Expert Comment: पेसा कानून के लॉलीपॉप से आदिवासी BJP को देंगे वोट? जानिए एक्सपर्ट विद्या शर्मा की राय
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Expert Comment: पेसा कानून के लॉलीपॉप से आदिवासी BJP को देंगे वोट? जानिए एक्सपर्ट विद्या शर्मा की राय

MP Election: विधानसभा चुनाव में आदिवासियों का वोट पाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पेसा अधिनियम को लागू किया. चलिए एक्सपर्ट से जानते है कि क्या भाजपा के लिए ये फायदेमंद होगा.

Impact of PESA law in MP Elections

Impact of PESA law in MP Elections: साल के अंत में होने वाले मध्य प्रदेश (MP News) विधानसभा चुनाव (MP Election) में आदिवासी वोटों को साधने के लिए बीजेपी सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए प्रदेश में पेसा एक्ट लागू किया तो चलिए समझते हैं कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह कितना फायदेमंद होगा, राजनीतिक विश्लेषक और एक्सपर्ट विद्या शर्मा की कलम से... 

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मध्यप्रदेश में पेसा कानून लागू हुये अभी बमुश्किल एक माह ही हुआ है, लेकिन जनजातीय समाज बाहुल्य ग्रामसभाओं में इसके क्रियान्वयन को लेकर भारी उत्साह देखने को मिला. यह उत्साह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा कुछ ग्राम सभाओं के संबोधन के बाद आया. ये ग्राम सभाएं एक प्रकार से प्रशिक्षण कार्यशाला जैसी थीं. जिनमें मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने अपने उद्बोधन में समाज को इस पेसा कानून की बारीकियों से अवगत कराया और लोगों से आव्हान किया वे आपस में भी एक दूसरे को भी इस कानून से होने वाले लाभ की जानकारी साझा करें.

क्या पेसा कानून पूरी तैयारी के साथ लागू किया गया है?
बता दें कि मध्यप्रदेश में यह पेसा कानून पूरी तैयारी के साथ लागू किया गया है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर इस कानून लागू करने की घोषणा से पहले राज्य शासन के सभी विभागों ने पर्याप्त होम वर्क किया था. यह होमवर्क कानून के क्रियान्वयन प्रक्रिया से लेकर समन्वयकों के प्रशिक्षण तक किया गया था. इसीलिए इस कानून को लागू करने में इतनी गति आ सकी. समय और साधन की बचत के लिये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्रेनर्स को अपने निवास से वीडियो कॉन्फ्रेन्सिगं के माध्यम से संबोधित किया. इसमें 20 जिलों और 89 विकास खंडो के अधिकारी वर्चुअली सम्मिलित हुए.

जनजातीय समाज में आधुनिक शिक्षा का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम 
सीएम शिवराज ने इस बैठक में बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि यह केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रान्ति है. इसके माध्यम से जनजातीय भाई-बहनों को उनके अधिकार देने का प्रयास है. मुख्यमंत्री जी की अपील का ट्रेनर्स की टीम पर पर्याप्त असर हुआ. ट्रेनर्स टीम ने इस अधिनियम को समझाने के लिए सीधी और सरल भाषा का उपयोग किया. प्रत्येक कानून भी भाषा जन सामान्य की भाषा से थोड़ा अलग होती है. इसलिये अक्सर समाज का वह समूह कानून के प्रावधानों का पूरा लाभ नहीं ले पाता. जिस वर्ग के हितों के लिये कानून बनाए जाते हैं. यह समस्या इस कानून के साथ कुछ अधिक थी, चूंकि जनजातीय समाज में आधुनिक शिक्षा का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम होता है. इसलिए ट्रेनर्स ने सभा में सामान्य और सरल भाषा का उपयोग करना आरंभ किया और यही बात इस कानून के क्रियान्वयन में गति तेज होने का आधार बनीं और इसमें जनजातीय समाज को मिले अधिकार जन सामान्य की चर्चा में भी आ गए.

इस अधिनियम का व्यापक प्रचार आवश्यक था 
इस अधिनियम का व्यापक प्रचार इसलिए आवश्यक था कि इस कानून के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत को व्यापक अधिकार दिए गए हैं.  यदि संबंधित लोगों को जानकारी नहीं होगी तो वे इसका लाभ कैसे ले पायेंगे. इस अधिनियम का उद्देश्य देश में अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए पारंपरिक ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करना है. अनुसूचित क्षेत्र ऐसे स्थान हैं. जहां मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों का वर्चस्व है. जिन अनुसूचित जनजातीय क्षेत्र में यह कानून लागू हुआ है उन क्षेत्रों में 73वें संविधान संशोधन या पंचायती राज अधिनियम लागू नहीं होगा.

कानून से होगा ये बदलाव 
बता दें कि यह कानून पंचायतों और ग्राम सभाओं को इन क्षेत्रों में स्वशासन की प्रणाली को लागू करने में सक्षम बनाता है. यह अधिनियम अनुसूचित क्षेत्र में एक गांव के लिए ग्राम सभा की स्थापना की अनुमति देता है और ग्राम पंचायतों को उन मामलों पर निर्णय लेने की भी अनुमति देता है जो सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन के साथ-साथ लघु वन उपज, भूमि और छोटे जल निकायों से संबंधित हैं. वे अनुसूचित क्षेत्रों में बंधुआ मजदूरी की प्रथा के उन्मूलन के लिए प्रवासी मजदूरों का रिकॉर्ड भी रखेंगे. यही नहीं पटवारी और बीट गार्ड गांव की जमीन और वन क्षेत्र के नक्शे, खसरे आदि ग्रामसभा को हर साल उपलब्ध कराएंगे. इससे गांव का रिकार्ड लेने बार-बार तहसीलों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. राजस्व अभिलेखों में गड़बड़ी पर ग्रामसभा को उसमें सुधार की अनुशंसा करने का अधिकार होगा. अधिसूचित क्षेत्रों में बिना ग्रामसभा की सहमति के किसी भी परियोजना के लिए गांव की जमीन का भू-अर्जन नहीं किया जा सकेगा. अक्सर शिकायतें आतीं हैं कि गैर जनजातीय अथवा बाहरी व्यक्ति छल-कपट से, बहला-फुसलाकर, विवाह करके जनजातीय भाई-बहनों की जमीन पर गलत तरीके से कब्जा करने या खरीदने की कोशिश होती है. अब इस कानून के लागू होने के बाद ग्राम सभा इसमें हस्तक्षेप कर सकेगी और जनजातीय बंधुओं को उनका कब्जा वापस दिलाएगी.

समितियां गठित होंगी
इस कानून के लागू होने के बाद गांवों में शांति एवं विवाद निवारण समितियां गठित होंगी जो गांव में होने वाले छोटे-मोटे विवादों को परस्पर बैठकर सुलझा सकेंगे. गांव में शराब की नई दुकान खुले या नहीं यह निर्णय भी ग्रामसभा ले सकेंगी. अधिनियम की इन बारीकियों की जानकारी जन सामान्य को रहे इसलिये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्रेनर्स से चर्चा के बाद जनजातीय समाज के बीच जाकर एक्ट के प्रावधान समझाना आरंभ किया. उन्होंने संबंधित क्षेत्र में जाकर सभाएं संबोधित कीं. ये सभाएं कानून के बारे में जनजातीय समाज को जागरुक करने के लिये आवश्यक थीं. उतना ही यह स्पष्ट करना आवश्यक था कि यह अधिनियम जनजातीय समाज के लिये हितकारी तो है, पर यह किसी और अधिकारों को सीमित करने वाला नहीं है. अधिनियम वस्तुतः जनजातीय समाज के स्वत्व को जाग्रत करने वाला है. उन्हें आत्मनिर्भर बनाने स्वाभिमान संपन्न जीवन का अवसर देने की दिशा में एक मील का पत्थर है. इनके साथ स्थानीय नदी तालाबों जल का प्रबंधन और लघुवनोपज प्रबंधन भी कर सकेंगी.

विभिन्न विभागों की सक्रियता
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर राज्य सरकार के विभिन्न विभागों की सक्रियता और ट्रेनर्स के प्रशिक्षण से सभी संबंधित क्षेत्रों में उत्साह आया और अधिनियम के अंतर्गत मिलने वाले स्वायत्ता के अधिकार प्राप्त करने की दिशा तेजी से काम होने लगा है. यह जनजातीय समाज में आई जागरुकता का ही परिणाम है कि इस अधिनियम को लागू करने के लिए सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रति जनजातीय लोकभाषा में ही आभार प्रकट किया जा रहा है. बावजूद इसके सरकार का अभी केवल प्रचार और प्रशिक्षण तक सीमित नहीं है. प्रचार और प्रशिक्षण के बाद सरकार अब इस पेसा एक्ट के प्रावधानों को जमीन पर उतारने के अभियान में लग गई है. उम्मीद की जा रही है कि आगामी दो माह में इसके क्रियान्वयन का काम भी पूरा कर लिया जायेगा.

(विद्या शर्मा राजनीतिक विश्लेषक और विशेषज्ञ हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)

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