Holi Special: इस गांव में होली खेलने से नाराज हो जाते हैं देवी-देवता, 150 सालों से नहीं हुआ होलिका दहन
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Holi Special: इस गांव में होली खेलने से नाराज हो जाते हैं देवी-देवता, 150 सालों से नहीं हुआ होलिका दहन

holi unique tradition: चारों तरफ होली को लेकर जश्न का माहौल चल रहा है. हर कोई होली के महापर्व की तैयारी कर रहा है. ऐसे में आज हम आपको छत्तीसगढ़ के दो ऐसे गांवों के बारे में बता रहे हैं, जहां होली नहीं खेली जाती है. गांव वालों का मानना है कि होली खेलने से देवी-देवता नाराज हो जाते हैं.

Holi Special: इस गांव में होली खेलने से नाराज हो जाते हैं देवी-देवता, 150 सालों से नहीं हुआ होलिका दहन

नीलम पड़वार/कोरबा: आप सभी होली (holi) का इंतजार कर रहे होंगे और व्हाट्सप्प, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पर होली के अपने पुराने रंग-बिरंगे चेहरे को पोस्ट कर रहे होगें या अपने दोस्तों को होली की अग्रिम बधाई (holi wishes) दे रहे होंगे. लेकिन क्या आप जानते है छत्तीसगढ़ (chhattisgarh) के कोरबा (korba) जिले में 2 ऐसे गांव है, जहां पिछले 150-160 साल से लोगों ने रंग-गुलाल नहीं उड़ाए. गांव वाले होली ना मनाने की वजह देवी माता के प्रकोप को बताते है. 

वैसे तो हर त्यौहार का अपना एक रंग होता है, जिसे आनंद या उल्लास कहते हैं. लेकिन हरे, पीले, लाल, गुलाबी आदि असल रंगों का भी एक त्यौहार पूरी दुनिया में हिंदू धर्म के मानने वाले मनाते हैं. यह है होली का त्यौहार इसमें रंगों के माध्यम से संस्कृति के रंग में रंगकर सारी भिन्नताएं मिट जाती हैं और सब बस एक रंग के हो जाते हैं. 8 मार्च को रंगों का यह पवित्र त्यौहार है. जिसके रंग में रंगने पूरा देश इंतज़ार में है. वहीं कोरबा जिले के दो ऐसे गांव है जो होली का त्यौहार सालों से बेरंग मनाते है, इन गांवों में होली के दिन पकवान तो बनते है पर गांवो में होलिका दहन नही होता और ना ही रंग-गुलाल उड़ाए जाते है.

इन गांवो में नहीं मनाई जाती है होली
जिले का पहला गांव है खरहरी जो कोरबा जिले से 35 किलोमीटर की दूरी पर मां मड़वारानी के प्राकट्य पहाड़ों के नीचे बसा है. इस गांव में पिछले 150 सालों से होली का त्योहार नहीं मनाया गया है. गांव के बुजुर्गों का मानना है कि उनके जन्म के काफी समय पहले से ही इस गांव में होली ना मनाने का रिवाज है, इस गांव में करीब 650 से 700 लोग रहते हैं. गांव के बुजुर्गों के अनुसार यहां सालों पहले भीषण आग लगी थी, गांव के हालात बेकाबू हो गए थे और गांव भर में महामारी फैल गई थी. इस दौरान गांव के लोगों का भारी नुकसान हुआ था और हर तरफ अशांति फैल गई थी. ऐसे में एक रोज गांव के एक बैगा (हकीम) के सपने में देवी मां मडवारानी आईं और उन्होंने बैगा को इस त्रासदी से बचने का उपाय बताया. उन्होंने कहा कि गांव में होली का त्योहार कभी ना मनाया जाए तो यहां शांति वापस आ सकती है. तभी से इस गांव में कभी भी होली का त्योहार नहीं मनाया गया. ग्रामीणों ने बताया कि ना यहां होलिका दहन होता है और ना ही रंग उड़ाए जाते हैं केवल होली के नाम से पकवान बनते है.

होली खेलने से नाराज हो जाते हैं देवी देवता 
जिले का दूसरा गांव है धमनागुड़ी जो कोरबा से करीब 30 किलोमीटर दूर और मड़वारानी से महज 5 किमी दूर है. इस गांव में भी पिछले 150 सालों से कभी होलिका दहन नहीं हुआ और न ही होली खेली गई. इस गांव में किवदंती है कि होली खेलने से गांव के देवी-देवता नाराज हो जाते हैं. ग्रामीणों की मानें तो सालों पहले जब गांव में पुरूष वर्ग होली मना रहे थे और नशे में गाली-गलौच कर रहे थे. तब डंगनहीन माता (बाँस की देवी) गांव की महिलाओं के शरीर मे प्रवेश कर गयी और डांग (बांस) से पुरुषों की पिटाई करने लगी. जब पुरुषों ने माफी मांगी तब माता ने उन्हें गांव में होली ना मनाने की शर्त पर माफ किया. उस समय से आज तक गांव में होलिका दहन नही होता और ना ही रंग-गुलाल खेले जाते हैं. भले ही अब कुछ लोगों को लगता है कि ये अंधविश्वास है और अब इस नियम को बंद कर गांव में होली खेलने की छूट दी जाए.

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