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DNA With Sudhir Chaudhary: शिवसेना में आज कुछ भी हुआ है, उसमें बाकी पार्टियों के लिए दो बड़ी सीख हैं.
नेताओं के बीच गहरी खाई
पहली ये कि जब किसी पार्टी में एक परिवार सबसे बड़ा हो जाता है तो उस पार्टी के नेता और कार्यकर्ता उससे दूर हो जाते हैं. और उनका पार्टी के प्रति मोहभंग हो जाता है. यानी परिवारी वाली पार्टियों में परिवार और जमीन से जुड़े नेताओं के बीच एक बहुत गहरी खाई पैदा हो जाती है, जिसे एक समय के बाद भरना बहुत मुश्किल हो जाता है. जैसा अभी उद्धव ठाकरे के लिए हो रहा है.
गठबन्धन करने से पहले करना होगा विचार
दूसरी सीख ये है कि जिन पार्टियों की विचारधारा मेल नहीं खाती, उन्हें साथ में नहीं आना चाहिए. महाराष्ट्र में सत्ता हासिल करने के लिए शिवसेना, कांग्रेस और NCP ने जो गठबन्धन किया, वो गठबन्धन असल में वैचारिक और सिद्धांतिक बेईमानी से ज्यादा कुछ नहीं था. शिवसेना एक ऐसी पार्टी है, जो हिन्दुत्व की विचारधारा को मानती है. जबकि कांग्रेस की विचारधारा, इसके बिल्कुल विपरित है. और NCP तो एक ऐसी पार्टी है, जिसकी स्थापना ही कांग्रेस के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ हुई थी. वर्ष 1999 में शरद पवार ने सोनिया गांधी से नाराज होकर NCP पार्टी बनाई थी. लेकिन सत्ता पाने के लिए NCP ने कांग्रेस के साथ गठबन्धन कर लिया. और शिवसेना ने अपनी विचारधारा के अलग जाकर इन दोनों पार्टियों के साथ मिल कर महाराष्ट्र में सरकार बना ली. इसी वैचारिक बेईमानी ने शिवसेना के विधायकों को बगावत के लिए मजबूर किया.
...तो ज्यादा दमदार स्थिति में होते उद्धव
इससे ये सीख मिलती है कि सत्ता मिले या ना मिले या फिर देर से मिले, लेकिन राजनीति में विचारधारा पर समझौता नहीं करना चाहिए. सोचिए, अगर शिवसेना ने ये गठबन्धन नहीं किया होता और वो हिन्दुत्व की अपनी विचारधारा पर कायम रहती है तो क्या होता. ऐसा होने पर उद्धव ठाकरे भले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नहीं बन पाते लेकिन वो आज की तारीख में कहीं ज्यादा मजबूत नेता होते. शिवसेना को लोक सभा से लेकर राज्य के विधान सभा और BMC के चुनावों में भी इसका पूरा फायदा मिलता.
ठाकरे बिना शिवसेना तो गांधी बिना कांग्रेस क्यों नहीं?
हम आपसे यहां एक और बात ये कहना चाहते हैं कि आज अगर शिवसेना बिना ठाकरे परिवार के चल सकती है. तो फिर कांग्रेस भी बिना गांधी परिवार के चल सकती है. इस राजनीतिक घटनाक्रम के बाद कांग्रेस में जो नेता गांधी परिवार से नाराज हैं, उनके मन में भी बगावत के बीज पड़ चुके होंगे या उनके मन में भी आज एक उम्मीद की किरण जागी होगी. क्योंकि एक एक समय ठाकरे परिवार के बिना शिवसेना की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. लेकिन एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से इस पार्टी को आसानी से Take Over कर लिया. अगर ये बगावत शिवसेना पार्टी में हो सकती है तो भविष्य में कांग्रेस पार्टी भी बिना गांधी परिवार के चल सकती है.
#DNA : बाढ़ प्रभावित असम में बागी विधायकों पर लाखों खर्च@sudhirchaudhary
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— Zee News (@ZeeNews) June 24, 2022