कूनो लाए गए चीतों के लिए 6 महीने से हो रही थी यह खास तैयारी, राजगढ़ में बना था सेटअप
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कूनो लाए गए चीतों के लिए 6 महीने से हो रही थी यह खास तैयारी, राजगढ़ में बना था सेटअप

कूनो नेशनल पार्क में सभी आठ चीतों को लाने के लिए विशेष तैयारियां की गई थी, जबकि मध्य प्रदेश के चिड़ीखो अभ्यारण में भी इन चीतों के लिए एक खास तैयारी पिछले 6 महीने से की जा रही थी. बता दें कि फिलहाल चीतों को एक महीने के लिए कूनो नेशनल पार्क के बाड़े में क्वारंटीन किया गया है. यह सभी चीते एक महीने बाद ही जंगल में छोड़े जा सकते हैं. 

कूनो लाए गए चीतों के लिए 6 महीने से हो रही थी यह खास तैयारी, राजगढ़ में बना था सेटअप

अनिल नागर/राजगढ़। मध्य प्रदेश के कूनो में आठ चीतों को बसा दिया गया है. सभी आठ चीते फिलहाल कूनो नेशनल पार्क के बाड़े में एक महीने तक के लिए क्वारंटीन है, लेकिन इन चीतों को बसाने के लिए लंबे समय से तैयारियां की जा रही थी. चीतों को तो श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में बसाया गया है, लेकिन राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ में आने वाले चिड़ी खो अभ्यारण में चीतों के लिए पिछले 6 महीने से विशेष इंतजाम किया जा रहा था. 

चिड़ी खो में किया गया चीतों के खाने का इंतजाम 
दरअसल, चीतों के शिकार के लिए नरसिंहगढ़ के चिड़ी खो में पिछले 6 महीनो से चीतलों को जोड़ा जा रहा था. क्योंकि कूनो नेशनल पार्क में राजगढ़ के चिड़ीखो के वन्य अभ्यारण से 181 चीतल कूनो नेशनल पार्क भेजे गए है, जिन्हें 6 महीने में पकड़ा गया था. इन सभी चीतलों को अफ्रीकन पद्धति बोमा कैप्चरिंग के जरिए पकड़ा गया था. 

बोमा प्लान किया गया था तैयार 
कूनो नेशनल पार्क में चीतल को भेजने के लिए वन विभाग की टीम ने बोमा प्लान तैयार किया था. जिसकी तैयारियां पिछले 6 महीने से चल रही थी. जहां सबसे पहले चिड़ीखो वन्य अभ्यारण में एक बोमा सेटअप तैयार किया गया था, दरअसल, बोमो सेटअप नेचुरल प्रकृति की तरह दिखता है, जिसमें जानवर को प्रकृति से विपरीत नहीं दिखता है, उसे लगता है कि वह जिस तरफ जा रहा है वहां जंगल ही है. जिसमें बोमा पद्धति कहा जाता है. बोमा एक अफ्रीकन पद्धति है. चिड़ीखो में 6 महीने पहले बोमा सेटअप लगा दिया गया था. जिसमें 181 चीतल पकड़ी गईं और इन्हें चीतो के खाने के लिए कूनो नेशनल पार्क भेजा गया है. 

बता दें कि बोमा कैप्चरिंग तकनीक अफ्रीका में काफी लोकप्रिय है. इसमें फनल एक पशु चयन सह लोडिंग संरचना का रूप ले लेता है और इसे जानवरों के लिये अपारदर्शी बनाने के लिये घास की चटाई और हरे रंग के जाल से ढका जाता है. इसमें जानवरों को दूसरे स्थान पर उनके परिवहन के लिये एक बड़े वाहन में रखा जाता है, इसमें फनल जैसी बाड़ के माध्यम से जानवरों का पीछा करके उन्हें एक बाड़े में में पहुंचाया जाता है. बता दें कि इस तकनीक का इस्तेमाल पहले हाथियों को पकड़ने में किया जाता था. 

इस स्थानांतरण अभ्यास को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा अनुमोदित किया गया है, बताया जा रहा है कि इस पद्धति का आगे भी इस्तेमाल किया जाएगा, क्योंकि शाकाहारी जीवों के स्थानांतरण से बाघ अभयारण्यों के आसपास ग्रामीण मवेशियों, भेड़ों और बकरियों का शिकार कम होगा. फिलहाल अफ्रीकन देश नामीबिया से लाए गए ये सभी चीते कूनो नेशनल पार्क में विचरण कर रहे हैं. अभी इन चीतों को जंगल में नहीं छोड़ा गया है. एक महीने की अवधि पूरे होने के बाद ही इन्हें जंगल में छोड़ा जाएगा.

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