आपने जघन्य अपराध किया है, जमानत पर रिहा होने के हकदार नहीं...पुलिस अफसर को जज साहब ने सुना दी खरी-खरी
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आपने जघन्य अपराध किया है, जमानत पर रिहा होने के हकदार नहीं...पुलिस अफसर को जज साहब ने सुना दी खरी-खरी

Kerala High Court denies bail to police officer: अदालत ने कहा, ‘‘अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सामग्री से पता चलता है कि अपीलकर्ता (पुलिस अधिकारी) पर जघन्य अपराध करने का आरोप है.

आपने जघन्य अपराध किया है, जमानत पर रिहा होने के हकदार नहीं...पुलिस अफसर को जज साहब ने सुना दी खरी-खरी

Kerala High Court denies bail to police officer: केरल उच्च न्यायालय ने दो साल पहले बाल दिवस के दिन राज्य के त्रिशूर जिले के एक घर में दलित समुदाय की 14 वर्षीय स्कूली छात्रा से बलात्कार करने के आरोपी पुलिस अधिकारी को जमानत देने से इनकार कर दिया है. न्यायमूर्ति के. बाबू ने अधिकारी को राहत देने से इनकार कर दिया, जो पीड़िता के स्कूल में छात्र पुलिस कैडेट (एसपीसी) प्रशिक्षक था. अदालत ने कहा कि उसने ‘‘जघन्य अपराध’’ किया है और वह ‘‘जमानत पर रिहा होने का हकदार नहीं है’’.

जज ने कहा, हम आंखें मूंद नहीं सकते
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अदालत संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अभियुक्त के मौलिक अधिकार की अनदेखी नहीं कर सकती, लेकिन वह किए गए अपराध की जघन्य प्रकृति से भी पूरी तरह से अपनी आंखें नहीं मूंद सकती.’’ अदालत ने कहा, ‘‘अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सामग्री से पता चलता है कि अपीलकर्ता (पुलिस अधिकारी) पर जघन्य अपराध करने का आरोप है.

जानें क्या है पूरा मामला
प्रथम दृष्टया अभियोजन पक्ष का मामला बनता है.’’ अदालत का यह आदेश अधिकारी की उस याचिका पर आया जिसमें उसने सत्र अदालत की ओर से जमानत याचिका खारिज किए जाने के फैसले को चुनौती दी थी. अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता अनुसूचित जाति से है और आरोपी की फोन पर उससे बात होती थी. अभियोजन पक्ष ने उच्च न्यायालय को बताया कि 14 नवंबर, 2022 को वह उसे जन्मदिन की दावत का लालच देकर त्रिशूर जिले के कोडुंगल्लूर के पास एक घर में ले गया और उससे बलात्कार किया. आरोपी को 26 सितंबर, 2024 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह न्यायिक हिरासत में है.  उस पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाया गया था, जो बलात्कार को दंडित करते हैं, साथ ही यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के प्रावधानों के तहत भी आरोप लगाए गए थे.

जानें कितने लगे हैं आरोप
जबकि नाबालिग अनुसूचित जाति से थी और चंद्रशेखरन अनुसूचित जाति से नहीं थे, इसलिए उस पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत भी आरोप लगाए गए थे. अदालत ने नोट किया कि पीड़िता द्वारा एक महिला पुलिस कांस्टेबल को दिए गए बयान में चंद्रशेखरन द्वारा बलात्कार के विशिष्ट आरोप शामिल थे.

केस डायरी और जाँच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को देखने के बाद, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष ने पुलिस अधिकारी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला स्थापित किया था. इसलिए, अदालत ने उसे जमानत देने से इनकार करना उचित समझा और उसकी अपील खारिज कर दी. इनपुट भाषा से भी

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