छत्तीसगढ़ की ये लोकसभा सीटें हैं खास, जहां हिंदी पट्टी में तेलगू-उड़िया समेत इन भाषाओं में होता है प्रचार
Advertisement
trendingNow1/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh2199279

छत्तीसगढ़ की ये लोकसभा सीटें हैं खास, जहां हिंदी पट्टी में तेलगू-उड़िया समेत इन भाषाओं में होता है प्रचार

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ यूं तो हिंदी भाषी प्रदेश माना जाता है, लेकिन प्रदेश की कुछ लोकसभा सीटों पर हिंदी के अलावा तेलगू, उड़िया, गोंडी जैसी भाषाओं में भी प्रचार किया जाता है. 

छत्तीसगढ़ की इन सीटों पर स्थानीय भाषा में होता है प्रचार

Lok Sabha Election 2024: उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक लोकसभा चुनाव का प्रचार अब देशभर में चरम पर है. क्योंकि जैसे-जैसे वोटिंग नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे प्रत्याशियों ने प्रचार प्रसार तेज कर दिया है. खास बात यह है कि भारत भाषाई विविधता के लिए भी दुनियाभर में जाना जाता है, जिसका असर चुनाव के दौरान भी दिखता है. जहां प्रत्याशी अपनी-अपनी स्थानीय भाषा में भी प्रचार करते हुए नजर आते हैं. छत्तीसगढ़ में यूं तो हिंदी भाषा सबसे ज्यादा बोली जाती है, ऐसे में यहां प्रचार भी हिंदी में ही होता है, लेकिन राज्य की कुछ लोकसभा सीटें ऐसी भी हैं, जहां हिंदी के अलावा तेलगू, उड़िया, मराठी, हल्बी, गोंडी जैसी भाषाओं में भी प्रचार होता है. जिसकी वजह भी खास है. 

स्थानीय भाषा में होता है प्रचार 

दरअसल, छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा सात अलग-अलग प्रदेशों से लगती है, ऐसे में इन प्रदेशों में बोली जाने वाली भाषाओं का भी इन राज्यों में असर दिखता है. प्रदेश की 11 में से 7 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर हिंदी के साथ-साथ अलग-अलग भाषाओं में भी प्रचार किया जाता है. माना जाता है कि यहां के जनप्रतिनिधियों को भी स्थानीय भाषा की जानकारी होना जरूरी रहता है, क्योंकि बड़ी संख्या में वोटर्स स्थानीय भाषा वाले होते हैं, ऐसे में बैनर, पोस्टर, पंपलेट भी हिंदी के साथ-साथ स्थानीय भाषा में ही छपवाए जाते हैं. 

इन सीटों पर स्थानीय भाषा में होता है प्रचार 

बता दें कि छत्तीसगढ़ की सात लोकसभा सीटें कांकेर, रायगढ़ , कोरबा , बस्तर , सरगुजा , महासमुंद  और राजनांदगांव लोकसभा सीट की सीमाएं दूसरे राज्यों से लगती हैं, ऐसे में बॉर्डर एरिया में यहां पर स्थानीय भाषा की समझ रखने वाले लोगों की संख्या लाखों में होती है, जैसे बस्तर लोकसभा सीट पर बड़ी संख्या में तेलगू भाषा बोली जाती है. इसी तरह कोरबा और रायगढ़ क्षेत्र में आदिवासी वर्ग की बड़ी आबादी पाई जाती है, जहां गोंडी भाषा सबसे ज्यादा बोली जाती है.  

ये भी पढ़ेंः Chhattisgarh News: बसने से पहले ही उजड़ गया 'छत्तीसगढ़ विलेन' का घर, सगाई वाले दिन हादसे ने छीन ली जिंदगी

आंध्र-तेलंगाना और महाराष्ट्र से लगा है बस्तर 

छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग तीन राज्यों के साथ सीमा शेयर करता है, यह इलाका आंध्र प्रदेश, तेलंगाना के साथ महाराष्ट्र से भी बॉर्डर शेयर करता है, ऐसे में बस्तर संभाग में तेलूग का प्रभाव सबसे ज्यादा माना जाता है, जबकि गोंडी और हल्बी बोली का चलन भी इस क्षेत्र में रहता है, ऐसे में चुनाव के दौरान जब प्रत्याशी यहां प्रचार करते हैं तो वह स्थानीय लोगों से स्थानीय भाषा में ही बातचीत करते हुए नजर आते हैं. 

कांकेर-महासमुंद-रायगढ़ में उड़िया का प्रभाव 

कांकेर और महासमुंद लोकसभा सीट की सीमा महाराष्ट्र और ओडिशा से लगती है. ऐसे में कांकेर की कई विधानसभा सीटों पर उड़िया और गोंडी बोली बोली जाती है, कांकेर और महासमुंद महाराष्ट्र से भी बॉर्डर शेयर करता है, ऐसे में कुछ क्षेत्र में उड़िया के साथ-साथ मराठी का भी प्रयोग होता है. यहां के कई गांवों में उड़िया ही बोली जाती है, ऐसे में जनप्रतिनिधि भी इन भाषाओं को समझते हैं. रायगढ़ लोकसभा सीट पर भी आदिवासी बहुतायत में रहते हैं और यहां की सीमा भी ओडिशा से लगती है, जिससे यहां भी उड़िया का प्रभाव है. 

सरगुजा और कोरबा में झारखंडी और भोजपुरी का असर 

सरगुजा लोकसभा सीट झारखंड और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगी है. ऐसे में इन सीटों के अंतिम छोर पर बसे गांवों में भोजपुरी और झारखंडी भाषा की झलक दिखती है, यहां के लोग दोनों भाषाओं के जानकार होते हैं. इसी तरह कोरबा में भी झारखंडी और भोजपुरी बोली जाती है. इन दोनों सीटों की सीमा मध्य प्रदेश से भी लगती है, जिससे हिंदी भाषा भी यहां चलती है. ऐसे में यहां भी नेता तीन-तीन भाषाओं में प्रचार करते हुए नजर आते हैं. 

राजनांदगांव में मराठी का प्रभाव

राजनांदगांव लोकसभा सीट की बॉर्डर महाराष्ट्र से लगती है, ऐसे में महाराष्ट्र से सटे गांवों में यहां मराठी का सीधा असर दिखता है. कई गांवों में मराठी ही बोली जाती है. जबकि गोंडी और हल्बी का भी यहां प्रयोग होता है. इसलिए राजनांदगांव लोकसभा सीट पर भी हिंदी के साथ-साथ मराठी भाषा में प्रचार किया जाता है. खास बात यह है कि छत्तीसगढ़ के इन लोकसभा क्षेत्रों में निर्वाचन आयोग भी मतदाताओं के बीच मतदान को लेकर जागरुकता लाने के लिए स्थानीय भाषा में ही कार्यक्रम चलाता है. 

ये भी पढ़ेंः चुहिया को बचाने के लिए युवक ने खोल दी अपनी बाइक, कभी नहीं देखा होगा ऐसा रेस्क्यू ऑपरेशन

Trending news