Kohinoor: कोहिनूर हीरे का छत्तीसगढ़ से है खास कनेक्शन, देखिए बस्तर से कैसे पहुंचा ब्रिटेन!
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Kohinoor: कोहिनूर हीरे का छत्तीसगढ़ से है खास कनेक्शन, देखिए बस्तर से कैसे पहुंचा ब्रिटेन!

क्‍वीन एलिजाबेथ के निधन के बाद से उनके राजमुकुट में लगा कोहिनूर हीरा फिर से चर्चा में है. इस नायाब हीरे का छत्तीसगढ़ के बस्तर से खास कनेक्शन है. कोहिनूर कभी वहां के राजपरिवार के पुर्वजों की जागीर रहा है. पढ़िए कैसे बस्तर से अलाउद्दीन खिलजी और उसके बाद इंग्लैंड  पहुंच गया था कोहिनूर

Kohinoor: कोहिनूर हीरे का छत्तीसगढ़ से है खास कनेक्शन, देखिए बस्तर से कैसे पहुंचा ब्रिटेन!

अविनाश प्रसाद/बस्तर: ब्रिटेन की क्‍वीन एलिजाबेथ के निधन के बाद से उनके राजमुकुट में लगे कोहिनूर हीरे को वापस भारत लाने की मांग फिर से उठने लगी है. आंखे चौंधिया देने वाली अपनी चमक और अलौकिक बनावट के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध नायाब "कोहिनूर हीरा" अब ब्रिटेन राज परिवार के पास है.  ये नायाब रत्न कई मौतों की वजह भी रहा है.  ऐसे में आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इसका छत्तीसगढ़ के बस्तर से खास कनेक्शन रहा है. दावा किया जा रहा है कि 8 हज़ार किलोमीटर दूर ब्रिटेन के लंदन में मौजूद इस हीरे के असल मालिक बस्तर काकतीय राजपरिवार के पूर्वज रहे हैं . 

तेलंगाना के वारंगल से शुरू हुई थी कहानी
दरअसल मूल रूप से कोहिनूर हीरा तेलंगाना के गोलकुंडा में खुदाई के दौरान मिला था.  तेलंगाना का वारंगल राज्य चालुक्य काकतीय वंश के आधिपत्य का राज्य रहा है. यहां रुद्रदेव प्रथम (1158-1195 ई.), महादेव (1195-1198 ई.), गणपतिदेव (1199-1261 ई.), रुद्रमा देवी (1262-1289 ई.) और प्रतापरुद्रदेव या रुद्रदेव द्वितीय (1289-1323 ई.) ने राज किया. इसके बाद 1303 में मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी के खरीदे हुए गुलाम मलिक काफूर जिसे हजार दिनारी भी कहा जाता था, उसने वारंगल पहुंचकर रुद्रदेव द्वितीय को अपना राज्य खिलजी सल्तनत के अधीन करने की चेतावनी दी.  खिलजी की अपार सेना की शक्ति से वाकिफ रुद्रदेव ने खिलजी को लगान देना मंजूर किया. समर्पण के प्रतीक के रूप में जंजीर से बंधी स्वर्ण जड़ित प्रतिमा और कोहिनूर हीरा प्रताप देव ने मलिक काफूर को सौंप दी. तभी से कोहिनूर मुस्लिम शासकों के पास चला गया.

बाद में ये ब्रिटिश सत्ता को सौंप दिया गया और इसे ब्रिटेन के राजमुकुट में जड़ा गया. इसके बाद प्रताप रूद्र देव अपने भाई अन्नमदेव और बहन रैला देवी के साथ बस्तर कूच कर गए. बस्तर में आज भी काकतीय राजवंश का राजमहल मौजूद है. आज भी यहां उनके वंशज रहते हैं. बस्तर राजपरिवार के वर्तमान वंशज कमलचंद्र भंजदेव ने जी मीडिया को इसकी जानकारी दी कि एक समय कोहिनूर हीरा काकतीय राजवंश की संपत्ति था.  

कोहिनूर की विशेषता
ये नायाब हीरा सैकड़ों सालों से विश्व के सबसे खास हीरे का दर्जा प्राप्त किये हुए है. 105.6 कैरेट के इस हीरे का वजन 21.6 ग्राम है. इस समय इसकी कीमत लगभग 150 हजार करोड़ रुपए है. इसका मूल भारत है और यह तेलंगाना के गोलकुंडा इलाके में पाया गया था.  इसे प्राप्त करने के लिए किसी जमाने में रियासतों में होड़ लगा करती थी.

वर्तमान में फिर चर्चा में है मुकुट
ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की मौत हाल ही में 96 वर्ष की उम्र में हुई. उनके अंतिम संस्कार में कोहिनूर हीरा जड़ित मुकुट उनकी ताबूत के ऊपर रखा गया था. उनकी मृत्यु के पश्चात विश्व भर में ये चर्चा है कि कोहिनूर युक्त यह मुकुट अब किस के माथे सजेगा. मुकुट के विषय में चर्चा रही है कि यदि यह किसी महिला के सिर पर सुशोभित होता है तो वह विश्व शक्ति बन जाती है, लेकिन यदि इसे कोई पुरुष धारण करें तो वह नष्ट हो जाता है.

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