9 डिग्री की कड़कड़ाती ठंड में रात बिता रहा एक परिवार, पंचायत सचिव ने घर पर किया कब्जा!
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9 डिग्री की कड़कड़ाती ठंड में रात बिता रहा एक परिवार, पंचायत सचिव ने घर पर किया कब्जा!

जब कोई परिवार 9 डिग्री के कड़कड़ाती ठंड में पूरी रात अपने बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हो तो सवाल सीधे सरकार पर खड़े होते हैं. सवाल उस सिस्टम पर खड़े होते हैं, जिसे सरकारी सिस्टम कहा जाता है.

9 डिग्री की कड़कड़ाती ठंड में रात बिता रहा एक परिवार, पंचायत सचिव ने घर पर किया कब्जा!

संजीत यादव/जशपुर: जब कोई परिवार 9 डिग्री के कड़कड़ाती ठंड में पूरी रात अपने बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हो तो सवाल सीधे सरकार पर खड़े होते हैं. सवाल उस सिस्टम पर खड़े होते हैं, जिसे सरकारी सिस्टम कहा जाता है. जशपुर के बगीचा नगर पंचायत में प्रशासन की ऐसी अमानवीयता देखने को मिली, जहां पूरा परिवार इस कड़कड़ाती ठंड में पूरी रात न्याय के इंतजार में खुले आसमान के नीचे पड़ा रहा और किसी ने उनकी कोई सुध नहीं ली.

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दरअसल यह पूरा मामला जशपुर जिले के बगीचा नगर पंचायत के सुखबासुपारा का है. जहां सुखबासुपारा में रकबीर अपनी पत्नी व बेटी बच्चों के साथ लम्बे समय से निवास कर रहा था. घर बनाते वक्त उसके पैर की हड्डी टूट गई और अधूरा घर छोड़कर वह अपने इलाज के लिए दमगड़ा चला गया. इस बीच उस जमीन पर बने अधूरे घर को पूरा कर ग्राम पंचायत सचिव करमचंद व उसके परिवार ने कब्जा कर लिया. इस दौरान पूरा परिवार दर दर न्याय के लिए भटकता रहा पर उनकी किसी ने सुध नहीं ली.

घर से निकाला बाहर
मंगलवार को रकबीर अपने परिवार के साथ अपने घर मे घुस गया. खाना बनाने के दौरान ग्राम सचिव करमचंद अपने परिवार के साथ वहां पंहुचा और अपना मालिकाना हक जताते हुए रकबीर के परिवार को घर से बाहर निकालते हुए उनका सारा सामान घर से बाहर फेंक दिया. इस दौरान पुलिस प्रशासन व नगरीय प्रशासन के लोग मौके पर उपस्थित थे. इसके बावजुद पीड़ित परिवार की किसी ने सुध नहीं ली.

16 साल से वहीं था घर
रकबीर का परिवार लगभग 16 वर्षों से उसी जमीन पर निवास कर रहा है, जिसका दस्तावेज भी उनके पास है. बेहद गरीबी की हालत में केस मुकदमा लड़ना उनके बस की बात नहीं. ऐसे में पीड़ित परिवार के साथ हुई अमानवीयता पर पूरा सिस्टम मूकदर्शक बना बैठा है. बहरहाल न्याय की आस में अबतक पूरा परिवार इस कड़कड़ाती ठंड में खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर है. जिनके सिर पर न तो छत है और न ही उनके पास रहने के लिए कोई घर. ऐसे में प्रशासनिक उदासीनता के साथ सारा सरकारी सिस्टम सवालों के घेरे में नजर आ रहा है.

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