कौन हैं नरेंद्र पटेल, जो बने खंडवा लोकसभा से कांग्रेस की पहली पसंद, जिसने कटवाया अरुण यादव का टिकट
Advertisement
trendingNow1/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh2191677

कौन हैं नरेंद्र पटेल, जो बने खंडवा लोकसभा से कांग्रेस की पहली पसंद, जिसने कटवाया अरुण यादव का टिकट

Khandwa Narendra Patel:  लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने मध्यप्रदेश की बाकी बची 3 सीटों पर भी प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है. वहीं खंडवा से नरेंद्र पटेल को टिकट दिया है. कांग्रेस ने अरुण यादव का टिकट काट दिया है.

कौन हैं नरेंद्र पटेल, जो बने खंडवा लोकसभा से कांग्रेस की पहली पसंद, जिसने कटवाया अरुण यादव का टिकट

Khandwa Narendra Patel: मध्य प्रदेश के लिए कांग्रेस ने अपनी आखिरी लिस्ट जारी कर दी है. पार्टी ने ग्वालियर, खंडवा और मुरैना से प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. कांग्रेस ने चौंकाते हुए खंडवा लोकसभा सीट से अरुण यादव का टिकट काटकर नरेंद्र पटेल ( Narendra Patel) पर इस बार विश्वास जताया है. बता दें कि नरेंद्र पटेल ने 2023 विधानसभा के चुनाव में भी किस्मत आजमाई थी लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. बड़वाह सीट से BJP उम्मीदवार सचिन बिड़ला ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने नरेंद्र को 5499 वोटों से हराया था. अब नरेंद्र पटेल का मुकाबला बीजेपी के ज्ञानेश्वर पाटिल से होगा.

बता दें कि 63 साल के नरेंद्र पटेल ने 12वीं तक ही शिक्षा प्राप्त की है, लेकिन उनका राजनीतिक करियर काफी अनुभव वाला और लंबा रहा है.

कौन हैं नरेंद्र पटेल?
वैसे तो नरेंद्र पटेल को राजनीति विरासत में मिली हैं, लेकिन वे युवा दौर से ही कांग्रेस के लिए सक्रिय राजनीति करते आ रहे हैं. वे जिला युवक कांग्रेस में महामंत्री रहे, जिला कांग्रेस के महामंत्री का पद भी (2006-2012) उन्होंने हासिल किया, इसके अलावा वे 9 साल (2013-2021) तक सनावद ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे. बता दें कि उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि शुरू से कांग्रेस संगठन में काफी मजबूत रही है.

खंडवा लोकसभा सीट पर रहता है महाराष्ट्र की राजनीति का असर, BJP ने 1996 में पहली बार खिलाया था कमल

गुर्जर समुदाय के वोटों पर दबदबा
कांग्रेस प्रत्याशी नरेंद्र पटेल के पिता स्व. प्यारेलाल पटेल नगर पालिका सनावद में पार्षद व भोगंवा निपानी के सदस्य व सरपंच रहे हैं. इसके अलावा उनके चाचा स्व. ताराचंद पटेल बड़वाह विधानसभा से विधायक (1993-1998) और खरगोन लोकसभा सीट से 1999-2004 तक सांसद भी रहे हैं. ये ही एक बड़ा कारण है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से उनका परिचय शुरू से अच्छा रहा है. 

बता दें कि कांग्रेस ने उन्हें 2023 विधानसभा चुनाव में खरगोन जिले की बड़वाह विधानसभा सीट से टिकट दिया था. तब अरुण यादव, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की पंसद होने की वजह से उन्हें इस सीट से टिकट मिला था. हालांकि वो यहां जीत हासिल नहीं कर पाए थे. इसके अलावा उनका गुर्जर समुदाय के वोटों में भी काफी दबदबा माना जाता है. वे खुद भी गुर्जर समुदाय से आते हैं. 

गुर्जर समाज के पहले नेता
जानकारी के लिए आपको बता दें कि नरेंद्र पटेल गुर्जर समाज के पहले नेता हैं, जो खंडवा लोकसभा सीट से प्रत्याशी है. वहीं ज्ञानेश्वर पाटिल मराठा समाज से आते हैं. वो दूसरी बार खंडवा सीट से बीजेपी के प्रत्याशी है. आपको जानकर हैरानी होगी कि बीजेपी ने कभी लोकसभा में गुर्जर समाज से प्रत्याशी नहीं उतारा है. 

पॉइंट में जानिए नरेंद्र पटेल के बारे में
- नरेंद्र पटेल पूर्व पीसीसी अध्यक्ष अरुण यादव के समर्थक माने जाते हैं.
- नरेंद्र पटेल गुर्जर समुदाय से आते हैं, खंडवा लोकसभा क्षेत्र में गुर्जर समुदाय का अच्छा वोट बैंक है.
- नरेंद्र पटेल वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महामंत्री हैं।
- नरेंद्र पटेल खरगोन जिले के विभिन्न चुनाव में और अरुण यादव के चुनाव का संचालन भी कर चुके हैं.
- अरुण यादव के करीबी होने का उन्हें फायदा मिला है.
- खंडवा जिले की पुनासा, खंडवा और बड़वाह विधानसभा में गुर्जर मतदाताओं की संख्या बहुतयात में है.

 

क्यों कांग्रेस ने नरेंद्र पटेल को चुना?
जीतू पटवारी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस नए चेहरों पर दांव लगा रही है. ऐसे में खंडवा लोकसभा सीट से पार्टी नेतृत्व को भी जातीय और क्षेत्रीय समीकरण हिसाब से गुटबाजी मुक्त चेहरे की तलाश थी. इसलिए इस बार पार्टी ने नरेंद्र पटेल पर दांव खेला है. नरेंद्र पटेल कमलनाथ और अरुण यादव के करीबी माने जाते है.

खंडवा लोकसभा सीट जातिगत समीकरण
खंडवा लोकसभा के जातीय समीकरण की अगर बात की जाए तो यहां अनुसूचित जाति और जनजाति का खासा दबदबा है. 2019 लोकसभा के मुताबिक यहां एससी-एसटी वर्ग के 7 लाख 68 हजार 320 मतदाता हैं. 4 लाख 76 हजार 280 ओबीसी के, अल्पसंख्यक 2 लाख 86 हजार 160 और सामान्य वर्ग के 3 लाख 62 हजार 600 मतदाता हैं. इसके अलावा अन्य की संख्या 1500 है. इस सीट पर आदिवासी और अल्पसंख्यक वोट बैंक को निर्णायक माना जा रहा है.

Trending news