चित्तौड़गढ़: ऐलवा माता सिद्ध शक्तिपीठ में लगा श्रद्धालुओं का तांता, इस मंदिर में महकती है इत्र की खुशबू
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चित्तौड़गढ़: ऐलवा माता सिद्ध शक्तिपीठ में लगा श्रद्धालुओं का तांता, इस मंदिर में महकती है इत्र की खुशबू

ऐलवा माता सिद्ध शक्तिपीठ का स्थान चित्तौड़गढ़ जिला अंतर्गत ग्राम पंचायत डूंगला की ऐलागढ नामक पहाड़ी पर स्थित है और यहां मां ऐलवा का भव्य विशाल मंदिर गढ़ के रूप में निर्मित है.

शक्तिपीठ में लगा श्रद्धालुओं का तांता

Bari Sadri: राजस्थान के बड़ी सादड़ी में  डूंगला मेवाड़ की सूरभ्य वसुंधरा की सूरभ्य पहाड़ियों पर कई शक्ति पीठ स्थापित है और इनमें कालिका माता, उठा ला माता, अंबिका माता, ईडाणा माता, आसावरा माता, बिजासन माता, झांतला माता, जोगणिया माता, भादवा माता, आंतरी माता, चामुंडा माता, कई स्थान मुख्य है. 

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इनमें से ऐलवा माता सिद्ध शक्तिपीठ का स्थान चित्तौड़गढ़ जिला अंतर्गत ग्राम पंचायत डूंगला की ऐलागढ नामक पहाड़ी पर स्थित है. यहां मां ऐलवा का भव्य विशाल मंदिर गढ़ के रूप में निर्मित है. यह स्थान प्रदूषण मुक्त हरियाली से भरपूर प्राकृतिक सूरभ्य रमणीय स्थान है. इस मंदिर के ऊपर से दर्शन पर वागन बांध, बड़ी सादड़ी, बानसी, खर देवला, निकुम, ताना की पहाड़ियों का हरित मां का नजारा नजर आता है. 

भक्त यहां पहुंचकर अपने आप को धन्य महसूस करते हैं. सर्वे आफ इंडिया का सर्वेक्षण यहीं से किया गया था. इस क्षेत्र का यह रमणीक स्थान है. पूरे वर्ष भक्तजन यहां पर रात्रि जागरण, परसादिया, आदि करते हैं. ये मंदिर समस्त हिंदू समाज के आस्था का केंद्र है. ऐलवा मां को हिंगलाज माई का दूसरा रूप माना जाता है. ये स्थान डूंगला बड़ीसादड़ी रोड पर डूंगला से 2 किलोमीटर तथा बड़ी सादड़ी से 17 किलोमीटर पर स्थित है. 

यह मंदिर करीब 800 वर्ष पुराना बताया जाता है. मंदिर में ऐलवा मां की चमत्कारी मूर्ति, घी की अखंड ज्योति‌, अंधारिया ओबरा, में नवचक्र, बड़ की बोरी, वट पुष्कर्णी शेषनाग की बांबी, दर्शनीय है और ऐलागढ़ पर्वत की परिक्रमा आदि चमत्कारी स्थान है. इस स्थान पर मेवाड़ मालवा क्षेत्र की जनता की पूर्ण आस्था का केंद्र है. 

पूरे वर्ष यात्रियों का ताता लगा रहता है. प्रत्येक रविवार को श्रद्धालु भक्त फूल पाती प्राप्त करने आते हैं. रात्रि जागरण के आयोजन होते रहते हैं. यहां पर लूले, लंगड़े, अंधे, और बीमार बुड्ढे, बच्चे, नर, नारी, बड की बोरियों की परिक्रमा लेकर स्वास्थ्य लाभ लेते हैं. भक्त यहां पर दर्शन लेकर संभल प्राप्त करते हैं। प्रत्येक वर्ष की चैत्री वह आशोदी नवरात्रि की दुर्गाष्टमी वह श्रावणी हरियाली अमावस्या को मेले का भव्य आयोजन किया जाता है और हवन पूजा की जाती है और रात्रि जागरण होता है, जिसमें भजन संगीत कलाकारों द्वारा स्वर लहरियां बिखेरी जाती है. 

इस क्षेत्र में एलवा माता का इतिहास है कि जागरण के दौरान नवरात्रि में सप्तमी को प्रारंभ होकर अष्टमी को प्रातः 5:00 बजे तक किया जाता है. एक समय की बात है करीब 700 वर्ष पूर्व एक मुखबधीर तंतकार गुलाब नाम का युवक मंदिर की जागरण के दौरान संगीत सभा में आया वह भजन गाना चाहता था, लेकिन उसकी आवाज नहीं होने से वह भजन नहीं गा सकता था. 

उस मुक बधिर ने अपनी जुबान रात्रि में काटकर मां के चरणों में चढ़ा दी. प्रातः 5:00 उसकी जुबान वापस आ गई. गुलाब ने पहली बार मां के दरबार में संगीत गाया तो माता जी स्वयं प्रकट हुई और आशीर्वाद दिया कि जब भी इस समय इसी स्थान पर इस भजन प्रभाती को गाया जाएगा तो मूर्ति में हलचल होगी. वह अन्य जगह भजन को गाने पर इत्र की खुशबू महकेगी. आज भी मां ऐलवा के दरबार में इस प्रभाती को सभा के अंतिम भजन के रूप में तंतकार समाज के नर-नारी द्वारा बड़ी श्रद्धा से गाया जाता है.

Reporter: Deepak Vyas

 

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