Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: अटल बिहारी वाजपेयी का ग्वालियर से खास नाता था. यह शहर उनके लिए न केवल सामाजिक जीवन में खास रहा बल्कि राजनीतिक जीवन में भी खास रहा. एक बार के चुनाव में ग्वालियर से मिली हार के बाद भी अटलजी हंसने लगे थे. उनसे जुड़े किस्सों में यह किस्सा बहुत खास माना जाता है.
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ग्वालियर। Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: पूरा देश भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर रहा है. अटलजी की शख्सियत ही ऐसी थी कि अपने तो अपने विरोधी भी उनसे प्यार करते हैं. यही वजह है कि उन्हें राजनीति में अजातशत्रु कहा जाता था, हो भी क्यों न क्योंकि अटलजी ऐसे नेता थो जिन्हें अपनी हार की भी दुख नहीं था, बल्कि वह अपनी हार पर भी हंसे लगे थे. जानिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़ा यह अनोखा किस्सा.
माधवराव सिंधिया से हारने के बाद हंसे थे अटलजी
दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी देश में संस्कारित राजनीति के सबसे बड़े प्रतीक भी माने जाते हैं. यह मामला 1984 का है. जनसंघ और बीजेपी की संस्थापक ग्वालियर के सिंधिया घराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया और अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के समय से साथ रहे है. विजयाराजे सिंधिया अटलजी को अपना धर्मपुत्र मानती थी. 1984 के लोकसभा चुनाव में ग्वालियर लोकसभा सीट से बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी मैदान में उतारा था. लेकिन उस वक्त विजयाराजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया कांग्रेस में थे, ऐसे में कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को ग्वालियर से चुनाव मैदान में उतार दिया. जिससे यह चुनाव दिलचस्प हो गया.
मां बेटे की बगावत को सड़क पर नहीं आने दिया
उस चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा था. अटल बिहारी वाजपेयी माधव राव सिंधिया ने चुनाव में हराया था. लेकिन अपनी हार पर अटल बिहारी वाजपेयी जमकर हंसे और खुश हुए थे. जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि ''मेरी हार का मुझे गम नहीं, लेकिन मां बेटे की बगावत को मैंने सड़क पर आने से रोक दिया. उन्होंने कहा था कि अगर मैं ग्वालियर से चुनाव नहीं लड़ता तो राजमाता, माधवराव सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़तीं, जो मैं नहीं चाहता था.'' 1984 के लोकसभा चुनाव में अपनी हार के बाद जब अटलजी 2005 में ग्वालियर आए तो उन्होंने साहित्य सभा में कहा था कि ग्वालियर में मेरी एक हार पर इतिहास छिपा हुआ है. जो मेरे साथ ही चला जाएगा.''
अटल जी ने इस बात का एक बार जिक्र भी किया था. उन्होंने बताया था कि संसद के गलियारे में उन्होंने माधवराव सिंधिया से पूछा था कि वे ग्वालियर से तो चुनाव नहीं लड़ेंगे. सिंधिया ने उस समय मना कर दिया था, लेकिन कांग्रेस की रणनीति के तहत अचानक उनका पर्चा दाखिल करा दिया गया. इसके बाद वाजपेयी 1991 के आम चुनाव में लखनऊ और मध्य प्रदेश की विदिशा सीट से चुनाव लड़े और दोनों ही जगह से जीते. बाद में उन्होंने विदिशा सीट छोड़ दी, जहां से आज के सीएम शिवराज सिंह चौहान चुनाव लड़े थे.
राजामाता ने अटलजी के पक्ष में किया था प्रचार
खास बात यह है कि उस दौर में राजनीति सिद्धांतों की होती थी. एक तरफ राजमाता विजयाराजे सिंधिया के बेटे चुनाव लड़ रहे थे, तो दूसरी तरफ अटलजी थे. लेकिन विजयाराजे सिंधिया ने वाजपेयी को धर्मपुत्र मानकर उनका प्रचार किया था. भले ही अटलजी हार गए थे, लेकिन तब देशभर में उनकी हार की चर्चा हुई थी.