. समझिए यह पूरा मामला.
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आकाश द्विवेदी/भोपाल। मध्य प्रदेश में जनपद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव में जीत की सियासी होड़ कुछ ऐसी लगी की चुनावी आंकड़े ही उलझ गए. क्योंकि सियासी दलों के दावे तो इसी तरफ इशारा कर रहे हैं. दरअसल, मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव के नतीजों के बाद बुधवार को प्रदेश की 170 जनपदों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव हुआ. लेकिन सियासी दलों ने कुल 210 सीट पर जीत का दावा किया है. बीजेपी का दावा है कि उसने 121 सीटें जीती हैं, जबकि कांग्रेस ने 89 सीटों पर जीत का दावा किया है.
बीजेपी और कांग्रेस की सीटों को मिला दिया जाए तो यह संख्या 210 हो गई, जबकि चुनाव 170 पर ही हुआ है. ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि जीत की होड़ में दोनों राजनीतिक दलों के सियासी आंकड़े जरूर उलझ गए हैं.
बड़े -बड़े नेताओं ने भी दी बधाई
खास बात यह है कि नेता दावा करते वक्त यह भूल गए कि जितनी सीटों पर चुनाव नहीं हुआ है, उससे ज्यादा उनके आंकड़े हो है. बीजेपी की तरफ से खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने 121 सीटों पर जीत को लेकर बधाई दी. तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने भी 89 सीटों पर जीत का दावा किया. यही दावा किया. लेकिन दोनों के दावे वास्तविक सीटों से 25 प्रतिशत ज्यादा था. हालांकि दोनों पार्टियों के नेता इस पर एक दूसरे पर निशाना साधते भी नजर आए.
कांग्रेस के प्रवक्ता अवनीश बुंदेला ने कहा कि ''बीजेपी का जनाधार खिसक गया है कई जगहों पर जो कांग्रेस के प्रत्याशी हैं, उन्हें बीजेपी अपना बता रही है, जबकि वह जय जय कमलनाथ का नारा लगा रहे हैं. कांग्रेस के जनपद अध्यक्ष बीजेपी से ज्यादा बने हैं. यानि उन्होंने कांग्रेस की जीत का दावा किया.'''
वहीं कांग्रेस से इतर शिवराज सरकार के मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि ''हमेशा की तरह कांग्रेस झूठे दावे कर रही है, हम 121 जनपद पंचायतों में है जीते हैं, जबकि आज होने वाले चुनाव में उससे ज्यादा सीटें जीतेंगे. कांग्रेस हमेशा झूठ बोलती है.''
जानिए क्यों बनी यह स्थिति
आप सो रहे होंगे की यह स्थिति क्यों बनी तो इसकी वजह पंचायत चुनाव का राजनीतिक दलों के सिंबल पर नहीं होना है. जब मतदान हुआ था तब जीते हुए प्रत्याशी पर किसी भी दल की छाप नहीं थी. लेकिन जैसे ही जनपद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव की बारी आई तो राजनीतिक दलों ने इन्ही प्रत्याशियों को अपना-अपना बताना शुरू कर दिया. अब जीते हुए अध्यक्ष और उपाध्यक्षों पर बीजेपी और कांग्रेस के नेता अपना-अपना दावा कर रहे हैं.
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