UP Politics: उत्तर प्रदेश में कुर्सी और तौलिया का संग्राम इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. किसी नेता या अधिकारी की कुर्सी पर सफेद तौलिया केवल सजावट नहीं, बल्कि पावर और प्रोटोकॉल का प्रतीक बन गया है.
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UP Politics: उत्तर प्रदेश में कुर्सी और तौलिया का संग्राम इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. किसी नेता या अधिकारी की कुर्सी पर सफेद तौलिया केवल सजावट नहीं, बल्कि पावर और प्रोटोकॉल का प्रतीक बन गया है. इसी मुद्दे पर हाल ही में यूपी सरकार ने एक आपातकालीन बैठक बुलाई, जो दिखाती है कि राजनीति में प्रतीकों का कितना महत्व है.
आपातकालीन बैठक: कुर्सी पर तौलिया क्यों जरूरी?
उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये प्रशासनिक प्रोटोकॉल पर अधिकारियों को जागरूक करने के लिए एक आपातकालीन बैठक बुलाई. इस बैठक में सांसदों और विधायकों की कुर्सी पर सफेद तौलिया लगाने को अनिवार्य बताया गया. निर्देश ये भी था कि तौलिये का साइज भी एक जैसा हो.
नेताओं की शिकायत: सम्मान का मुद्दा
इस बैठक की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि विधायकों ने शिकायत की थी कि सरकारी कार्यक्रमों में अधिकारियों को ऊंची और सजी-धजी कुर्सियां दी जाती हैं. जबकि विधायकों को साधारण कुर्सियों पर बैठाया जाता है. समाजवादी पार्टी के विधायक पंकज मलिक ने कहा कि विधायकों को बिना तौलिये की कुर्सी देना जनप्रतिनिधियों का अपमान है.
कुर्सी का दर्जा तय करता है?
बैठक में यह मुद्दा भी उठाया गया कि कई बार अधिकारियों को आलीशान सोफे दिए जाते हैं. जबकि विधायकों को साधारण कुर्सियां मिलती हैं. विधायकों का मानना है कि कुर्सी पर बिछा तौलिया केवल सजावट नहीं, बल्कि सम्मान का प्रतीक है.
कुर्सी और तौलिया बराबर
विधायकों की शिकायत के बाद यूपी सरकार ने आदेश दिया कि सभी कार्यक्रमों में सांसदों, विधायकों और अधिकारियों को समान ऊंचाई की कुर्सियां दी जाएं. साथ ही, सभी कुर्सियों पर एक ही साइज़ के सफेद तौलिये बिछाए जाएं. इस फैसले ने नेताओं और अधिकारियों के बीच की खाई को पाटने की कोशिश की है.
मजाक या गंभीर मुद्दा?
इस पूरे विवाद ने दिखा दिया कि हमारे देश के नेताओं के लिए तौलिया केवल कपड़ा नहीं, बल्कि पावर और सम्मान का प्रतीक है. तौलिया न मिलने पर खुद को अपमानित महसूस करने वाले नेताओं की सोच बताती है कि राजनीति में प्रतीकों का कितना महत्व है.
सफेद तौलिये की जरूरत नहीं
गौर करने वाली बात यह है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कुर्सी पर सफेद तौलिया नहीं, बल्कि भगवा रंग का तौलिया बिछता है. यह दिखाता है कि असली पावर कुर्सी के तौलिये में नहीं, बल्कि उस पर बैठने वाले के व्यक्तित्व में होती है.
कुर्सी और तौलिया का महत्त्व
इस पूरे तौलिया विवाद ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या जनप्रतिनिधियों का सम्मान केवल प्रतीकों से तय होगा? यह घटना भारतीय राजनीति में प्रतीकों और पावर के प्रति नेताओं की मानसिकता को उजागर करती है, जहां तौलिया भी सत्ता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है.