South States Delimitation: केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, तमिलनाडु एमके स्टालिन और तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी फिलहाल केंद्र की 'कराधान प्रथाओं' के बारे में एकमत हैं. ऐसे में आने वाले समय में गैर-भाजपा शासित दक्षिण के राज्य परिसीमन के खिलाफ भी एकजुट हो सकते हैं.
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Delimitation is Big Test: भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार साल 2026 तक जनगणना की प्रक्रिया पूरी करने की तैयारी कर रही है. जनगणना के तुरंत परिसीमन करवाया जाएगा और इसके दक्षिणी के राज्यों में एक आम राजनीतिक मुद्दा बनने की संभावना है, जिनमें से चार पर गैर-भाजपा दलों का शासन है. ऐसी संभावना है कि दक्षिण के राज्यों (South India) में परिसीमन का विरोध हो सकता है. गैर-भाजपा शासित दो दक्षिणी राज्य तमिलनाडु और केरल में साल 2026 में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं. ऐसे में यहां विरोध की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है.
परिसीमन का साउथ इंडिया में क्यों विरोध?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अगर साउथ के राज्यों में केवल जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर परिसीमन होता है तो सभी दक्षिणी राज्यों में संसद की सीटों की संख्या कम हो सकती है. इस वजह से साउथ के राज्य परिसीमन का विरोध कर रहे हैं. गैर-भाजपा शासित राज्यों कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, तमिलनाडु एमके स्टालिन और तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी फिलहाल केंद्र की 'अनुचित कराधान प्रथाओं' के बारे में एकमत हैं. ऐसे में आने वाले समय में गैर-भाजपा शासित राज्य परिसीमन के खिलाफ भी एकजुट हो सकते हैं.
स्टालिन से लेकर विजयन तक, बिछाने लगे बिसात
रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने इस महीने दोहराया कि उनके राज्य को पिछले कई वर्षों से कराधान के सौदे का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि राज्य द्वारा केंद्र को कर के रूप में दिए जाने वाले प्रत्येक रुपये में से तमिलनाडु को केवल 29 पैसे ही वापस मिलते हैं. स्टालिन की पार्टी डीएमके ने सितंबर में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के उस आह्वान का समर्थन किया था, जिसमें उन्होंने केंद्र की 'अनुचित' कराधान प्रथाओं पर बेंगलुरु में एक सम्मेलन आयोजित करने का आह्वान किया था. सिद्धारमैया के अनुसार, कर्नाटक को केंद्र को करों के रूप में दिए जाने वाले प्रत्येक एक रुपये पर केवल 14 से 15 पैसे मिलते हैं.
12 सितंबर को केरल के सीएम पिनाराई विजयन ने डॉ. अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता वाले 16वें वित्त आयोग के साथ चर्चा के बाद 'निष्पक्ष कराधान प्रथाओं' पर चर्चा करने के लिए गैर-भाजपा शासित राज्यों के वित्त मंत्रियों की बैठक की. केरल ने कहा है कि 15वें वित्त आयोग में केंद्र ने राज्य से करों के रूप में एकत्र किए गए प्रत्येक रुपये पर केवल 35 पैसे का भुगतान किया. इसके विपरीत, दक्षिणी राज्यों ने तर्क दिया है कि उत्तर प्रदेश को केंद्र को करों के रूप में दिए गए प्रत्येक रुपये के लिए 1.6 रुपये वापस मिलते हैं.
आसान भाषा में क्या है कराधान का मुद्दा?
जटिल आर्थिक स्थिति के बावजूद कराधान इन राज्यों के लिए एक सुविधाजनक मुद्दा क्यों है, यह समझाते हुए कर्नाटक के एक कांग्रेस नेता ने कह, 'आम तौर पर लोग कराधान की बारीकियों को नहीं समझ सकते हैं. लेकिन, लोगों के लिए यह समझना आसान है कि केंद्र हमें (दक्षिणी राज्यों को) भुगतान नहीं कर रहा है, क्योंकि हम उत्तर के राज्यों की तुलना में आर्थिक रूप से बेहतर प्रदर्शन करते हैं. डीएमके के एक नेता ने कहा, 'अगर दक्षिण के सभी राज्यों के केंद्र से नाराज होने का एक सामान्य कारण है तो वह है कराधान. हम सरल शब्दों में यह बताने में सक्षम हैं कि तमिलनाडु को लगातार वित्त आयोगों से कोई लाभ नहीं हुआ है.'
कराधान के बाद परिसीमन पर एकजुट हो सकते हैं साउथ के राज्य
साउथ इंडिया के चार राज्यों में सत्ता में मौजूद कांग्रेस, डीएमके और वामपंथी दलों का मानना है कि कराधान का मुद्दा परिसीमन के बड़े मुद्दे की शुरुआत मात्र है, जिसे उन्हें अगले कुछ वर्षों में उठाना है. इस मुद्दे पर तमिलनाडु एमके स्टालिन और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने पहले ही एक जैसे सुर में बात की है, दोनों ने दक्षिण में परिवार के आकार को बढ़ाने की आवश्यकता पर बात की है. दोनों ने कहा कि दक्षिणी राज्यों में वृद्धावस्था की प्रवृत्ति को उलटने के लिए उच्च जन्म दर की आवश्यकता है. हालांकि, यह नायडू और अन्य के बीच इस मुद्दे पर किसी वास्तविक राजनीतिक सहमति का संकेत नहीं देता है.
अक्टूबर में इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि वे इस बात से चिंतित नहीं हैं कि परिसीमन के कारण संसद में दक्षिण का प्रतिनिधित्व प्रभावित हो रहा है. उन्होंने कहा, 'मैं चिंतित नहीं हूं. आर्थिक सुधारों के कारण दक्षिणी राज्यों को शुरुआती लाभ मिला था और हम आगे बढ़ चुके हैं. अब उत्तर भारत को भी लाभ मिलना शुरू हो गया है. राजनीतिक प्रतिनिधित्व के संबंध में मुझे नहीं लगता कि कोई महत्वपूर्ण बदलाव होगा. ऐतिहासिक रूप से राज्यों के संबंध में विधानसभा और संसद दोनों सीटें तय की गई हैं. उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश में 25 सांसद हैं और मेरा मानना है कि 25 सांसद रहेंगे, जनसंख्या के आधार पर सीटों का बंटवारा होगा. यही काम जारी रहना चाहिए.'